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सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में छोटे एवं मंझोले उद्योग क्षेत्र का सिर्फ 15 प्रतिशत योगदान रह गया है, जबकि उत्पादन क्षेत्र में अभी भी इसका योगदान 45 प्रतिशत के करीब है। रोजगार की नजर से यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसके बावजूद इस क्षेत्र के उद्यमियों को कोई बैंक कर्ज देने को तैयार नहीं होता है। बैंकों को लगता है कि इस क्षेत्र में काम-धंधा चौपट है, इसलिए उनका पैसा डूब सकता है। यह बड़ी अजीब बात है। जबकि गांधी जी के समय तक यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी थी और उद्यम और नवाचार का मंच था। इसके कुछ उदाहरण हैं- पंजाब के ट्रक विनिर्माण, जालंधर की खेल सामग्री, लुधियाना की होजरी, पानीपत के हैडंलूम, अंबाला के वैज्ञानिक उपकरण आदि। इस क्षेत्र को कोई बैंक कर्ज देता भी है, तो ब्याज दर काफी ऊंची होती है। लघु और मझोले उद्योगों को लगभग 14 से 17 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण मिलता है, तो बड़े उद्योगांे को 10 से 12 प्रतिशत पर। वहीं भारी उद्योगों को 5 से 6 प्रतिशत पर कर्ज मिल जाता है। छोटे उद्यमियों को आसानी से पंूजी नहीं मिलने से करीब 48 प्रतिशत उद्योग बीमार हैं। छोटे और मझोले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए ब्याज दर, बैंकांे की पूंजी की लागत की दर के बराबर होनी चाहिए। यही नहीं, बड़े उद्यमियों की तुलना में 4 से 5 प्रतिशत से भी कम होनी चाहिए। तभी यह क्षेत्र आज की प्रतिस्पर्धा में टिक पाएगा।
एक और बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु है कि लघु उद्योगों की माली हालत को ठीक करने के लिए उस पर लागू विभिन्न अधिनियमों को एक सूत्र में बांधना होगा। जैसे: भारतीय बोनस अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, कारखाना अधिनियम, आयकर अधिनियम, वैट कर, सेवा कर अधिनियम, पेशेेवर कर अधिनियम, टोल और चुंगी कर, शुल्क अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम। इन कानूनों के कारण छोटे उद्यमी पूरी तरह अपंग हो जाते हैं। इन कानूनों की वजह से इन्हें छोटी-छोटी बातों पर भी सरकारी बाबू लपेटने की कोशिश करते हैं। इन चीजों में इनका बहुत समय खपता है। बुद्घि और पैसा तो अलग से खर्च होता है। तंत्र इस प्रकार से बनाया जाना चाहिए कि उद्यमियों को बिना समझौता किए उनके आड़े आ रही समस्याओं का समाधान प्राप्त हो ल्ल
विकास के लिए भागीदारी का संदेश
यह बजट अर्थव्यस्था का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करता है जिसमें भविष्य के लिए ठोस तत्व है। यह पूंजीगत व हमारे ढांचागत विकास को अंतिम व्यक्ति तक इच्छित वस्तु की आपूर्ति का भरोसा दिलाता है। सरकार के विकासोन्मुखी प्रस्ताव अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाले है। कृषि, विद्युत, ऊर्जा के लिए बजट में एक व्यापक नीति बनाई गई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में समृद्धि की हरियाली की आकांक्षा है। खाद्य और तेल के क्षेत्र में सब्सिडी को हतोत्साहित किया जाएगा। 1 हजार करोड़ रुपए प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के लिए आवंटित किये गये हैं। खाद्यान्नों की बाजार में खुली बिक्री को प्रोत्साहन, भारतीय खाद्य निगम को सुदृढ़ करने के साथ खाद्य क्षेत्र में जनसहभागिता के साथ पीपीपी निवेश पर जोर दिया जाएगा। पूर्वोत्तर के असम राज्य और झारखण्ड में वर्तमान वित्त वर्ष में सौ करोड़ रुपए का कृषि अनुसंधान संस्थान स्थापित किया जाएगा। इसी प्रकार दो सौ करोड़ रुपए की लागत से कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी। सौर ऊर्जा परियोजना के तहत राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में पांच सौ करोड़ की लागत से अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाए जाएंगे।
-वंदना गुप्ता, चार्टर्ड अकाउण्टेंट टीम बीवीएसएस
कुल मिलाकर यह बजट जमीनी समस्याओं के निराकरणों वाला बजट है जो देश को एक सही शुरुआत की ओर ले जाएगा
ग्रामीण और स्वास्थ्य क्षेत्र में शोध के कदमों से स्वस्थ भारत का निर्माण होगा। किसानों को टेलीविजन और कामगारों को कुशल और दक्ष बनाने के प्रयास बजट को श्रेष्ठ बनाएंगे। सर्वशिक्षा अभियान की बजाए ऐसे अभियानों में सरकारी धन देश के लिए उपयोगी निवेश होगा। मोदी सरकार के न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन को यह ताकत देगा। कुल मिलाकर सरकार को सभी विद्यमान योजनाओं का पुनरावलोकन करते हुए और इनका निरीक्षण करते हुए इन्हें आगे बढ़ाना चाहिए
नवल बजाज (चार्टड अकाउण्टेंट, सचिव कम्युनिकेशन टीम बीवीएसएस)
परिपक्व एवं पारदर्शी बजट : यह बजट पूरी तरीके से एक अच्छा बजट है। यह राजनैतिक रूप से परिपक्व एवं पारदर्शी है। सरकार ने अपनी कठिन स्थिति को समझा है ऐसा इस बजट में स्पष्ट होता है। महिला सुरक्षा,खेल विश्वविद्याालयों, एशियाड एवं राष्ट्रमंडल खेलों के लिए प्रशिक्षण आदि क्षेत्रों में विविधता देखने को मिली है। इस बार का बजट निश्चित ही आम आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा। -दीपा गुप्ता
सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा पर 200 करोड़ रुपए काआवंटन सीधे लाभदायक नहीं दिखता, जबकि 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ योजना'पर इससे आधा 100 करोड़ ही आवंटित किया गया है। हालांकि पूरे केन्द्रीय बजट में इस प्रकार की राशि का प्रकटीकरण प्रस्तावित निर्माण में सरकार के विश्वास को दर्शाता है।
-अर्पित गुप्ता, टीम बीवीएसएस
बजट के क्षेत्रवार विश्लेषण में लगी टीम बीवीएसएस में शामिल अन्य विशेषज्ञ राज के अग्रवाल, प्रवीण कांत, अनिल शर्मा, अवनीश मट्टा, गोपाल अरोड़ा, दीपक बहल, सुशील गुप्त एवं प्रमोद जैन।
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