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-प्रशांत पोल –
'ई-गवनेंर्स' नामक शब्दावली का प्रचलन दुनिया में 90 के दशक से प्रारंभ हो गया था। देश में यह शब्दावली नब्बे के दशक के अंत में चर्चा में आने लगी। शुरू में तो ई-गवर्नेंस का अर्थ 'सरकारी कामकाज में कम्प्यूटर का उपयोग करने' तक ही सीमित माना जाता था। लेकिन बाद में ई-गवर्नेंस के साथ शब्द प्रयोग होने लगा 'आईसीटी' अर्थात इनफॅार्मेशन एवं कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी यानी ई-गवनेंर्स को लागू करने में कम्प्यूटर और संचार इन दोनों तकनीकों का प्रयोग होता है।
नब्बे के दशक की शुरुआत में भारत में रेलवे आरक्षण का कम्प्यूटरीकरण हुआ। आरक्षण केंद्र में जाकर ही सही, उस समय कहीं भी जाने-आने के लिए रेलवे का आरक्षण मिलना तो अपने देश में अजूबा था। लोगों को इस परियोजना से ई-गवर्नेंस का महत्व समझ में आने लगा।
लेकिन इसे भारत सरकार ने गंभीरता से लिया वर्ष 2006 से, केंद्र सरकार ने ई-गवर्नेंस को लागू करने के लिए राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना(एनईजीपी), 18 मई, 2006 को स्वीकृत की। इस पहल को गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों की सरकारों ने हाथों हाथ लिया। ग्रामीण जनता को सरकारी योजनाएं, बिना बाधा पहंुचाए देना यह अच्छा माध्यम था। कर्नाटक में 'भूमि' परियोजना, ई-प्रोक्योरमेंट परियोजना, गुजरात की ई-सिटी योजना, छत्तीसगढ़ की ई-पीडीएस योजना, ये सारे प्रभावी व्यवस्था के उदाहरण हैं।
इस ई-गवर्नेंस का एक और बड़ा फायदा यह है कि इसे उपयोग में लाने से पारदर्शी शासन व्यवस्था संभव है। मात्र कम्प्यूटर का उपयोग करने से प्रशासन से भ्रष्टाचार दूर नहीं होता है, किन्तु पूरे नियोजन के साथ यदि ई-गवर्नेंस की व्यवस्था को लागू किया जाए तो भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की कल्पना प्रत्यक्ष में की जा सकती है। लगभग दो वर्ष पहले, जब ई-गवर्नेंस परियोजना पर गुजरात सरकार ने 16 हजार विद्यालय शिक्षकों की भर्ती पूर्णत: ई-गवर्नेंस द्वारा की थी, ठीक उसी तरह जैसे अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में इंटरनेट द्वारा प्रवेश प्रक्रिया होती है। उन्हें ऑनलाइन आवेदन करना था। स्थानीय केंद्रों से अपने सारे प्रमाणपत्र सत्यापित करने थे और किस जिले में नौकरी चाहिए, यह प्राथमिकता देनी थी। इसके बाद सिर्फ गुजरात सरकार के पोर्टल पर परिणाम की प्रतीक्षा करनी थी। उस समय नरेन्द्र मोदी से सवाल किया गया था कि प्रत्यक्ष साक्षात्कार का क्या? बिना साक्षात्कार लिए आप किसी को कैसे नौकरी दे सकते हैं? इस पर मोदी ने कहा था, भला तीन-चार मिनट की प्रत्यक्ष भेंट में कोई किसी को कैसे समझ सकता है? भ्रष्टाचार का स्रोत है प्रत्यक्ष साक्षात्कार। इसीलिए उसे हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि छह माह बाद उन सभी का टेस्ट होगा और उसमें खराब प्रदर्शन करने वाले को निकाल दिया जाएगा।
यह अत्यंत महत्व की बात थी और इस तरह 16 हजार शिक्षकों की भर्ती हो गई। इसमें एक पैसे का भी भ्रष्टाचार नहीं हुआ और कोई विवाद की स्थिति भी नहीं बनी। यह उदाहरण है इस बात का कि प्रामाणिकता से ई-गवर्नेंस परियोजनाएं सभी क्षेत्रों में लागू कीं तो प्रशासन का भ्रष्टाचार निश्चित कम होगा।
इस ई-गवर्नेंस में ह्यईह्ण का अर्थ है ह्यइलेक्ट्रॉनिकह्ण। ई-गवर्नेंस परियोजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए पांच प्रमुख हिस्सों पर ठीक से अमल होना आवश्यक है।
1. ़ई-डाटा/ई-रिकॉर्ड्स
2़ ई-डिलीवरी/ (ई-वितरण)
3़. ई-प्रोक्योरमेंट/(ई-खरीद)
4़. ई-मॉनिटरिंग/ (ई-निगरानी)
5. ़ई-रिपोर्ट्स
भ्रष्टाचार का एक प्रमुख स्रोत है उचित जानकारी समय पर उपलब्ध न होना। सारी जानकारी फाइलों में दबी होती है और भ्रष्टाचार का सारा खेल यहीं से शुरू होता है। इसीलिए, प्रभावी ई-गवर्नेंस के क्रियान्वयन के लिए सारी जानकारी का डिजिटलाइजेशन (अंकरूपण) आवश्यक है। भूमि रिकॉर्ड की जानकारी, प्रॉपर्टी टैक्स का निर्धारण, वाहनों का पंजीकरण आदि जानकारी डिजिटल स्वरूप में उपलब्ध होना आवश्यक है। प्रारंभ के दिनों में कुछ राज्य सरकारों ने इस मूलभूत जानकारी को डिजिटलाइज किए बगैर ई-गवर्नेंस की परियोजना को लागू किया, जिसके कारण वह योजना असफल रही। हालांकि इस समय अनेक राज्य सरकारों ने इस आवश्यक जानकारी को डिजिटाइज किया है।
ई-गवर्नेंस द्वारा सुविधाएं तो प्रभावी रूप से निर्माण की गईं, लेकिन यदि वह सामान्य जनता तक, गरीब तबकों तक, समाज में उपेक्षित लोगों तक प्रभावी रूप से नहीं पहुंच सकी, तो उस ई-गवर्नेंस परियोजना का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों ने इस दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं। लेकिन अनेक राज्यों में अभी भी बहुत कुछ करना आवश्यक है। ई-सुविधाओं को सामान्य जनता तक पहंुचाने के लिए संचार की अत्याधुनिक सुविधाएं आवश्यक हैं। अनेक राज्यों ने इनफॉर्मेशन कियोस्क लगाए हैं।़ मध्य प्रदेश में ह्यएमपी ऑनलाइनह्ण के माध्यम से सामान्य जनता तक ई-सुविधाएं पहुंचाने का प्रयास किया गया है। लेकिन आज भी छोटे से छोटे गांव में या शहरों की उपेक्षित बस्तियों में यह सुविधा आसानी से नहीं मिलती। इसका प्रमुख कारण है, ह्यसंचार संरचनाह्ण की कमी होना।
भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में प्रत्येक गांव तक इंटरनेट का कनेक्शन देने की बात की है। यदि यह सत्ता में आती है, तो ई-गवर्नेंस की परियोजनाएं लागू करना सरल रहेगा। प्रशासन में भ्रष्टाचार का एक और स्रोत है ह्यसरकारी खरीदह्ण। इस सरकारी खरीद की परंपरागत पद्धति अत्यंत त्रुटिपूर्ण होने के कारण इसमें अनेक घोटाले होते हैं। वहीं ह्यआईसीटीह्ण की मदद से (अर्थात आईटी और संचार तकनीक का उपयोग कर के) ई-टेंडरिंग जैसी परियोजनाएं लागू कर के न सिर्फ भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है, बल्कि खरीद की सारी प्रक्रिया अत्यंत कम समय में पूरी हो सकती है। कर्नाटक सरकार ने प्रभावी ई-प्रोक्योरमेंट योजना चलाई है। गुजरात सरकार की ई-टेंडरिंग भी इस संदर्भ में विशेष उल्लेखनीय है।
भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकारी परियोजनाओं की निगरानी अत्यंत आवश्यक है।़ पुरानी परंपरागत पद्धति से यह होना संभव नहीं है। छत्तीसगढ़ सरकार ने जब एक रुपये किलो चावल गरीब वर्ग के लोगों को देने का निर्णय लिया तो प्रश्न उठा, यह कैसे होगा? सरकारी राशन की दुकानों पर ठीक से नियंत्रण न होने से गरीबों के लिए आया सस्ता अनाज, महंगी दर पर खुले बाजार में बेच दिया जाता था। उसे रोकने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) प्रणाली का उपयोग किया। सेटेलाइट द्वारा संचालित इस प्रणाली के उपकरण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अनाज को ढोने वाले ट्रकों में लगाये जाते हैं। इस तकनीक द्वारा पूरी वितरण प्रणाली की निगरानी होती है। यह अत्यंत प्रभावी व्यवस्था साबित
हुई है।
ई-गवर्नेंस प्रणाली की सतत समीक्षा होनी जरूरी है। इसलिए आवश्यक है विभिन्न रिपोर्ट्स, जिनके द्वारा इस प्रणाली के प्रभाव को समय-समय पर जाना जा सकता है।
ई-गवर्नेंस परियोजना की सफलता पूर्णत: तकनीक पर आधारित है। इसमें तकनीक की भूमिका अत्यंत महत्व की है। इंटरनेट, मोबाइल, कम्प्यूटर के समन्वय तथा आधुनिक तकनीक से प्रभावी ई-गवर्नेंस लागू किया जा सकता है।
केवल सरकार ही नहीं, वरन सामान्य जनता को भी अब ई-गवर्नेंस का महत्व समझ में आ रहा है। मात्र रेल आरक्षण ही नहीं, अब तो वाहन चलाने के लिए अनिवार्य लाइसेंस से लेकर विभिन्न करों का भुगतान इंटरनेट बैंकिंग द्वारा करने में जो आराम और सरलता है, वह अब सबके ध्यान में आ रही है।
फिर भी अभी प्रभावी संरचना खड़ी करना आवश्यक है। मोदी ने दिल्ली में उद्योग जगत को दिए भाषण में इस संदर्भ का एक किस्सा बताया था, जब जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) के कार्यान्वयन के संबंध में उनकी वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम से भेंट हुई तो मोदी ने कहा था की बिना आवश्यक आईटी संरचना खड़ी किए इसे लागू करना व्यावहारिक और संभव भी नहीं है। इसके लिए जब तक चिदम्बरम ने अपने सचिव को बुलाया और कहा था कि मोदी कह रहे हैं, जब तक आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा नहीं होता, तब तक जीएसटी पर अमल संभव नहीं है। सचिव ने कहा, मोदी ठीक बोल रहे हैं क्योंकि जब तक हमारे प्रत्येक गांव में इंटरनेट उपलब्ध नहीं होता, तब तक जीएसटी लागू होना संभव नहीं है। जीएसटी की सफलता उसके ऑनलाइन कार्य करने में है। अर्थात प्रशासन से भ्रष्टाचार के निर्मूलन की सीढि़यां हैं। देश में अच्छे संचार की, इन्टरनेट की संरचना तैयार करना। उसके आधार पर सभी आवश्यक सुविधाओं के लिए ई-गवनेंर्स परियोजनाएं प्रारंभ करना, अत्याधुनिक तकनीक से वह सामान्य लोगों तक पहुंचे, इसकी व्यवस्था करना और इस परियोजना की सतत समीक्षा करना। यदि यह साकार होता दिख जाए तो हमारे प्रशासन का भ्रष्टाचार बहुत हद तक कम होगा, यह निश्चित है। ल्ल
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