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सरकार असरदार होनी चाहिए। कुछ और हो या न हो लेकिन सत्ता को शर्म तो आनी ही चाहिए। जो कुछ बांदा में उस लड़की के साथ हुआ है, वह सभ्य समाज के मुंह पर जोरदार तमाचा है। उस पार्टी को सत्ता में रहने का कोई हक नहीं है, जो मां, बेटियों की इज्जत सुरक्षित न रख सके। ढाई साल से उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर काबिज अखिलेश यादव सरकार कितनी असंवेदनशील है, इसे बताने के लिए सूबे में एक के बाद एक घट रही बलात्कार,छेड़खानी एवं हत्या की घटनाएं ही पर्याप्त हैं।
सपा शासन में अपराध की घटनाएं
सरकार बनने से पहले सपा ने वादा तो यह किया था कि वह मायावती के कुशासन से मुक्ति दिलाकर उत्तर प्रदेश को एक अच्छी सरकार देंगे, विकास की गंगा बहेगी और भ्रष्टाचारमुक्त शासन व्यवस्था कायम होगी। लेकिन अखिलेश ने यह वादा सिर्फ और सिर्फ वोट पाने के लिए जनता से किया था। वास्तविक हालत देखंे तो सपा सरकार ने दो वर्ष ढाई महीने के अपने शासन में प्रदेश की जनता को लूट,बलात्कार व हत्या के सिवा कुछ नहीं दिया। 15 मार्च 2012 को जब अखिलेश ने सूबे की सत्ता संभाली थी। अखिलेश के शपथ लेते ही सपा कार्यकर्ताओं ने शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर चढ़कर खूब हुड़दंग काटा था। शुरुआती कार्यशैली से ही लग गया था कि सपा कार्यकर्ता इस शासन में कुछ गुल खिलाने वाले हैं। हुआ भी यही जिसका अंदाजा लगाया जा रहा था। अखिलेश राज में सपा कार्यकर्ता गाडि़यों में झंडे लगाकर प्रदेश में आतंक का माहौल बनाए हुए हैं। अपराधियों को सपा नेताओं का खुला संरक्षण उनके हौसले बढ़ा रहा है जिसके चलते वह खुलेआम घटनाओं को अंजाम देते फिर रहे हैं। वैसे सपा शासन में कानून तोड़ने वाली घटनाओं का आंकड़ा ही अपने आपमें बहुत कुछ बताने को पर्याप्त है। पर,बदायूं के कटरा सआदतगंज में दो नाबालिग बहनों से दुष्कर्म और उनकी हत्या, बरेली के बहेड़ी क्षेत्र की 22 वर्षीय युुवती के साथ सामूहिक दुराचार और तेजाब पिलाकर हत्या, आजमगढ़, इटावा में वंचित बालिकाओं के साथ सामूहिक दुराचार एवं नोएडा की ताजा घटनाएं, सूबे की दिशा व दशा की कहानियां बयां कर रही हैं। ज्यादा पीछे न जाएं और सिर्फ एक सप्ताह की घटनाओं पर नजर डालें तो सरकार के असरदार होने की पूरी सच्चाई सामने आ जाती है। साथ ही सरकार का चरित्र भी उजागर हो जाता है। इसके बाद भी उसको किसी भी प्रकार की कोई शर्म तक नहीं है। जब यह नहीं है तो फिर सबक लेने और संवेदनशील होने की जरूरत ही क्या? जिस पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगे की विभीषिका की मूल वजह एक लड़की से छेड़छाड़ ही थी, उसी पश्चिम में सिर्फ एक सप्ताह के भीतर आठ साल की बच्ची से लेकर 60 साल की वृद्घा तक के साथ बलात्कार की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। दूसरी जगह की बात छोड़ भी दें तो खुद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के गृह नगर इटावा में एक महिला को दबंगों ने महज इसलिए मार-मारकर अधमरा कर दिया क्योंकि वह अपनी बेटी के साथ घटी घटना की पुलिस में रपट लिखवाना चाहती थी। इस मामले में रपट तब लिखी गई जब भाजपा के पूर्व विधायक और शुरू से ही मुलायम सिंह यादव से दो-दो हाथ करने की पहचान रखने वाले सुशासन प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक अशोक दुबे के नेतृत्व में धरना-प्रदर्शन हुआ। मुलायम का गृहनगर ही नहीं उनके संसदीय क्षेत्र मैनपुुरी में भी 29 मई को तीन सगी बहनें गायब हो गईंं।
हर माह 300 बलात्कार
अब आपको हम सपा नेताओं व स्वयं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की असंवेदनशीलता की कुछ बानगी दिखा रहे हैं- जिस बदायूं में दो नाबालिग सगी बहनों से बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी गई, वहां से मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेन्द्र यादव सांसद हैं। पर उन्हें दो दिन बाद तब अपने संसदीय क्षेत्र जाने का समय मिला जब दूसरे दलों के नेताओं ने वहां पहुंचना शुरू कर दिया। मीडिया में मामला तूल पकड़ता गया पर, सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो दो हाथ और आगे निकल गए। वह बदायंू तो गए नहीं उल्टे शर्मनाक राग जरूर अलाप रहे हैं। कानपुर में एक निजी कार्यक्रम में पहुंचने पर महिला पत्रकार ने इन घटनाओं पर उनसे सवाल पूछ लिया तो उन्होंने तंज कसते हुए जवाब दिया 'आप तो सुरक्षित हैं न। आपको तो कोई खतरा नहीं हुआ।' ये है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का जनता को देखने का नजरिया। मुख्यमंत्री को महिला पत्रकार के सवाल का इस तरह से जवाब देने में शर्म नहीं आई? तो सरकारी अधिकारी भी पीछे क्यों रहें। इन घटनाओं पर जब पत्रकारों ने सवाल किया तो आईजी एसटीएफ आशीष कुमार गुप्ता ने जवाब दिया,'यहां तो प्रतिदिन सिर्फ 10 बलात्कार होते हैं। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के आधार पर यह आंकड़ा 22 होना चाहिए।' यह उस सरकार के अधिकारियों के बयान हैं, जिसने दो साल और ढाई महीने पहले कहा था, 'सपा' उ.प्र. की सूरत बदलेगी और अपराधियों की जगह जेल में होगी, कानून का शासन होगा। लोगों को भी उम्मीद थी कि ऐसा ही होगा। प्रदेश की जनता को उम्मीद तब और हो गई जब मुलायम सिंह ने यह कहा कि कानून-व्यवस्था से समझौता नहीं किया जाएगा तो लगा कि इंजीनियर अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी न सिर्फ अपना चेहरा नया बनाएगी बल्कि नेताओं को अपना चरित्र भी बदलना होगा। लेकिन उसी शाम को लखनऊ में एक विधायक ने एक सिपाही को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था।
महिला मोर्चा का अखिलेश के खिलाफ प्रदर्शन
कानून-व्यवस्था की बात करें तो सरकार और अपराधियों के बीच पूरे ढाई साल से लुका-छिपी का खेल चल रहा है। सपा मुखिया ने पूरे ढाई साल में शायद ही कोई महीना ऐसा रहा हो, जब उन्होंने कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार को निशाने पर न लिया हो। उन्होंने यहां तक कहा, 'मैं अगर मुख्यमंत्री होता तो 15 दिन में सूबे की कानून-व्यवस्था ठीक कर देता।' पर, अप्रैल 2013 में मुलायम के मुंह से निकली यह चिंता जून 2014 में भी दूर नहीं हो पाई। मुलायम के यह कहने के बाद जुलाई 2013 में सपा के ही पूर्व विधायक सर्वेश सिंह की आजमगढ़ में हत्या हो गई। अंबेडकरनगर में पहले विहिप कार्यकर्ता रामबाबू गुप्ता की हत्या कर दी गई तो कुछ महीने बाद दिसंबर में स्व़ रामबाबू के भतीजे राममोहन की हत्या कर दी गई। दोनों घटनाओं में सपा के स्थानीय विधायक अजीमुल्ला हक का नाम सामने आया। बसपा शासन में डाक्टरों की हत्या हुई थी तो सपा की सरकार में कुंडा के क्षेत्राधिकारी जियाउल हक की हत्या कर दी गई। वहीं वाराणसी के डिप्टी जेलर अनिल त्यागी को मौत के घाट उतार दिया गया।
हद हो गई, अब तक नहीं आए मुख्यमंत्रीजी
सपा दबंगई व अपराधियों को संरक्षण देने का चरित्र न बदल पाई और न मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से अपना मोह छुड़ा पाई। सपा आई तो इस दावे के साथ थी कि किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। लेकिन हुआ उल्टा। सरकार हर घटना पर एकतरफा कार्रवाई करती दिखी। मुजफ्फरनगर में पहले सिर्फ हिंदू पक्ष की गिरफ्तारी हुई। आर्थिक सहायता भी सिर्फ मुस्लिम पक्ष को देने की घोषणा हुई। सरकार आने के बाद दशहरा व दुर्गापूजन के बाद प्रतिमाओं के विसर्जन में बाधाएं खड़ी की गइंर्ं। लखनऊ में अलविदा की नमाज के बाद नमाजियों ने जमकर हुड़दंग किया। वाहन फूंके गए, पर उन पर कार्रवाई करने के बजाए उल्टे उन्हें संरक्षण प्रदान किया। हद तो तब हो गई जब अखिलेश सरकार ने आतंकी घटनाओं के आरोपियों से मुकदमा हटाने का ऐलान कर दिया।
राज्य में दंगे पर दंगे होते रहे, लोगों के घर फूंके जाते रह पर हमारेे मुख्यमंत्री ऐसे अनजान और बेचारे बने रहे जैसे प्रदेश अमन और चैन का जीवन जी रहा हो। लखनऊ में 15 वषार्ें बाद शिया-सुन्नी दंगा भी हो गया। हाल यह है कि सपा के सरकार में आने के बाद सूबे में 200 से ऊ पर दंगे हो चुके हैं। इनमें लगभग 40 दंगे तो बड़े हैं। छोटी-छोटी घटनाओं पर दंगे हुए। उदाहरण के लिए कहीं राशन वितरण को लेकर दंगा हो गया तो जौनपुर में बकरी को कुत्ते के काटने पर। मेरठ के नगलामल में मंदिर में लाउडस्पीकर बजाने पर दंगा भड़क गया।
पुलिस की साख पर सवाल !
राज्य की दशा को सुधारने का दंभ भरने वाले 'नेताजी' का चेहरा भी सामने आ गया। लोकसभा चुनाव में सपा मुखिया शिक्षा मित्रों को धमकी देते दिखे कि वोट नहीं दिया तो नौकरी नहीं मिलेगी। जब राजा ऐसे बयान दें तो मंत्री पीछे कैसे रह सकते हैं! सरकार के एक अन्य मंत्री कह रहे हैं कि वोट नहीं दिया है तो लैपटाप क्यों दें। यही नहींं बेरोजगारी भत्ता योजना भी बंद करने की बात कही जा रही है। हार से खिसियाई सपा ने गांवों और शहरों में बिजली न देकर अपना गुस्सा जनता पर उतारा है।
मुस्लिम तुष्टीकरण कर मुसलमानों के वोट हथियाने के लिए उसने शुरू से ही खेल खेलना प्रारम्भ कर दिया था। शपथ लेने के तुरंत बाद मुस्लिम लड़कियों को 30 हजार रुपये की आर्थिक सहायता का फैसला हो अथवा कब्रिस्तान की चहारदीवारी बनाने का फैसला। लेकिन सवाल उठता है कि हिन्दुओं की लड़कियों के लिए अखिलेश ने ऐसी योजना क्यों नहीं चलाई? क्या हिन्दू मां,बहनों ने सपा को विधानसभा में वोट नहीं दिया? क्या अखिलेश के लिए प्रदेश की मां,बहनों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है? इन तमाम विषयों पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने लैपटाप और बेरोजगारी भत्ता योजना को बंद करने की प्रक्रिया को चुनावी हार की हताशा बताया और कहा कि सपा सरकार को अब समझ में आया है कि उन्होंने सिर्फ वोट हित में काम किया, जनहित के लिए नहीं। शर्मनाक हार की खीझ निकालने के लिए उन योजनाओं को बंद करने की तैयारी में है, जिनकी उपलब्धियों का वह ढिंढोरा पीटती रही है।
– धीरज त्रिपाठी
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