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एक बार की बात है एक सियार जंगल में एक पेड़ के नीचे खड़ा था। तभी तेज आंधी आई और पूरा पेड़ हवा के झोंके से गिर पड़ा। नीचे खड़ा सियार उसकी चपेट में आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। वह किसी तरह घिसटता-घिसटता अपनी मांद तक पहुंचा। जब कुछ दिनों बाद वह चलने फिरने लायक हुआ तो वह बाहर निकला। कई दिनों से सियार ने कुछ खाया नहीं था। उसका शरीर कमजोर हो गया था। उसने शिकार करने की कोशिश की लेकिन कमजोरी के कारण वह शिकार नहीं कर पा रहा था। वह सोचने लगा क्या किया जाए? वह इधर उधर घूमने लगा पर कहीं कोई मरा जानवर नहीं मिला। घूमता-घूमता वह एक बस्ती में पहुंच गया। उसने सोचा शायद कोई मुर्गी या उसका बच्चा हाथ लग जाए। सो वह इधर-उधर गलियों में घूमने लगा।
तभी कुत्तों की नजर उस पर पड़ गई। कुत्तों ने भौं-भौं करके सियार को दौड़ा लिया। उसे जान बचाने के लिए भागना पड़ा। उसने गलियों में घुसकर उनको छकाने की कोशिश की पर कुत्तों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। सियार भागता हुआ रंगरेजों की बस्ती में जा पहुंचा। वहां उसे एक बड़ा हौज नजर आया। वह जान बचाने के लिए उसमें कूद गया। हौज में रंगरेज ने कपड़े रंगने के लिए रंग घोल रखा था। सियार बहुत देर तक सांस रोककर रंग में डूबा रहा। वह केवल सांस लेने के लिए अपनी थूथनी बाहर निकालता। जब उसे पूरा यकीन हो गया कि अब कोई खतरा नहीं है तो वह बाहर निकला। वह रंग में भीग चुका था। जंगल में पहुंचकर उसने देखा कि उसके शरीर का सारा रंग हरा हो गया है। हौज में रंगरेज ने हरा रंग घोल रखा था। उसके हरे रंग को जो भी जंगली जीव देखता, वह भयभीत हो जाता। उनको खौफ से कांपते देखकर रंगे सियार के दिमाग में एक योजना आई।
सियार ने डरकर भागते जीवों को आवाज दी- भाइयों भागो मत मेरी बात सुनो।
उसकी बात सुनकर सभी जानवर ठिठक कर रुक गए।
रंगे सियार ने कहा देखो मेरा रंग। पूरी पृथ्वी पर ऐसा रंग किसी जानवर का नहीं है। मतलब समझो। भगवान ने मुझे यह खास रंग देकर तुम्हारे पास भेजा हैं। तुम सब जानवरों को बुला लाओ तो मैं भगवान का संदेश सबको बताऊं। जानवरों पर उसकी बातों का गहरा प्रभाव पडा। वे जाकर जंगल के दूसरे सभी जानवरों को बुलाकर लाए। जब सब आ गए तो रंगा सियार एक ऊंचे पत्थर पर चढ़कर बोला-वन्य प्राणियों, प्रजापति ब्रह्मा ने मुझे खुद अपने हाथों से इस अलौकिक रंग का प्राणी बनाकर कहा कि संसार में जानवरों का कोई शासक नहीं है। तुम्हें जाकर जानवरों का राजा बनकर उनका कल्याण करना है। तुम्हारा नाम सम्राट ककुदुम होगा। तीनों लोकों के वन्य जीव तुम्हारी प्रजा होंगे। अब तुम लोग अनाथ नहीं रहे। मेरी छत्र-छाया में निर्भय होकर रहो। उसकी बातों ने तो जादू का काम किया। शेर, बाघ व चीते की भी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह गई। उसकी बात काटने की किसी में हिम्मत न हुई। सारे जानवर उसके चरणों में लोटने लगे और एक स्वर में बोले-हे ब्रह्मा के दूत, हम आपको अपना सम्राट स्वीकार करते हैं। भगवान की इच्छा का पालन करके हमें बड़ी प्रसन्नता होगी। हाथी ने कहा हे-सम्राट, अब हमें बताइए कि हमारे लिए क्या आदेश है ?
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रंगा सियार सम्राट की तरह पंजा उठाकर बोला तुम्हें अपने सम्राट की खूब सेवा और आदर करना चाहिए। उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। हमारे खाने-पीने का शाही प्रबंध होना चाहिए। शेर ने सिर झुकाकर कहा महाराज, ऐसा ही होगा। आपकी सेवा करके हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। उस दिन से रंगे सियार के शाही ठाठ हो गए। वह राजसी शान से रहने लगा। कई लोमडि़यां उसकी सेवा में लगी रहतीं भालू पंखा झुलाता।
रोज ककुदुम का दरबार भी लगता। रंगे सियार ने एक चालाकी यह कर दी थी कि सम्राट बनते ही सियारों को शाही आदेश जारी कर उस जंगल से भगा दिया था। उसे अपनी जाति के द्वारा पहचान लिए जाने का खतरा था। एक दिन चांदनी रात खिली थी। पास के जंगल में सियारों की टोलियां हूआं हूआं की बोली बोल रही थीं। उस आवाज को सुनते ही ककुदुम अपना आपा खो बैठा। उसके अंदर के जन्मजात स्वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद की ओर उठाकर और सियारों के स्वर में मिलाकर हूआं हूआं करने लगा।
शेर और बाघ ने ऐसा करते देख लिया। वे चौंके, बाघ बोला-यह तो सियार है। हमें धोखा देकर सम्राट बना रहा। मार डालो इसे। वह उसकी तरफ लपके और देखते ही देखते उसका काम तमाम कर डाला। शिक्षा :- झूठ का पर्दा हमेशा नहीं पड़ा रहता, एक दिन सबको वास्तविकता पता चल जाती है I
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– बाल चौपाल डेस्क
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