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अभी कुछ सप्ताह पहले केन्द्र सरकार ने कामकाज में और सोशल मीडिया में हिन्दी अपनाने का निर्णय लिया। लगभग 35 वर्ष पहले, हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी हिन्दी को अपनाने के कुछ प्रयास किये थे। आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर 'धर्मयुग' साप्ताहिक में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने एक लेख लिखा था कि-कैसे राजकाज की भाषा में हिन्दी को अपनाने का उन्होंने प्रयास किया, कैसे हिन्दी के टाइप राइटर्स की संख्या कम थी, कैसे अंग्रेजी टाइप राइटर को हिन्दी में बदलना कठिन था। उन दिनों अपनी भाषा को अपनाने में समस्याओं का अम्बार लगता था और तकनीकी का साथ भी नहीं था। लेकिन आज की स्थिति पूर्णत: भिन्न है। आज सरकारी कामकाज में ही नहीं, बल्कि कम्प्यूटर, सोशल मीडिया पर या मोबाइल पर भारतीय भाषाओं में संवाद करना अत्यंत सरल हो गया है अर्थात यह होने में काफी समय लगा।
कम्प्यूटर आने के बाद उसमे अपनी भाषा के प्रयोग करने संबंधी अनेक देश आग्रही थे। यूरोपीय देशों की भाषाएं तो सरलता से कम्प्यूटर पर आने लगी, कारण उन सभी की लिपि (स्क्रप्टि)रोमन थी, लेकिन जापानी, चीनी, अरबीक, रशियन, थाई जैसी भाषाओं को भी कम्प्यूटर या मोबाइल पर लाने के लिए उन देशों की सरकार और जनता, दोनों आग्रही थे। दुुर्भाग्य से अपने देश में यह न हो सका। अनेक वषार्ें तक माइक्रोसॉफ्ट के 'विंडोज' और 'ऑफिस' में भारतीय भाषाएं नहीं थीं। थाईलैंड या मलेशिया जैसे छोटे देशों की भाषाएं तो होती थीं, लेकिन बहुत बड़ी जनसंख्या को संबोधित करने वाली हिन्दी, बंगला, तेलगु, मराठी जैसी भाषाएं नहीं थीं। माइक्रोसॉफ्ट का कहना था कि भारत की ओर से ऐसी मांग ही नहीं आती है। उन दिनों माइक्रोसॉफ्ट के 'वर्ड' में हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा का प्रयोग संभव नहीं था। कम्प्यूटर पर भारतीय भाषाओं में काम करने के लिए डीटीपी (डेस्क टॉप पब्लिशिंग) का उपयोग करना पड़ता था। श्रीलिपि, कृतिदेव, चाणक्य, मधुकर आदि फॉन्ट का प्रयोग होता था। एक फॉन्ट में टाइप किया हुआ आलेख या मैटर दूसरे फॉन्ट में परिवर्तित करना संभव नहीं था। अंग्रेजी में लिखा हुआ साहित्य जैसे किसी भी फॉन्ट में सरलता से परिवर्तित हो जाता है, वैसे भारतीय भाषाओं के लिए संभव नहीं था।
इसका प्रमुख कारण था, कम्प्यूटर्स में भारतीय भाषाओं का मानकीकरण (स्टैन्डर्डइजेशन)न होना। हमारे फॉन्ट्स का भी मानकीकरण नहीं था जिसे लगता था, वह अपनी शैली में फॉन्ट बना लेता था। इसीलिए भारतीय भाषाओं में 'टाइप' करना कठिन रहता था। भारतीय भाषाओं के 'की-बोर्ड' भी अलग-अलग रहते थे,उनका भी मानकीकरण नहीं हुआ था। भारतीय भाषाओं के राजकाज में प्रयोग न होने के ये सभी कारण थे।
10 प्रमुख आधुनिक लिपियां भारत में प्रयोग की जाती हैं। इनमें देवनागरी, बंगाली,उडि़या, गुजराती, गुरुमुखी, तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम और उर्दू। इनमें से केवल उर्दू फारसी लिपि से व्युत्पन्न है, जो कि दाएं से बाएं लिखी जाती है। अन्य सभी लिपियां बाएं से दाएं लिखी जाती हैं, जो मूलत: ब्राम्ही लिपि से प्रेरित हैं। देवनागरी लिपि में हिन्दी, मराठी, सिन्धी, संस्कृत, कोंकणी, मैथिली, बोडो आदि भाषाएं लिखी जाती हैं। भाषाओं की विविधता के कारण भी प्रारंभिक दिनों में इन भाषाओं को कम्प्यूटर पर लाना कठिन था।
सरकारी स्तर पर भारतीय भाषाओं को कम्प्यूटर में लाने का कार्य हो रहा था, लेकिन इसकी गति अत्यन्त धीमी थी। सी-डैक ने भारतीय भाषाओं के युनिकोड फ ॉन्ट पर काम किया। भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीकी मंत्रालय ने टीडीआईएल(टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फॉर इंडियन लैंग्वेजेज) नाम का अलग से विभाग खोला। इसके अंतर्गत यूनिकोड फॉन्ट बनाने से लेकर फॉन्ट्स बदलने की तक के सॉफ्टवेयर बनाने के अनेक प्रयास किए गए। भारतीय भाषाओं के लिए एक सर्वमान्य डाटा सेंटर बना आईएलडीसी (इंडियन लैंग्वेज डाटा सेंटर)। इस डाटा सेंटर के अन्तर्गत सरकारी स्तर पर, इस विषय में किये जा रहे सभी प्रयासों को समेटा गया और उनमें सुसूत्रता लाई गयी।
इधर पुणे में सी-डैक ने 'जीआईएस टी' नाम से भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटिंग करने के लिए अलग से विभाग बनाया। दिल्ली की आईएलडीसी और पुणे की जिस्ट(जी आईएसटी) ने मिलकर कम्प्यूटर में भारतीय भाषाओं के उपयोग को लेकर कई परियोजनाएं तैयार कीं। इनमंे फोनेटिक 'की-बोर्ड' (अर्थात उच्चारण के अनुसार शब्दों की कुंजियां), एक फॉन्ट का दूसरे में परिवर्तन, भारतीय भाषाओं का शब्द कोश आदि सुविधाएं थीं। भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक विभाग ने वर्ष 2005 से इन सभी सॉफ्टवेयर टूल्स को सीडी में लेकर मुफ्त में बांटना शुरू भी किया था, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार ठीक न होने से यह सुविधाएं लोगों तक पहंुच नहीं सकीं। कम्प्यूटर प्रणालियों पर अंग्रेजी का ही रुतबा बना रहा।
दुर्भाग्य यह है कि अपने देश में अंग्रेजी समझने वालों की संख्या मात्र दस प्रतिशत है, लेकिन कम्प्यूटर में उपलब्ध संवाद का माध्यम था अंग्रेजी। इस कारण देश में 'डिजिटल डिवाइड' निर्माण हो रहा था अर्थात सामान्य लोगों की भाषाओं की कम्प्यूटर पर अभिव्यक्ति नहीं थी और समाज के छोटे से संभ्रान्त लोगों के समूह का कम्प्यूटर और सोशल मीडिया पर एकाधिकार बन रहा था।
दुनिया बदल रही थी, तकनीक बदल रही थी। जीवन की सभी विधाएं कम्प्यूटर आधारित बन रही थीं। सोशल मीडिया के ये प्रारंभिक दिन थे और यह सब मिलकर भारत में कम्प्यूटर/आईटी आधारित(कम्प्यूटर इनेबल्ड) एक बहुत बड़ा बाजार तैयार हो रहा था। इस विशालकाय बाजार को समझा गूगल और माइक्रोसॉफ्ट नामक दो अमरीकी कंपनियों ने। ये समझ चुके थे कि इतने बड़े बाजार पर कब्जा करना है तो बहुसंख्यक भारतीयों की स्थानिक भाषाओं में कम्प्यूटर के सभी सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराने होंगे। यह करने में एक बड़ी समस्या थी कम्प्यूटर में भारतीय भाषाओं के 'की-बोर्ड' की। इनका मानकीकरण नहीं था, इसका हल निकाला गया और प्रचलित अंग्रेजी 'की-बोर्ड' के माध्यम से भारतीय भाषाएं लिखने का रास्ता तलाशा गया। यह तकनीक प्रभावी रही जिससे अंग्रेजी 'की-बोर्ड' का अभ्यास, कम्प्यूटर पर काम करने वाले सभी लोगों को था। इसलिए इस पद्धति से भारतीय भाषाओं में लिखना अत्यंत सरल साबित हुआ।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने इसे 'इंडिक' नाम दिया। पुरातन भारतीय परम्परा को, भारतीय भाषाओं को, भारतीय लिपि को 'इंडिक' कहा जाता है। इस 'इंडिक' को अपने कम्प्यूटर पर डाउनलोड करना और उसका उपयोग करना इस प्रक्रिया को गूगल ने अत्यंत सरल बना दिया।
इसका जबरदस्त परिणाम यह निकला कि ब्लॉगिंग और सोशल साइट्स पर सामान्य भारतीय नागरिक को बड़ी सरलता से अपनी भाषा में विचारों को अभिव्यक्त करना संभव हो गया। यह एक क्रांति थी जिसने सोशल मीडिया की व्याप्ति को बदल दिया। फेसबुक और ट्विटर पर भारतीय भाषाओं में अभिव्यक्ति होने लगी। भारतीय भाषाओं की नयी-पुरानी कविताएं, नया-पुराना साहित्य, यह सब सामने आने लगा। अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले छात्र भी इस प्रक्रिया से भारतीय साहित्य एवं विचारों से जुड़ने लगे। व्यंग्य, कोई वैज्ञानिक जानकारी, व्यवस्थापन, आर्थिक विषय या ऐतिहासिक आलेख हो, ये सभी इंडिक के माध्यम से यह सब अपनी-अपनी भारतीय भाषाओं में सहजता से उपलब्ध होने लगा। निश्चित रूप से गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने 'इंडिक' को अपना बाजार बढ़ाने के लिए विकसित किया था, किन्तु उसके कारण सामान्य भारतीयों को अभिव्यक्त होने का माध्यम मिला।
इंडिक का होना ब्लॉगर्स के लिए तो वरदान ही रहा। इसके विकसित होने से पहले भारतीय भाषाओं में ब्लॉग लिखना अत्यंत कठिन कार्य था। किसी डीटीपी ऑपरेटर से आलेख टाइप कराना और फिर उसे इमेज में बदलकर ब्लॉग पर प्रकाशित करना, यह अच्छी खासी कसरत होती थी। गूगल इंडिक पर व्याकरण की दृष्टि से ऑप्टिमाइजेशन होता रहता है। छोटी-बड़ी मात्राएं, सही शब्द का चयन यह सब कितने ज्यादा उपयोगकर्ता उस शब्द का प्रयोग करते हैं, उस पर निर्भर रहता है। भारतीय भाषाओं के कम्प्यूटर में सरलता से उपयोग होने के कारण बहुत कुछ बदला है। भारतीय भाषाओं में ब्लॉगिंग बढ़ी है। भारतीय भाषाओं की वेबसाइट्स की संख्या बढ़ी है और सोशल मीडिया तो अब भारतीय भाषाओं से अटा पड़ा है। -प्रशांत पोल
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