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मशीन नहीं, मजदूर की मेहनत का सम्मान

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Apr 19, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Apr 2014 15:24:54

 

नई सरकार कुटीर उद्योगों को लालफीताशाही से मुक्त करके आम आदमी को रोटी-कपड़ा और मकान सुनिश्चित करे तभी उसकी सार्थकता

-भरत झुनझुनवाला-

चुनाव के इस माहौल में हर पार्टी अपने अपने मुद्दों को लेकर मतदाता के बीच जा रही है। कांग्रेस अनाज गारंटी और मनरेगा को अपनी उपलब्धियों में गिना रही है। लेकिन आज का मतदाता सस्ते अनाज एवं मनरेगा की भिक्षा से संतुष्ट नहीं है। वह भिखारी नहीं बनना चाहता है। जब रोजगार चाहता है। लेकिन रोजगार देना कठिन है चूंकि बड़ी कम्पनियों द्वारा ऑटोमेटिक मशीनों से सस्ता माल बनाया जा रहा है, इन फैक्ट्रियों में कम संख्या में ही रोजगार उत्पन्न होते हैं। जैसे किसी शहर में 10,000 गरम कपड़े प्रतिदिन की मांग है। पूर्व में इसे 1000 जुलाहे बुनते थे। अब इतने ही कपड़े टैक्सटाइल मिल के 10 कर्मचारी बुन देते हैं। पूंजी और श्रम के बीच घोर संघर्ष चल रहा है। उद्यमी गणित लगाता है कि उत्पादन मशीन से करना सस्ता पड़ेगा अथवा हाथ से। वह पाता है कि मशीन सस्ती पड़ती है। मशीन के सामने काम तब ही खड़ा रह सकेगा जब उसके वेतन में कटौती हो। जैसे उद्यमी के लिए आम जुलाहे से कपड़ा बुनवाना सस्ता पड़ सकता है यदि उसकी दिहाड़ी 50 रुपए की हो।
समस्या वैश्वीकरण की है। यदि उद्यमी श्रम का उपयोग लगता है तो उसका माल महंगा पड़ता है। दूसरे देशों में  मशीन से उत्पादित माल सस्ता पड़ता है। वह प्रतिस्पर्धा में हार जाता है। ऐसे में सरकार के सामने कठिन चुनौती है। यूं समझिए कि स्वच्छ पानी तथा स्वच्छ हवा में से एक को चुनना है। परोक्ष रूप से सरकार ने वेतन में कटौती के रास्ते को स्वीकार किया है। श्रम कानून के सरलीकरण से वेतन में कटौती को स्वीकार किया जा रहा है। उद्यमी द्वारा जरूरत के अनुसार श्रमिकों को रखा अथवा बर्खास्त किया जा सकेगा। अकुशल श्रमिकों के विरुद्ध सख्त कार्रवाही की जाएगी। ठेकेदारों के माध्यम से श्रमिकों को रखा जा सकेगा। इन कदमों से वेतन में कटौती होगी और तदनुसार रोजगार में वृद्धि होगी। लेकिन वेतन तथा रोजगार, दोनों में वृद्धि नहीं होगी।
सुशासन, लालफीताशाही पर नियंत्रण, बुनियादी संरचना में निवेश, शिक्षा में सुधार एवं छोटे उद्यमों को कर में छूट आदि से अर्थव्यवस्था में गति अवश्य आएगी, परन्तु बेरोजगारी की मूल समस्या का समाधान नहीं होगा। जैसे रेलवे स्टेशन पर 20 तांगे और 5 सूमो खड़ी हैं। पर्यटक सूमो किराए पर लेकर सैर को निकल पड़ता है। ऐसे में तांगे को नगर पालिका से लाइसेंस आसानी से मिल जाए, घोड़े को रखने का रोड बना दिया जाए, घोड़े वाले को घोड़े के रोग तथा रखरखाव की जानकारी दे दी जाए व कम प्रीमियम पर उसका बीमा कर दिया जाए तो कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ेगा। सूमो और तांगे में इतना अधिक फर्क है कि ये सब प्रयास सही दिशा में होते हुए भी निष्प्रभावी सिद्ध होंगे। सूमो वालों की स्थिति में सुधार किया जाए तो भी रोजगार पर सुप्रभाव पड़ना जरूरी नहीं है। टैक्सी का परमिट आसानी से मिल जाए, पक्की सड़क बनवा दी जाए गंतव्य स्थान तक पहुंचने के लिए जीपीआरएस लगा दिया जाए एवं आसान किस्त पर कर्ज उपलब्ध करा दिया जाए तो भी विशेष अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि ग्राहक नदारद है। 20 वर्ष पूर्व की स्थिति से तुलना करें तो इन सभी व्यवस्थाओं में सुधार हुआ है परन्तु सूमो मालिकों की हालत में सुधार नहीं हुआ है। कारण यह कि सूमो की आपूर्ति अधिक तथा मांग कम है।
मांग कम होने का प्रमुख कारण है आम आदमी के लिए रोजगार का अभाव। उसके पास क्रय शक्ति नहीं है। तांगे के बंद हो जाने से वह बाजार से माल नहीं खरीद पा रहा है। पूर्व में स्टेशन पर 20 तांगे चलते थे। 20 लोगों के लिए कपड़ा और मकान की डिमान्ड उत्पन्न होती थी। आज वही काम सूमो द्वारा सन्पन्न हो रहा है। 20 की जगह पर 5 लोगों को रोजगार मिल रहा है। तदनुसार कपड़ा, साबुन, कापी-किताब की मांग कम हो रही है। मूल समस्या आधुनिक तकनीकों की है। आज कम संख्या में श्रमिकों के द्वारा भारी मात्रा में माल का उत्पादन किया जा रहा है। कम संख्या में श्रमिकों को रोजगार मिलने से श्रमिकों की कुल आय कम है। इनके द्वारा बाजार से कपड़ा आदि कम मात्रा में खरीदा जा रहा है। बाजार में माल की मांग कम है और उद्यमी दबाव में हैं। नई तकनीकों के चलते श्रमिक ही अप्रासंगिक होता जा रहा है। समाज घटते रोजगार और बढ़ते उत्पादन के असंतुलन में उलझता जा रहा है। दोषी आधुनिक तकनीकें हैं।
नई सरकार को इस मूल समस्या को चिह्नित करके रोजगार बनाने की रणनीति बनानी चाहिए। सुशासन, बुनियादी संरचना में सुधार तथा स्कि ल डेवलपमेंट से निश्चित रूप से सुधार होगा परन्तु यह ऊपरी बात मात्र है। जैसे सूमो पुरानी हो गई हो तो मोबिल ऑयल बदलने से कुछ राहत अवश्य मिलती है। परन्तु यह स्थाई समाधान नहीं है। अथवा मरीज को कैंसर हो तो सरदर्द की दवा देने से राहत महसूस होती है परन्तु रोग ठीक नहीं होता। इसी प्रकार आधुनिक तकनीकों के दायरे में रहकर बुनियादी संरचना में सुधार तथा स्किल डेवलपमेंट से मूल बेरोजगारी कम नहीं होगी। यह बात अमरीका जैसे विकसित देशों को देखने से स्पष्ट हो जाती है। वहां सुशासन, बुनियादी संरचना और सुशिक्षा के बावजूद बेरोजगारी व्याप्त है। यदि इन कदमों से बेरोजगारी पर नियंत्रण संभव होता इन देशों में शत-प्रतिशत रोजगार उत्पन्न हो जाने चाहिए थे। नई सरकार यदि इन कदमों तक अपने को सीमित रखेगी तो पहले एक दो वर्षों मेंे सुधार दिखेगा जैसे मोबिल ऑयल बदलने से सूमो एक बार चल निकलती है। परन्तु 3-4 वर्ष में फिर बेरोजगारी की पुरानी कहानी सामने आ जाएगी और जनता में आक्रोश फैलेगा। सुशासन आदि में सुधार के साथ-साथ नई सरकार को उन चुनिंदा क्षेत्रों को चिह्नित करना चाहिए जहां मशीनी उत्पादन पर न्यूनतम कर लगाने से बड़ी मात्रा में श्रम-सघन उत्पादन शुरू हो सकता है। जैसे, पेट्रोलियम रिफायनरी पर भारी कर लगा दिया जाए तो भी रोजगार उत्पन्न नहीं होंगे। परन्तु यदि मशीन से बुनाई, माचिस, मोमबत्ती, अगरबत्ती, कागज के डब्बे बनाने आदि पर कर लगा दिया जाए तो उद्यमी के लिए इनका उत्पादन श्रमिकों से करवाना लाभप्रद हो जाएगा। तब ही हम बढ़ती जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध करा सकेंगे। ल्ल

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