वासंतिक नवरात्र में चैत्र शुक्ल पक्ष की रामनवमी का महत्व
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वासंतिक नवरात्र में चैत्र शुक्ल पक्ष की रामनवमी का महत्व

by
Apr 7, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2014 11:52:56

पुरुषोत्तम भगवान राम स्वयं भगवान विष्णु का अवतार थे। इस बार आठ अप्रैल को पुष्य नक्षत्र और कर्क लग्न है जिसमें भगवान राम का जन्म हुआ था। पुष्य नक्षत्र सुबह शुरू होकर पूरे दिन रहेगा जिसका विशेष महत्व है। श्री राम राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। उनका अवतार विशेष रूप से रावण का वध करने और त्रेता युग में पृथ्वी पर राक्षस व असुरों के आतंक को समाप्त करने के लिए हुआ था। इसके अतिरिक्त अहिल्या उद्धार और बाली वध जैसी अनेक घटनाएं हैं, जो मुख्य रूप से भगवान राम से जुड़ी हैं। स्वयं नारायण का अवतार होने पर भी भगवान राम ने विषम परिस्थितियों में भी कभी नीति का पथ नहीं छोड़ा। इसलिए उन्हें मर्यादा पुरु षोत्तम कहा गया है।
उन्होंने सदा न्याय व सत्य का पालन किया और सदा उसके पथ पर चलकर दूसरों को भी उसका संदेश दिया। माता कैकेयी के भरत को राजगद्दी देने और श्री राम को वनवास भेजने का प्रसंग हो या फिर सीता जी को वन भेजने की बात हो, भगवान राम ने इन अवसरों पर अटल व अडिग रहकर अपनी मर्यादा का परिचय दिया। रामनवमी के दिन लोग नया व्यवसाय या नये कार्यों की शुरुआत करते हैं। किसी भी प्रकार के शुभ कार्य के लिए यह दिन विशेष माना जाता है। कुछ लोग इस दिन गृह प्रवेश या नई दुकान का शुभारंभ भी करते हैं। श्रद्धालुओं को चाहिए कि वे इस दिन रामरक्षा स्रोत, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें जिसका विशेष फल प्राप्त होता है। रामनवमी के अवसर पर भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से साधुओं की टोली अयोध्या पहंुचकर पवित्र स्थल के दर्शन करती है।  * इन्द्रधनुष डेस्क

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