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शिक्षा एवं मानव संसाधन
शिक्षा को मानव जीवन का आधार माना गया है। मानव संसाधनों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रत्येक क्षेत्र में उच्च शिक्षण एवं शोध के साथ प्राविधिक शिक्षा, पैरामेडिकल एवं मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़नी चाहिए। प्रत्येक राज्य में एम्स जैसे स्वास्थ्य संस्थानों की स्थापना, आईआईएम और आईआईटी में प्रशिक्षण एवं हुनर प्रदान करने के जरिए युवकों एवं युवतियों को आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए।
क्या हो दृष्टिकोण
प्राथमिक से लेकर माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा को प्रतिभा की अभिव्यक्ति का पर्याय बनाया जाए।
उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और शोध को प्राथमिकता देते हुए रचनात्मकता को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत प्रतिभाओं को शुरुआती दौर में गांवों में कार्य करने के लिए भेजना चाहिए।
प्राविधिक, व्यावसायिक और प्रबंधन शिक्षण में गुणवत्तायुक्त प्रशिक्षण हेतु सुयोग्य शिक्षाविदों को उक्त संस्थानों से जोड़कर शिक्षार्थियों को लाभ प्रदान करना चाहिए।
फौरन करना होगा
ल्ल आरटीई के आलोक में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को प्रभावी बनाना होगा।
ल्ल शोध की गुणवत्ता बढ़ाते हुए उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक उपलब्ध कराने होंगे।
दीर्घकालिक लक्ष्य
ल्ल बालिका शिक्षा प्रभावी ढंग से क्रियान्वित हो
ल्ल प्राविधिक एवं व्यवसाय शिक्षा में गुणवत्ता लाना।
यह है वादा
ल्ल शिक्षकों एवं शोधकर्ताओं की भारी कमी, शिक्षा एवं शोध की गुणवत्ता और अधिकतर पाठ्यक्रमों से जुड़ी रोजगार परकता की समस्या का समाधान निकालने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी
किसी भी देश की बौद्धिक प्रगति ही उसके आर्थिक एवं सामाजिक विकास का आधार होती है। देश के उच्च शिक्षा संस्थानों विशेषकर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में अध्यापकों और शोधार्थियों की कमी है। इसको सुधारने का एक ही उपाय है कि युवाओं को शोध के लिए प्रोत्साहित किया जाए,। अध्ययन-अध्यापन में संलग्न लोग शोध करने के लिए आगे आएं, गुणवत्ता तभी बढ़ेगी। शिक्षाविद् दौलत सिंह कोठारी ने कहा था कि शिक्षा में दिन-प्रतिदिन परिवर्तन होता है। उच्च शिक्षण संस्थानों को ऐसी कार्य संस्कृति बनानी चाहिए जो आगे के लिए उपयोगी हो। देश में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए अनेक नियामक संस्थाएं हैं। दुर्भाग्य से इनकी साख घटी है लोगों का इनकी कार्यप्रणाली से विश्वास घट गया है। राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा को ध्यान में रखते हुए ऐसी संस्था बनाई जानी चाहिए जो नियमों के पालन, अनुपालन और गुणवत्ता के मानदंडों को स्थापित करने का प्रयत्न करे। उसे नए क्षेत्रों में नए विषयों का सूत्रपात करते हुए अनुसंधानपरक स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के संचालन का अधिकार मिलना चाहिए।
-प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत
पूर्व निदेशक, एनसीईआरटी
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