भाजपा को जन-प्रिय बनाया'
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी एवं सहसरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी द्वारा 3 जून 2014 को संयुक्त रूप से व्यक्त श्रद्धाञ्जलि संदेश-
श्री गोपीनाथ मुंडे जी का अकस्मात हुई एक दुघर्टना का निमित्त बनकर इस दुनिया से उठ जाना हम सभी के लिए एक अत्यन्त वेदनादायक व शोककारक घटना है। विद्यार्थी जीवन में ही स्वयंसेवक बने श्री मुंडे जी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में कार्य करते-करते भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से राजनीति में एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। अपने आक्रामक कृतित्व व नेतृत्व से उन्होंने भाजपा को महाराष्ट्र में घर-घर तक पहुंचाते हुए सामान्यजनों की लोकप्रिय पार्टर्ी बनाया। अपनी उसी कुशलता के भरोसे अब उन पर महत्वपूर्ण अखिल भारतीय दायित्व आया था और उसको निभाते हुए वे अपनी नेतृत्व कुशलता व कृतित्व का नया कीर्तिमान रचेंगे-ऐसी सुखद अपेक्षा में हम सब लोग थे।
परन्तु नियति की योजना कितनी निष्ठुर व अनाकलनीय है, इसका दु:खकारक प्रत्यय हम सब लोग ले रहे हैं। इस भयंकर सदमे को सहने में उनके शोकाकुल परिवार के साथ हम सब सम्मिलित हैं। उनके दिवंगत जीव को प्रकाशमय व शांतिप्रद पथ प्राप्त हो तथा इस सदमे को सहन करने का धैर्य उनके शोकाकुल परिवार को तथा हम सभी को प्राप्त हो, इस प्रार्थना के साथ हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से तथा हमारी व्यक्तिगत श्रद्धाञ्जलि अर्पण करते हैं।
दिवंगत गोपीनाथ मुंडे का पुणे के मोतीबाग संघ कार्यालय से गहरा नाता रहा। मोतीबाग कार्यालय ने ही मुझे छात्र से कार्यकर्ता बनाया, यह बात वे हृदय से सार्वजनिक तौर पर बतातें थे। यहां तक कि राज्य के उप-मुख्यमंत्री बनने के पश्चात अपनी पहली पुणे यात्रा में वे मोतीबाग कार्यालय में पधारे तथा कार्यालय के जिस कमरे में उनका निवास होता था उसमें कुछ पल भी उन्होंने बिताये।
गोपीनाथ तब पुणे में शिक्षा लेने नए-नए आये थे। शुरुआती दिनों में ही उन्हें मराठवाड़ा मित्र मंडल शाखा के कार्यवाह पद का दायित्व सौंपा गया। शाखा कार्यवाह के दायित्व को युवा गोपीनाथ ने शहर में नया होने के बावजूद भी अच्छे से निभाया। उसके बाद यानी 1971-72 में गोपीनाथ संघ के वरिष्ठ अधिकारी डा. श्रीपति शास्त्री तथा प्रचारक दामुअण्णा दाने के संपर्क में आए। उन्होंने गोपीनाथ जी की क्षमता को परखते हुए उन्हें पुणे के संभाजी नगर मंडल प्रमुख का दायित्व सौंपा और इस तरह गोपीनाथ जी संघ के काम में आगे बढ़ते गए। पुणे के प्रमुख संघ कार्यकर्ता रवींद्र घाटपांडे के अनुसार, डा. शास्त्री यह कहा करते थे कि गोपीनाथ में राजनीतिक क्षेत्र में काम करने की अद्भुत क्षमता है। शास्त्रीजी की यह बात सही निकली तथा महाराष्ट्र जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री वसंतराव भागवत के संपर्क में आने पर, पहले जनसंघ युवा मोर्चा फिर जनसंघ एवं बाद में भाजपा में गोपीनाथ जी ने सभी को अचंभित करने वाले काम कर दिखाये। पुणे में कानून की शिक्षा लेते हुए स्थानीय विधि महाविद्यालय में जब वे पढ़ते थे तब उस महाविद्यालय से मात्र कांग्रेसी छात्र संगठन के कार्यकर्ता ही विश्वविद्यालय प्रतिनिधि के नाते चुनकर आते थे। यह परिपाटी तब खत्म हुई जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता के रूप में गोपीनाथ मुंडे पहली बार कांग्रेस के छात्र संगठन के कार्यकर्ता को परास्त कर निर्वाचित हुए थे।
पुणे में छात्र गोपीनाथ की प्रमोद महाजन, भीमराव वड़दे आदि से अभिन्न मित्रता हुई। दामुअण्णा दाने जैसे प्रचारकों की प्रेरणा से उन्होंने सामाजिकता को सामाजिक समरसता से जोड़ दिया। अंतरजातीय विवाह के अलावा अपने समरसता के प्रयासों को उन्होंने सही मायने में व्यापक बनाते हुए शिवसेना जैसे मित्र दलों के विरोध के बावजूद विश्वविद्यालय का नामांतरण डा. अंबेडकर के नाम पर हो, इसलिए व्यापक आंदोलन कर पुलिस की प्रताड़ना को सहन किया। यहां तक कि कारावास भी कबूल किया। गोपीनाथ मुंडे की नेतृत्व क्षमता ऐसी प्रभावी थी कि सभी उन्हें सहजता से स्वीकार करते थे। पुणे में पवित्र पावन संगठन का गठन कर उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को बढ़ावा दिया जिनमें पुणे के पूर्व सांसद प्रदीप रावत तथा मौजूदा सांसद अनिल गरोले मुख्य हैं। यहां तक कि 1974 में जब जयप्रकाश जी का संपूर्ण क्रांति आंदोलन अपने चरम पर था तब पुणे के सभी छात्र एवं युवा संगठनों ने जयप्रकाश जी का नागरिक अभिनंदन करने का प्रस्ताव रखा तथा यह करने हेतु गोपीनाथ जी के नेतृत्व में काम करने पर सभी छात्र-युवा संगठनों ने हामी भर थी। श्री मुंडे के असामयिक निधन पर पुणे के राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्रों एवं संघ परिवार में व्यापक शोक छाना स्वाभाविक ही था।
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