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भरतीय साहित्य में गाथा-शैली व काव्यों-महाकाव्यों के रचना की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है। उत्तर आधुनिककाल में पद्य-शैली की उसी परम्परा को गद्य-शैली में अपनाकर लेखकों ने इसे विकसित किया है। लेखक शिवदास पाण्डेय की ऐसी ही एक पुस्तक गौतम गाथा म महात्मा बुद्ध के अवतरण से लेकर निर्वाण तक की कथावस्तु को अत्यंत प्रांञ्जल भाषा में इतिहास दृष्टि और शोध प्रवृत्ति के साथ प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में जीवन का तत्व भी है और सिद्धान्त भी,धर्म का दर्शन भी है और एक सुबुद्ध महापुरुष के जीवन का संघर्ष भी है। इसमें वैराग्य का भाव भी है और अभाव भी, माया का राग भी है और विराग भी।
गौतम गाथा के कुल 52 छोटे-छोटे अध्यायों से गुजरते हुए प्रतीत होता है कि लेखक ने महात्मा बुद्ध के जीवन का गहन अध्ययन और अनुशीलन कर एक शोध प्रबन्ध के रूप में इस कृति की रचना की है। पुस्तक में युवराज सिद्धार्थ के विद्याग्रहण काल,भारत की प्राचीन शिक्षानीति तथा गुरुकुल पद्धति को भी रेखांकित किया गया है। कथाक्रम में सिद्धार्थ के राजधर्म की ओर प्रवृत होने ,प्रवास शिविरों के माध्यम से क्षेत्रीय स्थितियों का आकलन तथा राज्य में व्याप्त संघर्षपूर्ण स्थिति का सिद्धार्थ के विलासितापूर्ण जीवन से मोहभंग सहित उनके अनेक आयामों को तथ्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने सिद्धार्थ के ह्यतमह्ण से ह्यगौतमह्ण तक की यात्रा को वर्णित करते हुआ लिखा कि सब कुछ होते हुए भी सिद्धार्थ का इस जग से मोह भंग हो गया था। समाज में होने वाले अनेक घटनाक्रमों को देखकर उनके मन में विरक्ति का भाव उन्हें बैठने नहीं दे रहा था। वे सत्य को जानने के लिए व्याकुल थे। जन्म-मृत्यु के रहस्यों की तलाश में गौतम अनेक ऋषियों,आश्रमों ,साधकों व विद्वानों का सान्निध्य प्राप्त कर रहे थे पर वे सन्तुष्ट नहीं हो पा रहे थे। ऐसी विषम परिस्थिति में वह खुद ही निर्णय लेते हैं कि वह अपना मार्गदर्शन स्वयं ही करेंगे और अपने पगों को गति दे दी। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति व कठिन तप के चलते अन्तत: उनको ज्ञान प्राप्ति की अनुभूति होती है और वे कह उठते हैं -ह्यमैं ही जिन हूं,मैं ही बुद्ध हूं।
लेखक ने हगौतम गाथा में अपनी कल्पना शीलता के आधार पर गौतम बुद्ध के जीवन-चरित में अनेक प्रसंगों को जोड़कर कथा को व्यापक फलक दिया है। गौतम गाथा वस्तुत: ऐसे राजा की गाथा है,जो कालदेवल की चक्रवर्ती भविष्यवाणी के साथ एक अश्व का रथ लिए राजपथ से अपनी रथयात्रा आरम्भ तो करता है किन्तु लक्ष्य की कठिनता तथा मार्ग की दुरूहता को देखते हुए राजमार्ग को छोड़कर धर्ममार्ग पर प्रयाण करता है और एक अश्व की जगह अपने रथ से सोलह अश्वों को जोतता है। एक महाराजाधिराज बनने का स्वप्नदर्शी एक धर्माधिराज बन जाता है और सम्पूर्ण जम्बुद्वीप को जीतकर धर्मसिंहासन पर आसीन हो सारे राजाओं-महाराजाओं को राजधर्म और जीवन-धर्म अर्थात सत्ता का शासन और धम्म के अनुशासन के सिद्धांत की शिक्षा देता है।
लेखक ने जिस सरल और निखरी भाषा शैली का प्रयोग आदि से अंत तक किया है वह वास्तव में पढ़ने वाले को कथा से निरन्तर जोड़े रखती है। ह्यगौतम गाथाह्ण में गौतम बुद्ध के जीवन-चरित व उनके अनेक ऐसे प्रसंग, जो अभी तक कुछ लोग नहीं जानते थे, उनको भी समाहित किया गया है। स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि यह सिद्धार्थ की जीवनी नहीं,उनके प्रच्छन मानवीय शील और परिवेश की खोज है। अतीत से वर्तमान का ह्यसतत संवादह्ण इसे इतिहासधर्मी कृति के रूप में ढालता है,किन्तु यह पश्चिम शैली का ऐतिहासिक उपन्यास नहीं, गाथा परम्परा को पुनरुज्जीवित करने वाली ऐसी रचना है,जो जड़ों से जुड़ी औपन्यासिक चेतना का साक्षात्कार कराती है।
चन्द्र किशोर पाराशर
पुस्तक का नाम – गौतम गाथा
लेखक – शिवदास पाण्डेय
प्रकाशक – अविधा प्रकाशन
रामदयालु नगर, मुजफ्फरपुर
मूल्य – 400 रु., पृष्ठ – 320
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