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व्यापमं विवाद-फिर वही साजिश, फिर वही लोग

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Jul 5, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jul 2014 15:56:51

मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले मामले में विपक्षी दल कांग्रेस स्वयं उलझ गई है। एक तरफ तो उसके पास सबूतों का अभाव है, दूसरी ओर नैतिकता की दुहाई देने की उसकी मनोस्थिति नहीं है। विधानसभा में स्थगन प्रस्ताव पर कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 'कांग्रेस व्यापम की जांच की दिशा को भटकाने की कोशिश में मुझ पर और मेरे परिवार पर कीचड़ उछाल रही है। यदि दोष साबित हो जाए तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा।' दरअसल, कांग्रेस ने इस मुद्दे के बहाने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके परिवार के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी निशाना साधा है।

कांग्रेस ने आदतन संघ को निशाने पर लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के कई नेता यह बात सार्वजनिक तौर पर कहते रहे हैं कि उनकी लड़ाई भाजपा से नहीं संघ से है। आजादी के पूर्व संघ अंग्रेजों के लिए आंखों की किरकिरी था, आजादी के बाद कांग्रेस और कम्युनिस्टों के लिए बन गया। इसीलिए व्यापम विवाद से अनायास ही 'भगवा आतंक' के पीछे की मानसिकता की याद ताजा हो गई। दोनों मुद्दों में कुछ बातें समान दिखती हैं। दोनों प्रकरणों में जांच से ज्यादा 'मीडिया ट्रायल' है। दोनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निशाने पर रहा। 'भगवा आतंक' प्रकरण में श्री मोहनराव भागवत और श्री इन्द्रेश कुमार के बहाने संघ पर सेकुलर निशाना साधा गया था, व्यापमं में स्व़ श्री सुदर्शन और श्री सुरेश सोनी के बहाने संघ को विवाद में उलझाने की बेशर्म कोशिश की गई है। एक की जंाच एनआईए कर रही है, जबकि दूसरे की एसटीएफ। दोनों मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं। लेकिन दोनों में कांग्रेस और मीडिया अमर्यादित रूप से सक्रिय है।
चुनावी राजनीति में लुट-पिट गई कांग्रेस के पास राजनीतिक षड्यंत्र के सिवा कुछ भी नहीं बचा है। 'भगवा आतंक' और व्यापमं जांच में कुछ असमानताएं भी हैं। वहां आतंक की घटनाएं थीं, यहां भ्रष्टाचार है। एक की जांच का आदेश केन्द्र की यूपीए सरकार ने दिया था, जबकि दूसरे की जांच का आदेश मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने दिया है। दोनों ही प्रकरण दुर्भावना और दुर्भाग्यवश ओछी राजनीति के शिकार हो गए हैं। आतंक और भ्रष्टाचार के दोषियों की पहचान और सजा कांग्रेस की षड्यंत्रकारी राजनीति के दुष्चक्र में उलझकर रह गई। आज भी संघ के अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी मीडिया के लिए अपरिचित हैं। यही कारण है कि संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी अनेक महत्वपूर्ण कायोंर् से जुड़े होने के बाद भी शायद पहली बार मीडिया के समक्ष आए और अपना बयान दिया। जो उन्होंने कहा वह सिर्फ मीडिया और राजनीति के लिए ही नहीं समाज के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। श्री सोनी संघ और भाजपा के बीच लंबे समय से समन्वय व मार्गदर्शन का काम भी करते रहे हैं। इस दौरान कांग्रेस ही नहीं, बल्कि भाजपा के भी कई नेताओं की महत्वाकांक्षाओं पर कुठाराघात हुआ होगा। मोदी सरकार लाने के लिए भी संघ ने जमकर काम किया। तब कांग्रेस का संघ से नाराज होना, क्रोधित होना, अपमान और कलंक के बीज बोना स्वाभाविक ही है। श्री सोनी ने कहा कि व्यापम मामले में संघ के पूर्व सरसंघचालक स्व़ श्री सुदर्शन और उनका नाम आना किसी बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है।
मीडिया के सहारे साजिशकर्ता लक्षित व्यक्ति और संगठनों की छवि धूमिल करता है, जांच की दिशा और निहितार्थ बदल देता है, आम जनता को भ्रमित कर देता है। संघ के सरसंघचालक ने पूरे मामले में संघ की संलिप्तता नकारते हुए काननू को अपना काम करने देने की अपील की। इस बीच पुलिस ने अधिकृत रूप से बयान जारी कर उपलब्ध दस्तावेजों और साक्ष्यों के हवाले से संघ या संघ के किसी पदाधिकारी की संलिप्तता को सिरे से खारिज कर दिया है। आरोपी मिहिर कुमार ने भी संघ पदाधिकारी के नाम का उल्लेख करने संबंधी बयान को नकार दिया है। जहां तक आरोपी मिहिर कुमार के एसटीएफ और मीडिया को दिए परस्पर विरोधी बयान का सवाल है, इसकी पड़ताल तो न्यायालय में ही होगी कि आरोपी का बयान किसी 'दबाव, भय या लोभ' से प्रेरित है अथवा सहज है।
मीडिया में मिहिर कुमार को पूर्व सरसंघचालक स्व़ श्री सुदर्शन का 'सेवादार' बताया गया है। संघ में सेवादार जैसा कोई पद नहीं होता। हां! निजी सहायक जरूर होते हैं, लेकिन मिहिर कुमार निजी सहायक कभी नहीं रहे। यह बात किसी के भी गले नहीं उतरती कि श्री सुदर्शन ने किसी परीक्षार्थी को इतना विस्तार से बताया होगा कि परीक्षा में जितना सही उत्तर आता हो लिखना, बाकि छोड़ देना। कांग्रेसी नेता चाहें तो अपनी बयानबाजी से घृणा का पात्र भले ही बन जाएं, लेकिन संघ और स्व़ श्री सुदर्शन के बारे में उनके बयानों पर कोई भरोसा नहीं करेगा। जहां तक एसटीएफ का सवाल है, आज नहीं तो कल उसे यह जवाब देना ही होगा कि जिस प्रकरण की जांच वह उच्च न्यायालय की निगरानी में कर रहा है, उससे संबंधित दस्तावेज मीडिया को किसके इशारे पर कैसे उपलब्ध हुए? सूत्रों के हवाले से प्रकाशित हो रही खबरों को एसटीएफ द्वारा नजरअंदाज करना, जांच से संबंधित चयनित तथ्यों को पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर मीडिया को उपलब्ध कराना राजनीतिक साजिश का हिस्सा ही माना जाएगा। एसटीएफ की ईमानदारी आर्थिक, नैतिक, कानून और नियमों की कसौटी पर भी परखी जायेगी। बहरहाल, व्यापम घोटाले का मामला अब राजनीतिक रंग ले चुका है। जांच प्रक्रिया के कारण न्याय पर सवाल उठने लगे हैं। प्रदेश में भाजपा सरकार और संगठन पसोपेश में हंै। मामला जांच एजेंसी और न्यायालय से परे राजनीतिक दलों और मीडिया के दायरे में जा चुका है। संघ पर आरोपों के छींटे नहीं, धब्बे लगाने की कोशिश हुई है। भले ही थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन आरोपों के ये दाग-धब्बे धुल जायेंगे। -अनिल सौमित्र

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