कौन बनेगा प्रधानमंत्री ?
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कौन बनेगा प्रधानमंत्री ?

by
Mar 29, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Mar 2014 15:06:41

-व्यंग्य बाण : अरुणेन्द्र नाथ वर्मा-

नौकरी की तलाश मे भटकते हुए नौजवानों को देखकर मन खिन्न हो जाता है। लगातार बढ़ती औसत आयु के चलते सेवानिवृत्ति की आयु ,जो साठ वर्ष हो चुकी है ,बढ़ाकर सत्तर करने की मांग गलत नहीं लगती है। पर हम गद्दी छोड़ेंगे नहीं तो नयी पीढ़ी के लिए अवसर कहां से पैदा होंगे। इसी अपराध बोझ से दबकर मैं संपर्क में आने वाले हर तरुण-तरुणी को सलाह देने लगा हूं कि अपना रोजगार खुद तलाशें। अपनी पढ़ाई लिखाई, सूझबूझ और दूरदृष्टि के बल पर धनार्जन की नयी संभावनाएं खोजें। फिर मैं समझाता हूं कि फेसबुक के रचयिता मार्क जुकरबर्ग ने कैसे अपने दोस्तों की खोज-खबर लेने की इच्छा को अरबों डॉलर कमाने वाले उपक्रम में बदल दिया। कैसे व्हाट्स अप? कहकर हाल पूछने वाले ने उस सरल से सवाल के नीचे छुपी सोने की खान ढूंढ ली।
पड़ोस के एक बेरोजगार युवक के ऊपर मेरे सुझावों का जबरदस्त असर हुआ है। वह प्राय: बताता है कि उसके पास कई नए आविष्कार हैं। उसे विश्वास है कि एक दिन कोई पूंजी लगाने वाला उसकी मौलिक सूझबूझ का आदर करेगा।
अपने एक आविष्कार में उसने ऐसी टोपी बनाई जिसमें हर राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह बने हुए थे। किसी दल विशेष का समर्थक उसे पहनता था तो मस्तिष्क की विद्युत तरंगों के प्रभाव से टोपी में फिट सारे चुनाव चिन्हों में से केवल उस दल के चुनाव चिन्ह की बत्ती जलने लगती थी। इस दुपल्ली टोपी में दूसरी तरफ उस नेता की तस्वीर उभर आती थी, जिसे पहनने वाला प्रधानमंत्री के पद पर आसीन देखना चाहता था। इस तरीके से जब कई राजनीतिक दलों के नेता जोड़ तोड़ करके तीसरा मोर्चा या पंथनिरपेक्ष मोर्चा या अन्य किसी तरह की सिलाई-बुनाई करके तैयार किया हुआ मोर्चा बनाने के ध्येय से इकट्ठे हों तो टोपियों के ऊपर जगमगाती तस्वीरों को गिनकर आसानी से तय हो सकता था कि वे सब नेता मिलकर किसे प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाएं। पर असली समस्या ये थी कि इस टोपी का ट्रायल रन लेना ही नहीं संभव हो पा रहा था।
बड़ी मुश्किल से एक महिला नेता इसे आजमाने के लिए राजी हुईं। वे हरी घास के तिनकों में गणतंत्र की तलाश तो करती थीं पर अपने पैरों तले किसी घास के जमने के पहले ही उसे अपनी हवाई चप्पलों से कुचल डालने के लिए विख्यात थीं। तय हुआ कि वे देश के कोने-कोने में बिखरे हुए क्षेत्रीय नेताओं को एक बैठक में बुला कर उनसे एकजुट होकर एक ऐसा नेता चुनने की जोरदार अपील करेंगी, जो दो मुख्य दलों को ठुकराकर तीसरी शक्ति के रूप में उभर सके।
तो फिर सभा बुलाई गयी। विभिन्न राज्यों से आये हुए क्षत्रपों को ये टोपियां पहनाई गयीं और टोपी के आविष्कारक से कहा गया कि वह अपना सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करके बिना किसी लाग लपेट के घोषित करे कि क्षेत्रीय राजनीति के इन धूमकेतुओं में से केन्द्रीय गद्दी के लिए किसके पास सबसे अधिक समर्थन था। इस वैज्ञानिक प्रयोग में सारी टोपियों पर, जिस दल का चुनाव चिन्ह सबसे अधिक चमकेगा गठबंधन का नेतृत्व वही दल करेगा और टोपियों की दूसरी तरफ, जिस नेता की छवि सबसे अधिक उभरेगी उसे ही इन सब क्षेत्रीय छुटपुट नेताओं का नेता माना जाएगा।
अफसोस कि यह प्रयोग नितांत असफल रहा। टोपियों पर बनी हुई तस्वीरों के ऊपर रोशनी लगातार नाचती रही पर किसी एक दल विशेष के चुनाव चिन्ह पर टिक नहीं पाई। साइकिल से लेकर जहाज तक और झाडू से लेकर संडास तक हर प्रकार के चुनाव चिन्हों पर बत्तियों का जलना बुझना रुका ही नहीं। आविष्कारक मुंहबाए देखता रहा, उधर हर टोपी की दूसरी तरफ गठबंधन के नेता की बजाय केवल टोपीधारक की तस्वीर उभर आयी और ये शब्द चमकने लगे, मैं ही प्रधानमंत्री हूं। वह महिला नेता और मेरा युवा मित्र दोनों ही इस अविष्कार की असफलता से बहुत निराश हैं। आविष्कारक कहता है कि विदेश से आयातित सॉफ्टवेयर को भारत की स्थानीय विशेषताओं को ध्यान में रखकर पचास प्रतिशत बेइमानी और पचास प्रतिशत अवसरवादिता का गुणांक डालकर बनाना चाहिए था। महिला नेता इसके लिए पूरे युवावर्ग को दोषी बतातीं पर तभी उन्हें एक सम्मानित वयोवृद्घ ने भी ऐसा निराश किया कि चुप होना पड़ा। पर अपनी खुद की टोपी पर क्षण भर चमक कर अपनी तस्वीर धूमिल पड़ जाने का उन्हें बहुत दु:ख है।

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