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राष्ट्रवाद का कमल खिला है शहरों, कस्बों, गांवों में।
गन्ध लगाने चली महावर खुली हवा के पांवों में।
पंख खोलकर उड़े पखेरू आशाओं, विश्वासों के।
दिवस बहुरने वाले लगते हैं कुण्ठित मृदुहासों के।
स्वागत करता मन अंगनाई में फैली अरुणाई का।
स्वागत सौ-सौ बार देश की इस जाग्रत तरुणाई का॥
हमको भूखे पेट सुलाने वाली रातें बीत गयीं।
पक्षाघाती लोरी गाने वाली रातें बीत गयीं।
गद्दारों का मान बढ़ाने वाली रातें बीत गयीं।
देशभक्ति नीलाम कराने वाली रातें बीत गयीं।
स्वागत है इन सब रातांे की मनमोहिनी विदाई का।
स्वागत सौ-सौ बार देश की इस जाग्रत तरुणाई का॥
राजनीति में सौदेबाजी का अब नाम नहीं होगा।
लफ्फाजों की तीरन्दाजी का अब नाम नहीं होगा।
सांसें उखड़ रही हैं बदअमनी फैलाने वालों की।
पेटों में दाढ़ी रख सच को आंख दिखाने वालों की।
स्वागत उल्लासों मंे लिपटी लपटांे की अंगड़ाई का।
स्वागत सौ-सौ बार देश की इस जाग्रत तरुणाई का॥
अभी न फिर भी आयी मित्रों, घड़ी हमारे सोने की।
हमें सफाई करनी है अपने घर के हर कोने की।
भ्रष्टाचारी तन्त्र नोच, हर क्षरण रोकना है हमको।
कराहती प्रतिभाओं में उत्साह झोकना है हमको।
चित्र दिखाना है करनी से कथनी की सच्चाई का।
स्वागत सौ-सौ बार देश की इस जाग्रत तरुणाई का॥
भारत के उज्ज्वल भविष्य का रथ है अपने हाथों में।
नव निर्माणों का, विकास का अथ है अपने हाथों में।
सिंहासन के साथ-साथ जनपथ है अपने हाथों में।
और सफलता की दुल्हन की नथ है अपने हाथों में।
लक्ष्य साधकर चलना है हर गौरव की ऊंचाई का।
स्वागत सौ-सौ बार देश की इस जाग्रत तरुणाइ र् का॥
-आचार्य देवेन्द्र देव
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