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इसमें सन्देह नहीं कि यह जीत केवल पार्टी की जीत नहीं है बल्कि यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत है।
हर देश के इतिहास में एक ऐसा निर्णायक पल आता है जिसमें भविष्य की धारा को बदलने का माद्दा होता है। भारत में 16वां आम चुनाव एक ऐसे ही पल का प्रतिनिधित्व कर गया। आजादी के बाद पहली बार किसी राजनीतिक दल ने सुशासन के मुद्दे पर प्रचण्ड जनादेश प्राप्त किया है। पहले की यूपीए सरकार की नाकामियों के बखान में मीडिया और अखबारों ने विस्तार से बता ही दिया है इसलिए उस विषय पर ज्यादा कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। यूपीए के विरुद्ध उपजे भीषण आक्रोश को मोदी समर्पित लहर में परिवर्तित करना एक बड़ी चुनौती थी। भाजपा के राजनीतिक विरोधियों ने मोदी लहर को मीडिया और पैसे के दम पर उपजी झूठी लहर बताया था लेकिन उन्हें मोदी के नेतृत्व में काम कर रही भाजपा की टीम भावना, रणनीति, योजना और क्रियान्वयन में की गई कड़ी मेहनत की रत्तीभर जानकारी नहीं थी।
यूपीए को उखाड़ कर उसकी जगह एक स्थाई और काम करने वाली सरकार को बिठाने की देशव्यापी मांग के जवाब में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में ऐतिहासिक और विशाल चुनाव अभियान चला। ये अभियान दोतरफा था। उसका पहला आयाम था यूपीए सरकार की हर मोर्चे पर विफलता को रेखांकित करना और दूसरा, मतदाताओं को यह भरोसा दिलाना कि भाजपा ही एक सही विकल्प है। भाजपा सदा से कार्यकर्ता आधारित पार्टी रही है। यह एकमात्र ऐसी पार्टी रही है जिसमें कभी दो फाड़ नहीं हुए हैं। नरेन्द्र मोदी को पहले चुनाव प्रचार समिति का नेता बनाने और बाद में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला किसी परिवार या चापलूस मण्डली का फैसला नहीं था बल्कि जनता में उनकी दिनोंदिन बढ़ती लोकप्रियता से उपजा था। पहले की राजग सरकार का प्रदर्शन भी विश्वास को बढ़ाने वाला पक्ष रहा। नरेन्द्र मोदी युवा भारत की आकांक्षाओं से खुद को एकाकार करने में कामयाब रहे। 21वीं सदी भारत की सदी बताई जाती थी लेकिन यूपीए सरकार ने 10 साल से भी कम समय में भारत की विकास गाथा को शून्य कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चूंकि मुख्य धारा का मीडिया ज्यादातर मोदी विरोधी ही रहा, इसलिए उन्होंने युवा के साथ सीधा जुड़ने में सोशल मीडिया का कामयाब उपयोग किया। नरेन्द्र मोदी का जिस समय नाम आगे किया गया था तब बहुत से लोगों ने कहा था कि अब राजग, खासकर भाजपा का कोई नामलेवा भी नहीं बचेगा। हालत यह हो गई कि सहयोगी दल भी छिटक गए और घटक दलों की संख्या 3 रह गई। लेकिन उन सबको गलत साबित करते हुए भाजपा 25 दलों का चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने में कामयाब रही। भाजपा तमाम सामाजिक समूहों और राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रही।
यह चुनाव पहले के सभी चुनावों से हर मायने में अलग रहा। 1998 और 1999 में भाजपानीत राजग सत्ता में रह चुका था। लेकिन उस समय रामजन्मभूमि आन्दोलन ने भाजपा को भारतीय राजनीति के केन्द्र में पहुंचाया था। अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व उसमें बेहद प्रभावी भूमिका में रहा था और राजग ने एक स्पष्ट जनादेश जीता था। उससे पहले 1977 का चुनाव जनता पार्टी ने जेपी आन्दोलन की लहर पर सवार होकर जीता था। 1989 के चुनाव भी बोफर्स और जनता की उम्मीदों पर खरे उतरने में राजीव गांधी की नाकामी के ईद-गिर्द रहे थे। इसलिए कह सकते हैं कि आजादी के बाद पहली बार भारतीय मतदाताओं ने सुशासन के मुद्दे पर वोट दिया। यह जानते हुए कि वह शासन के मुद्दे पर मतदाताओं का सामना नहीं कर सकती, कांग्रेस ने भाजपा के चुनाव प्रचार को परास्त करने की हर चाल अपनाने की कोशिश की। लेकिन वह यहां भी सफल नहीं हुई। चुनाव प्रचार की धार को दमदार बनाए रखने का पूरा श्रेय नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को जाता है। उन्होंने हर तरह के विरोध का और कामयाबी के साथ प्रतिकार किया और हर परीक्षा में खरे उतरे। उन्होंने तीन लाख किमी. का प्रवास करके चुनाव प्रचार में पूरी शारीरिक और मानसिक ताकत झोंक दी थी। ह्यकांग्रेस मुक्त भारतह्ण और ह्यभारत 272+ह्ण जैसे विचार जनता के मनोभाव से उपजे थे।
इसमें सन्देह नहीं कि यह जीत केवल पार्टी की जीत नहीं है बल्कि भारत और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत है।
-मुरलीधर राव(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं)
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