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चहचहाते कलरव करते रंग बिरंगे पक्षी सभी को अच्छे लगते हैं। हर पक्षी की कुछ न कुछ विशेषताएं होती हैं, किसी की आवाज बेहद सुरीली होती है, किसी पक्षी के रंग बड़े चटकीले होते हैं। आज हम आपको बया यानी ह्यवीवर बर्डह्ण के बारे में बता रहे हैं जो बहुत करीने से बेहद सुंदर घोंसला बनाता है। ये बड़ी मेहनत से अपना घोंसला बुनते हैं।
देखने में ये बया गौरेया जैसा होता है। बस इसकी चोंच थोड़ी मोटी होती है और पूंछ छोटी होती है। बया जब आवाज निकालते हैं तो चिट-चिट जैसी ध्वनि सुनाई देती है। बया झुंड में रहना पसंद करते हैं। इनकी कई प्रजातियां होती हैं। इनके रंग अलग-अलग तरह के होते हैं, लेकिन इनकी आदतें एक जैसी होती हैं। बया पक्षी का रंग प्रणयकाल में गहरा पीला और पंख चमकीले हो जाते हैं। बरसात की शुरुआत होते ही बया का प्रणयकाल शुरू हो जाता है। इसी दौरान बया अपना घोंसला बनाना शुरू करते हैं।
बया खेतों के आसपास झुरमुटनुमा पेड़ों विशेषकर कीकर पर अपने घोंसले बनाते हैं। इनका घोंसला टहनी के सहारे हवा में लटका होता है। घोंसले की विशेषता होती है कि कितनी भी तेज हवा चले इनका घोंसला नीचे नहीं गिरता और पेड़ की पतली सी टहनी पर हवा में झूलता रहता है। जिस स्थान पर ज्वार, गन्ने की फसल ज्यादा होती है, उसी के आसपास के पेड़ों पर बया अपना घोंसला तैयार करता है।
घोंसला बनाने की जिम्मेदारी नर बया की होती है। आधा घोंसला तैयार होने पर मादा बया उसका निरीक्षण करती है और पसंद न आने पर घोंसले में रहने से इंकार कर देती है। यही कारण है कि बया के घोंसलों के पास अनेक आधे बने हुए अधूरे घोंसले भी लटके देखे जा सकते हैं। इस पक्षी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे एक ही बार अपने घोंसले में रहना पसंद करते हैं। बया हर सीजन में एक नया घोंसला बनाता है। कई बार बया बिजली की तारों पर भी लटकता हुआ घोंसला बना लेते हैं। पेड़ों और जंगलों की अंधाधुंध कटाई के चलते बया का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। अब जंगलों में बया के घोंसले कम ही नजर आते हैं।
प्रतिवर्ष वृक्षों की कटाई-छंटाई करने से भी वृक्षों पर बनाए गए बया के घोंसले लुप्तप्राय हो गए हैं। यदि इसी रफ्तार से ये पक्षी घटते रहे तो आने वाली पीढ़ी इन जीवों को देख नहीं पाएगी । वृक्षों की कटाई व पौधों की संख्या में कमी के चलते उनके आश्रय स्थल ही लुप्त हो रहे हैं। यदि इन पक्षियों को बचाना है तो हमें पेड़-पौधों की संख्या में वृद्धि करनी होगी।
*बाल चौपाल डेस्क
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