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सीरिया में अनेक वर्षों से गृहयुद्ध चल रहा है। एक तरफ वहां की सरकार है,तो दूसरी तरफ सरकार विरोधी विद्रोही हैं। विद्रोही वहां के राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता से हटाकर शरीयत आधारित सरकार बनाना चाहते हैं,लेकिन असद भी कम नहीं हैं। वे विद्रोहियों का डट कर मुकाबला कर रहे हैं। इस गृहयुद्ध में जीत किसकी और कब होगी,यह तो समय बताएगा,पर इसका सबसे बड़ा प्रभाव सीरिया की अर्थव्यवस्था और वहां के बच्चों पर पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रपट के अनुसार सीरिया के 11 लाख से अधिक बच्चे शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं। जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनके जन्म प्रमाणपत्र भी नहीं बन पा रहे हैं। जिन बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल जाना चाहिए वे आतंक के माहौल में तम्बुओं के नीचे सिसक-सिसक कर बढ़ रहे हैं। हजारों बच्चे ऐसे हैं,जिनकी उम्र 10 साल से ऊपर है। इन बच्चों ने अब तक स्कूल भी नहीं देखा है। लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। लोगों के शरणार्थी बनने से सीरिया की आर्थिक हालत भी बिगड़ चुकी है। उत्पादन पूरी तरह ठप हो चुका है। लोगों का मानना है कि यदि सीरिया में गृहयुद्ध और कुछ साल चला तो लाखों युवा अंगूठा छाप हो जाएंगे और सीरिया के लोग अन्न के लिए भी तड़पेंगे। आगे चल कर ये अंगूठा छाप युवा क्या करेंगे,यह भी चिन्ता की बात है। लेकिन इन युवाओं की चिन्ता न तो विद्रोहियों को है और न ही वहां की सरकार को। उन मुसलमानों को भी यह चिन्ता नहीं है,जो सीरिया के गृहयुद्ध में हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर के मुसलमानों को प्रेरित कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सीरिया के गृहयुद्ध में भारत सहित अनेक देशों के जिहादी विद्रोहियों की ओर से लड़ रहे हैं।
ल्ल प्रस्तुति : अरुण कुमार सिंह
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