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विविधताओं की जमीन किसी एक बात पर इतनी एकमत दिखे ऐसा आमतौर पर नहीं होता, परंतु इस बार ऐसा है। लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय लोकतंत्र जनता-जनार्दन के दिल से निकली एकता की कुछ ऐसी ही आहट सुन रहा है। ….देशभर की आवाज जोड़कर बना सतरंगी कोलाज, 15 करोड़ नए मतदाताओं की चुनाव प्रक्रिया में दिलचस्पी और लिंग या उम्र के फर्क से परे एक दिशा में बढ़ते कदम बताते हैं कि आने वाले दिनों में भारतीय आकांक्षाओं का आसमानी फैलाव सब बदल देने वाला है।
(जनमत सर्वेक्षण विशेषांक/ 30 मार्च)
सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की टोली और कुछ विश्लेषक टीवी बहसों में लहर को रस्मी तौर पर नकारते हैं। … राजनीतिक हित और लालसा रखने वाले बयानवीरों और विश्लेषकों को एक ओर रख दिया जाए तो देश भर से मिल रहे संकेत बताते हैं कि इस बार जनता के दिल में कुछ खास चल रहा है। इस हलचल का उत्सव देश कुछ दिन बाद मनाएगा।
('लहर जनता की' अंक 20 अप्रैल) देशभर में 317+ लोकसभा सीटों पर राजग की लहर का पूर्वानुमान
वंशवादी राजनीति के कस्बाई गढ़ों में भी लोग विकासपरक राजनीति के उस मॉडल की चर्चा करने लगे हैं जिससे उनकी जिंदगी बेहतर हो सकती है। बहरहाल, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के तौर पर जो दहाई के आंकड़े पर भी महंगाई की सुरसा को नकारने वालों को जनाकांक्षाओं की इस हिलोर की अनदेखी करने की छूट मिलनी ही चाहिए।(ह्यजिन्हें नहीं दिखती लहर, वो जानेंह्ण
पाञ्चजन्य सम्पादकीय 4 मई अंक)
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