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राजधर्म, पत्नीधर्म,

by
Apr 26, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Apr 2014 14:48:50

आनन्द मिश्र अभय
आ ज जहाँ देश भर में मोदी-मोदी का स्वर चतुर्दिक् ध्वनित-प्रतिध्वनित हो रहा है और यह स्वर निरन्तर तीव्रतर होता जा रहा है, वहीं भारत-विरोधी, राष्ट्रघाती शक्तियों की बौखलाहट भी बढ़ती जाये, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। प्रचार-प्रसार माध्यमों में जिस प्रकार से कतिपय साक्षात्कार प्रसारित हो रहे हैं, प्रकाशित हो रहे हैं, उनके केन्द्र में भी घुमा-फिराकर मोदी ही दिखलायी पड़ते हैं। समाचारों के शीर्षक-उपशीर्षक भी अपनी-अपनी तरह से मोदी की ही निन्दा-स्तुति के द्योतक प्रतीत होते हैं; परन्तु इन सबका सार-संक्षेप जिन चार बिन्दुओं के रूप में उभरकर सामने आता है, वे हैं- 1 राजधर्म, 2 पतिधर्म,                               3 पत्नीधर्म और 4 अधर्म।
तो पहले ह्यराजधर्मह्ण को लेते हैं। दूरदर्शनी बहसों, (जिन्हें ह्यचोंचबाजीह्ण कहना अधिक उपयुक्त होगा) में मोदी के विरुद्घ इस शब्द के प्रयोग को लेकर तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल जी को साक्ष्य रूप में प्रस्तुत करनेवाले भूल जाते हैं कि तत्सम्बन्धी ह्यक्लिपह्ण में ही नरेन्द्र मोदी अटल जी से कह रहे हैं कि ह्यवही तो कर रहा हूँ।ह्ण बाद में मुम्बई में अटल जी ने स्वयं सार्वजनिक रूप से कहा था कि गुजरात में राजधर्म का पालन किया गया है; पर जिन्हें तथ्यहीन बातें ही प्रचारित करनी हों। वे ऐसे सभी प्रकरणों में सन्दर्भ से काटकर आधे-अधूरे वाक्य या कथन को ही लगातार बोलते रहने में हिटलर के प्रचारमन्त्री गोयबल्स को भी मात देने पर तुले रहने से भला क्यों बाज आने लगे? इन ह्यगोयबल्सोंह्ण में वामपंथी ही नहीं, सारी सेक्यूलर जमातें गोलबन्द दिखती हैं। इनसे कौन पूछे कि तुम्हें ह्यराजधर्मह्ण के अर्थ का कुछ अता-पता भी है? ह्यराजधर्मह्ण क्या होता है, ह्यमहाभारतह्ण के ह्यशान्ति पर्वह्ण में जाकर पढ़ो। तुमने ह्यराजधर्मह्ण का कैसा पालन किया है, पश्चिम बंगाल, असम, केरल, और जम्मू-कश्मीर ही नहीं, स्वयं दिल्ली इसकी गवाह है। दिल्ली ही नहीं पूरा देश गवाह है। गोधरा में घांची मुसलमानों का तो इतिहास ही रहा है दंगा करने का। साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को बाहर से बन्दकर पेट्रोल डालकर जलाने वालों का नेता और ह्यमास्टर माइण्ड हाजी बिलाल और उसके साथी तो ह्यसेक्यूलरिज्म की झण्डाबरदारह्ण कांगे्रस के ही थे। अयोध्या से लौटती इस टे्रन पर रुदौली (जनपद बाराबंकी, उ़ प्ऱ) स्टेशन पर भी मुस्लिम गुण्डों ने हमला किया था। रेलवे अधिकारियों और जी़आऱपी़ वालों ने आगे के सभी स्टेशनों को सावधान कर दिया होता, तो गोधरा-काण्ड शायद घटित ही नहीं होता। ध्यान रहे, तत्कालीन रेलमन्त्री थे वही नीतीश कुमार, जो आज मोदी को पानी पी-पीकर कोसते घूम रहे हैं, गोधरा में उस रेल डिब्बे में जिन्दा भून डाले गये तीर्थयात्रियों का कोई नाम नहीं लेता ! उनके परिजनों, गांव-घर के लोगों में प्रतिक्रिया न होती, तो आश्चर्य होता। प्रतिक्रिया अपेक्षित से कम ही हुई; पर उसे भी मात्र 72 घण्टे के अन्दर शमित कर देनेवाले मोदी को ह्यराजधर्मह्ण पढ़ाने वालो! जरा अपना चेहरा तो एक बार दर्पण में देखो। तीस्ता (सीतलवाड़) जावेद, अरुन्धती राय, शबनम हाशमी, शबाना आजमी जैसी चाण्डाल चौकडि़यों ने तो झूठ की सारी हदें तोड़ दीं, न्यायपालिका तक को भ्रमित करने के प्रयत्न से नहीं चूकीं। अमरीका तक जाकर मोदी-विरोधी प्रचार कर न केवल गुजरात; वरन् पूरे भारत को बदनाम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। एऩ डी़ टी़ वी़ इण्डिया, आई़ बी़ एऩ 7, स्टार न्यूज (अब ए़ बी़ पी़ न्यूज), आज तक जैसे टी़वी़ चैनलों के कुछ ह्यऐंकरोंह्ण में तो जैसे मोदी-विरोध की होड़ लगी रही, और इस सबकी पीठ पर था वह ह्यहाथह्ण जिसकी शीर्ष नेत्री के इशारे पर मोदी को ऐसे-ऐसे ह्यविशेषणोंह्ण से नवाजा जा रहा है कि कुछ पूछो मत! और इस ह्यहोलिका-दहनह्ण से मोदी तो प्रह्लाद बनकर निकले, पर ह्यहोलिकाह्ण का दहन अवश्यम्भावी बन गया है।
अब जरा ह्यपतिधर्मह्ण के पालन की बात। दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के ह्यदिग्विजयी पहलवानह्ण मोदी के विवाह की तिथि, पत्रा लेकर ढूंढने निकल पड़े। कुछ ह्यतहलकाह्ण मार्का पत्रकारों की खोजी टीम भी इस ह्यशुभ कामह्ण में लगायी गयी; पर खोदा पहाड़ और निकली चुहिया भी नहीं। मोदी की पत्नी की यह खोज पूरी हुई, तो पता चला कि मोदी ने पत्नी को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया। अन्य कोई युवक होता, तो भोग-विलास में डूब जाता; पर यहां तो था नरेन्द्र मोदी, राष्ट्र को परम वैभवशाली बनाने का स्वप्नद्रष्टा, जो उस स्वप्न को वज्र-संकल्प लेकर साकार करने के लिए परिव्राजक बनकर निकल पड़ा। बिना पत्नी की सहमति के क्या यह सम्भव था? तहलका-ब्राण्ड, गुलेल ब्राण्ड, कोबरा ब्राण्ड और न जाने ऐसे कितने ब्राण्डों के ह्यधुरन्धर खोजी पत्रकारोंह्ण को मोदी की परिणीता के मुख से सुनने को क्या मिला, ह्यउनके बारे में सुनकर पढ़कर अच्छा लगता है; उनको उन्नति-पथ पर बढ़ते देखकर मन प्रसन्न होता है।ह्ण गये थे कपास ओटने, सुनने को मिला ह्यहरि-भजन।ह्ण हां; मोदी ने उस तरह का पतिधर्म नहीं निबाहा, जिसकी इन पत्रकारों को तलाश थी- अपनी पत्नी नैना साहनी को टुकड़े-टुकड़े कर तन्दूर में जलाने वाले कांग्रेसी नेता किसी सुशील शर्मा की तरह पतिधर्म निबाहने की आशा थी इन्हंे मोदी से; या फिर आज के शशि थरूर जैसा ह्यपतिधर्मह्ण निबाहने वाला समझ रहे थे मोदी को। मोदी ने ह्यपतिधर्मह्ण उसी तरह निबाहा, जैसे इस देश के अनेक मनीषियों ने। ह्यसेक्यूलरिज्म के मारेह्ण दिमागों में भारतीय धर्म-संस्कृति में रचे-बसे, त्यागी, तपस्वी राष्ट्रसेवियों या सेविकाओं की कल्पना कभी आ ही नहीं सकती। इनके मन-मस्तिष्क पर तो चलचित्र-जगत् के हीरो-हीरोइनों की तस्वीरें छायी रहती हैं।
ह्यपतिधर्मह्ण की एक झलक देखने के बाद अब आयें ह्यपत्नीधर्मह्ण पर। नरेन्द्र मोदी की पत्नी यशोदाबाई की खोज करनेवालों ने प्रकारान्तर से ह्यमातृशक्तिह्ण के उस देवी रूप को उजागर कर अनजाने ही भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रति लोकमानस को पुन: जाग्रत कर दिया है। यशोदाबाई जैसी पत्नी ने अपने धर्म-पालन का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है, वह विस्मयकारी उनके लिए तो हो सकता है, जो किसी डायना के किस्से उसके फोटो के साथ चटखारे ले लेकर छापते रहे हैं, किसी लब्धप्रतिष्ठ साहित्यिक पत्रिका के ह्यबेवफाई विशेषांकह्ण निकालने में ह्यगर्वह्ण का अनुभव करते रहे हैं; परन्तु जिन्होंने भारतीय वाङ्मय को थोड़ा-बहुत पढ़ा है; देश-विदेश व्यापी व्रत-पूजा की पौराणिक ही नहीं, लोककथाओं को भी अपने घर की बड़ी-बूढ़ी दादी-नानी आदि के मुख से सुना है, उन्हें कोई विस्मय हो ही नहीं सकता। भारतीय नारी के यशोदाबाई जैसे पूर्व उदाहरणों से अभिभूत उन महारानी विक्टोरिया के इस उत्तर को यदि ये सेक्यूलर पढ़े होते, तो शायद ये कभी किसी यशोदाबाई की तलाश में किसी ह्यकुलटा-बुद्घिह्ण का प्रतिनिधित्व करते नहीं दिखायी पड़ते। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट का जब निधन हो गया, तो शोक अवधि पूरी होने के बाद ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री ने विक्टोरिया के सामने यह प्रस्ताव रखा कि महारानी जी! अभी आपकी उम्र ही क्या है? आप चाहें, तो दूसरा विवाह कर सकती हैं। पार्लियामेण्ट से इस आशय का प्रस्ताव मैं पारित करा सकता हूं। विक्टोरिया कुछ क्षणों के मौन के बाद बोलीं- प्रधानमन्त्री जी! यदि मैं मात्र ग्रेट ब्रिटेन की महारानी होती, तो शायद आपके प्रस्ताव को मान भी लेती; परन्तु यह न भूलो कि मैं उस भारत की साम्राज्ञी भी हूं, जहां की स्त्रियां पति के न रहने पर अपना पूरा जीवन उसकी स्मृति को समर्पित कर तपस्विनी जैसी रहकर काट देती हैं। स्मरण रहे, विक्टोरिया की गणना उस समय की राजमहिषियों में एक श्रेष्ठ रूपसी के रूप मंे की जाती थी। देश पराधीन था; पर भारतीय नारी के पत्नीधर्म की महिमा की गुलाम थी भारत को गुलाम बनानेवाले देश की महारानी। भारतीय नारी के पत्नीधर्म को ये सेक्यूलर सात जन्मों तक नहीं समझ सकते। सती अनसूया, सावित्री, सीता, सुलोचना के नामों को जाने दें, ये उन गौतम बुद्घ की पत्नी यशोधरा को ही याद कर लें।
यहां पर उन महामनीषी वाचस्पति मिश्र का प्रसंग याद आता है, जो महर्षि बादरायण के ह्यब्रह्मसूत्रोंह्ण पर आदि शंकराचार्य के महाभाष्य पर टीका लिखने में इतने तल्लीन थे कि उनकी पत्नी यथासमय उनके स्नान, ध्यान की सामग्री, भोजन आदि उनके समक्ष रखकर चली जाती थी, सामने कभी पड़ती ही नहीं थी कि काम में कहीं विक्षेप न पड़े। जब टीका पूरी हो गयी, तो एक महिला पर उनकी अकस्मात् दृष्टि पड़ी। चकित होकर उन्होंने उससे पूछा, देवी! तुम कौन हो? महिला बोली, स्वामी! मैं आपकी पत्नी भामती हूं। मिश्र जी ने पूछा कि क्या तुम्हीं मेरे भोजनादि की व्यवस्था करती रही हो? ह्यहांह्ण में उत्तर पाकर वे बोले, अच्छा अब अधिक अवस्था हो जाने के कारण मैं तुम्हें पुत्र-कलत्र तो दे नहीं सकता, महाभाष्य की इस टीका का नाम तुम्हारे नाम पर ह्यभामतीह्ण रख देता हूं। वाचस्पति मिश्र को शायद कम ही लोग जानते हों; पर उनकी टीका ह्यभामतीह्ण को सभी विद्वान् जानते हैं। पतिधर्म और पत्नीधर्म के इस एकाकार रूप को कोई सेक्यूलर भला कैसे समझ सकता है?
नरेन्द्र मोदी की पत्नी यशोदाबाई ने पति के मार्ग में बाधा न बनकर उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर निष्ठापूर्वक पढ़ाई की; शिक्षिका बनीं; सेवा-निवृत्त भी हो चुकी हैं। वे नंगे पैर रहती हैं; पति पर गर्व करती हैं; उनकी उन्नति के लिए साधनापूर्ण जीवन जीती हैं और इन दिनों देवभूमि उत्तराखण्ड के चारोंधाम (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) की तीर्थयात्रा पर 110 महिलाओं के साथ जानेवाली हैं। इतना ही नहीं; पति के प्रधानमन्त्री बनने पर आह्लाद का अनुभव तो करेंगी; परन्तु प्रधानमन्त्री आवास में पति के साथ रहने की कोई आशा-आकांक्षा भी नहीं रखतीं। ऐसी त्यागमूर्ति तपस्विनी देवीरूपा को नमन करने के बजाय दिग्विजय सिंह जैसे गुलामों के गुलाम लोग उस इटालियन ह्यफर्जी त्यागमूर्तिह्ण की आराधना करते फिरें, तो कोई कर भी क्या सकता है?
अन्त में बात ह्यअधर्मह्ण की। ह्यसेक्यूलरिज्मह्ण भारत मंे ह्यअधर्मह्ण का ही पर्यायवाची बन चुका है। इस धर्मप्राण देश में ह्यपंथनिरपेक्षह्ण अर्थात् सेक्यूलर अर्थात् अधर्मी अर्थात् पापी। भारत की जनता को धर्मच्युत करने के सेक्यूलर प्रयत्नों का यह प्रतिफल ही है कि पूरा देश ह्यमोदी नाम जहाजह्ण को ही तारणहार मान रहा है। सेक्यूलरों के छोटे-बड़े सभी जहाजों के डूब जाने का विश्वास होने पर उन पर अब तक पलते रहे बड़े-बड़े चूहों को उनसे कूदकर ह्यमोदी नाम जहाजह्ण पर चढ़ते देखकर भी जिनकी आंखें न खुलें, उन्हें ह्यदिवान्धह्ण प्रजातियों में ही परिगणित किया जा सकता है। भगवान् उनका भला करे!!

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