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समाज में खाई पैदा करना चाहते हैं आजम?

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Apr 26, 2014, 12:00 am IST
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नेहरू का बोया काट रही है कांग्रेस

दिंनाक: 26 Apr 2014 14:10:48

.अंक सन्दर्भ: 6 अप्रैल, 2014

आवरण कथा ह्य1962-भूल का शूलह्ण कांग्रेस और नेहरू के उस छिपे काले चेहरे को और साफ कर देता है,जो लोगों के मन में कुछ धुंधला था। हेंडरसन-भगत रपट ने नेहरू की पूरी पोल खोल कर रख दी है। देश को जानना चाहिए कि नेहरू की ही कारगुजारियों के चलते चीन ने भारत पर आक्रमण किया था। कांग्रेस की स्वार्थपूर्ण नीतियों और नेहरू जैसे नेताओं के गलत फैसलों के कारण देश को नीचा देखना पड़ा है। नेहरू और कांग्रेस की एक गलती का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है।
-हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर,भिण्ड (म.प्र.)
०इतिहास साक्षी है कि नेहरू ने सदैव देशहित के मु्द्दों को गम्भीरता से नहीं लिया। स्वतन्त्रता के बाद देश को मजबूत करने का काम जिन चन्द हाथों में दिया गया था,उन सभी ने देश के साथ गद्दारी की । हंेडरसन-भगत रपट ने नेहरू के चेहरे से एक और नकाब उतार कर फेंका, जिसे कांग्रेस आज तक लोगों से छिपाती आई है। अब राहुल गांधी को नेहरू का भी सच पूरे देश को बताना चाहिए क्योंकि वे और लोगों के ह्यसचह्ण को तो खुलकर बताते हैं, क्या यह सच देश को नहीं बताएंगे?
-पंकज शुक्ला
खदरा, लखनऊ(उ.प्र.)
० नेहरू की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है। उस समय नेहरू ने देश को गढ्डे में ढकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज की कांग्रेस में सोनिया और राहुल की जोड़ी ने मिलकर देश को गर्त में पहुंचा दिया है। हेंडरसन-भगत रपट से पहले ही देश नेहरू की अनेक गलत नीतियों और उनके कारनामों से अवगत है।
– कमलेश कुमार ओझा
पुष्प विहार कालोनी (नई दिल्ली)
सदैव जगाई अलख
पाञ्चजन्य ने सदैव देशहित को सर्वोपरि मानकर सम्पूर्ण हिन्दू समाज में जो अलख जगाने का कार्य किया है वह अपने आप में अद्वितीय है। छह दशक बीत जाने के बाद भी इसमें वही ऊर्जा और पैनापन है,जो छह दशक पहले था। 1962 के युद्ध में नेहरू की भूमिका और दोषपूर्ण नीतियों का काला चिट्ठा जो अपने अभिलेखागार से इस अंक में पाठकों के समक्ष रखा वह बताता है कि कलेवर बदला है पर तेवर वही हैं।
-हरिहर सिंह चौहान
जंबरी बाग नसिया
इंदौर (म.प्र.)
० गहरी नींद में सोई सरकारों को जगाने के दायित्व एवं हिन्दूहित के अपने विचार को पत्र ने सदैव प्रथम पायदान पर रखा है। हिन्दू कैसे जाग्रत हो,उनके कष्ट को सरकार तक पहंुचाना और देश का मान सर्वोपरि रहे, इन तमाम विचारों के साथ पाञ्चजन्य ने कभी समझौता नहीं किया। 1962 की अपनी रपट छाप कर पत्र ने बता दिया है कि नेहरू की हकीकत को उस समय ही पाञ्चजन्य ने देश के सामने रख दिया था। पत्र से पत्रिका में आने पर पाञ्चजन्य इसी प्रकार भविष्य में भी मंथन और चिन्तन के साथ देशप्रेम और हिन्दूहित की अलख जगाता रहेगा। यही हमारी आशा है।
-कुंवर वीरेन्द्र सिंह
कम्पू लश्कर, ग्वालियर (म.प्र.)
०पाञ्चजन्य का पत्रिका स्वरूप अतिआकर्षक है। समय की जरूरत को देखते हुए यह बदलाव अपेक्षित भी था। अनेक विषयों पर पत्र सदैव उसकी तह तक जाकर लिखने का कार्य करता रहा है। आशा है कि भविष्य में भी यह इसी प्रकार सम्पूर्ण देश को उसके उत्तरदायित्व का भान कराता रहेगा।
– सुधाकर पोटे
पुणे (महाराष्ट्र)
०सत्य और न्याय के बेबाक स्वर में भारतीय सेवा-संस्कृति की नींव पर राष्ट्र गौरव को साकार करने का अद्वितीय कार्य पाञ्चजन्य का आत्मतत्व है। 1962 के युद्ध की पराजय किन कारणों से हुई और इसमें नेहरू की दोषपूर्ण भूमिका को बताकर पत्र ने कांग्रेस के मुखौटे को उतार फंेका है। कांग्रेस ने सदैव देश को भिन्न-भिन्न प्रकार से क्षति पहुंचाई है। लेकिन आज जनता उनके सभी काले कारनामों को जान चुकी है।
– गोविन्द प्रसाद शुक्ल
छपरा (बिहार)
भ्रम फैलाते कांग्रेसी
राहुल गांधी कई विषयों पर झूठ बोलकर देश को गुमराह कर रहे हैं। झूठ को सच और सच को झूठ बता रहे हैं। वे अडानी का नाम लेकर लोगों में भ्रम फैला रहे हैं। लेकिन वे राजीव शुक्ला, सुरेश कलमाड़ी, विलासराव देशमुख के जमीन घोटालों पर पर्दा क्यों डाल रहे हैं, उनके बारे में जनता को नहीं बताएंगे? आज जनता कांग्रेस के सभी काले कारनामों से पूरी तरह अवगत हो चुकी है और इस बार उनके झंासे में आने वाली नहीं है।
– लक्ष्मी चन्द्र
बांध कसौली,जिला-सोलन(म.प्र.)
० सेकुलरवादी कांग्रेस और अन्य हिन्दू विरोधी दल, जिन्हें गुजरात के दंगों की विभीषिका तो दिखाई देती है, लेकिन जिस प्रकार 24 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में उ.प्र. की सपा सरकार को दोषी ठहराया क्या वह उन्हें आखों से नहीं दिखाई देता? वे गुजरात दंगों पर तो अपनी छाती पीटते हैं पर अब इस पर उनकी चुप्पी क्यों है? यह सभी कुछ बताता है कि ये सभी दल सिर्फ और सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति करते हैं। उ.प्र. की सपा सरकार के राज में दो साल में ही सौ से ज्यादा दंगे हुए पर यह किसी को नहीं दिखाई देता है?
-उदय कमल मिश्र
सीधी (म.प्र.)
गो हत्या बंद हो !
आज देश में प्रतिदिन सुबह होने से पूर्व हजारों गायों की बूचड़खानों में निर्मम हत्या कर दी जाती है। लेकिन हमारा हिन्दू समाज सिर्फ मूक दर्शक बनकर देखता रहता है। हम सभी को गायों की रक्षा के लिए आगे आना होगा तभी गोहत्या पर अंकुश लगेगा।
-स्वामी अरुण अतारी
लुधियाना(पंजाब)
झूठे घोषणापत्र
इस बार के भी लोकसभा चुनाव में देश की अनेक पार्टियों ने वही पुराना राग अपने घोषणा पत्रों में अलापा,जो वे पहले से ही अलापते आए हैं। पता नहीं कितने वायदे,कितनी ही झूठी योजनाओं का झंासा देकर हर बार यह इसी प्रकार देश की जनता को मूर्ख बनाते हैं। कांग्रेस ने सदैव अपने घोषणा पत्र में भ्रष्टाचार हटाने की बात पर जोर दिया है पर टू जी स्पेक्ट्रम, आदर्श, कोयला आवंटन, राष्ट्रमण्डल खेल जैसे घोटाले क्या हैं? क्या कांग्रेस ऐसे ही देश के लोगों को मूर्ख बनाती रहेगी? इसमें दो राय नहीं है कि ऐसा कि घोषणा पत्र एक धोखा है।
-शान्ति कुमारी
नया टोला,कटिहार (बिहार)
साहित्य को भी स्थान दें
वैसे तो पाञ्चजन्य में लेख अत्यन्त शोधपरक होते हैं। लेकिन मेरा सुझाव है कि पत्रिका में कविता एवं साहित्यिक कृतियों को भी पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
– दत्तात्रेय शर्मा
भैरो पार्क,आगरा (उ.प्र.)
मोदी से घबराई कांग्रेस
देश में नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और जनता में उनके प्रति अगाध स्नेह और प्रेम से कांग्रेस और सेकुलर नेताओं के होश उड़ गए हैं। घबराए कांग्रेसी अपने भविष्य को स्पष्ट देख रहे हैं कि अब वे सरकार में आने वाले नहीं हैं। इसलिए वे सभी एक षड्यंत्रपूर्ण तरीके से 2002 के दंगों को पुन: उखाड़कर देश को हिन्दू-मुसलमान में बांटने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। देश को चाहिए कि ऐसी कांग्रेस,जो सदैव देश को मत-पंथ और जात-पात के आधार पर बांटकर अपना हित साधती आई है,ऐसी ताकतों को सत्ता में आने से रोकें।
-डॉ.खी. जवलगेकर
लक्ष्मी विष्णु सोसायटी,
सोलापुर (महाराष्ट्र)
०कांग्रेस पार्टी और उनके नेता सदैव देश को मत-पंथ के नाम पर बांटकर गंदी राजनीति करके यहां तक पहुंचे हैं। सदैव अपने स्वार्थ के लिए इन लोगों ने तुष्टीकरण की राजनीति की है। समय-समय पर किए उनके कृृत्य बताते हैं कि वे सिर्फ और सिर्फ मुसलमान वोटों की राजनीति करते हैं और हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझते हैं।
-जय नारायण गुप्ता
गोवर्धन बिहारी कालोनी, दिल्ली

अधिकांश लोगों के मन में वर्तमान दौर में एक बड़ा सवाल उभर रहा है कि आखिर आजम खां ने ऐसा क्यों कहा कि कारगिल की लड़ाई हिन्दू सैनिकों ने नहीं, बल्कि मुसलमान सैनिकों ने जीती थी। यूं तो यह सभी को पता है कि मुलायम सिंह के खास सिपहसालार और उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रमुख मंत्री आजम खां की मनोवृत्ति पूरी तरह मुस्लिम लीग की है। गत वर्ष सितम्बर-अक्तूबर में मुजफ्फरनगर में जो दंगे भड़के, उसमें भी आजम खां की बड़ी भूमिका रही, यह आज किसी से छिपा नहीं है। 27 सितम्बर को जैसे ही दंगे भड़के पुलिस ने हत्या के आरोप में सात मुसलमानों को पकड़ा और वहां के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने कुछ घरों की तलाशी ली, क्योंकि वहां हथियार होने की आशंका थी। इस बात का पता जैसी ही आजम खां को हुआ उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए हत्या के आरोपी सातों मुसलमानों को छुड़वा दिया था। इसी के चलते वहां के हिन्दू समाज को लगा कि आजम खां जैसे लोगों के चलते अब यहां कानून और न्याय नाम की कोई चीज नहीं बची है, इसलिए स्थिति से उन्हें स्वत: ही निबटना पड़ेगा। उसी का परिणाम है कि मुजफ्फरनगर दंगों की भयावह विभीषिका से अभी तक मुक्त नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में अब आजम खां कारगिल की लड़ाई को मुसलमान सैनिकों द्वारा जीता बताते हंै, तो इसके माध्यम से वह एक ओर मुस्लिम साम्प्रदायिकता तो भड़का ही रहे हंै साथ ही वे मोदी लहर से मुकाबला करने के लिए मुस्लिम वोट बैंक को उकसाकर समाजवादी पार्टी के साथ लाने को प्रयासरत हैं। उनके बयान से स्पष्ट है कि वे सेना में भी फूट डालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और मुसलमानों को झूठा बताना चाहते हैं कि ह्यहिन्दुओं का इतिहास तो पराजय और गुलामी का इतिहास रहा है। युद्घों में जीत का इतिहास तो मुसलमानों का ही है।ह्ण ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह कि कारगिल युद्ध में जो हिन्दू सैनिकों की शहादत हुई, उनका क्या? शायद आजम खां मुसलमानों की शौर्य गाथा के साथ यह कहना चाह रहे हैं कि जिन हिन्दू सैनिकों ने युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की असल में वे युद्ध में लड़े ही कहां? बल्कि ऐसे ही पाक सैनिकों की गोली का शिकार हो गए। खैर इससे यह पता चलता है कि साम्प्रदायिकता के जहर को बनाए रखने के लिए आजम खां जैसे लोग एकदम सफेद झूठ बोल सकते हंै। अब आजम खां कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में मुसलमानों के योगदान को देश में नकारा जाता है। शायद वे ऐसी बातें करके देश तोड़ने वाली राजनीति कर रहे हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि जितना देश चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह को मानता है उतना ही अश्फाक उल्ला खां को मानता है। लेकिन स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय भी आजम खां जैसे ओछी सोच के नेताओं की कमी नहीं थी। क्या यह सच नहीं हेै कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ही मुसलमानों की मनोवृत्ति बदल गई थी? जहां एक ओर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी, तो अधिकांश मुसलमान मुस्लिम लीग के नेतृत्व में देश के बंटवारे और पाकिस्तान के निर्माण की लड़ाई लड़ रहे थे। इतना ही नहीं आजम खां जैसे लोग अब बाकी बचे देश को भी पाकिस्तान बनाने के प्रयास में हंै। अहम सवाल यह है कि चुनाव के समय इस प्रकार की बातंे करने की आवश्यकता क्या आ गई ? स्पष्ट है कि आजम खां सिर्फ और सिर्फ इस प्रकार के बयान देकर देश को तोड़ने की राजनीति करते हैं। येनकेन प्रकारेण मुसलमानों को अपनी ओर लाने के लिए यह देशघाती राजनीति की जा रही है।
-वीरेन्द्र सिंह परिहार

मोदी की मेहनत

बी.जे.पी. की लहर में, उड़े सभी के होश
ठंडा पड़ता जा रहा, कांग्रेस का जोश।
कांग्रेस का जोश, छिपे बैठे मनमोहन
अब मैडम हैं आयीं, फैलाने सम्मोहन।
कह ह्यप्रशांतह्ण हो गयी फेल राहुल की कसरत
दिखा रही है रंग मगर मोदी की मेहनत॥
– प्रशांत

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