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-तरुण विजय-
अभी पिछले सप्ताह पेशावर में जिहादियों ने सिख गुरुद्वारे पर हमला किया। एक सिख नागरिक-पेशावर के प्रसिद्ध वैद्य परमजीत सिंह- की हत्या कर दी गई। वहां हड़ताल हुई, पूरे पाकिस्तान में उसका शोर उठा, लेकिन हिन्दुस्थान और उसकी राजधानी दिल्ली में सिर्फ चुनाव पसरा रहा। एक-दूसरे पर अभद्र भाषा में आरोप-प्रत्यारोप, मोहल्ले की भाषा राष्ट्रीय चुनाव चर्चा का माध्यम बनती रही, लेकिन न पाकिस्तान के हिन्दुओं और सिखों पर आघात पर चार लोगों ने इंडिया गेट या चाणक्यपुरी में प्रदर्शन किया, न कोई बयान आया, न किसी नेता को यह कहने की जरूरत महसूस हुई कि पाकिस्तान में हर रोज होने वाली इन वारदातों पर रोक लगाने के लिए हम जनमत संगठित करेंगे। ये स्थिति तब हुई थी जब कुछ समय पहले बंगलादेश में जमाते-इस्लामी के तालिबानों ने सैकड़ों हिन्दू घर जला दिए थे, महिलाओं पर अत्याचार किया था और फिर हिन्दू शरणार्थियों की एक बाढ़ भारत की ओर मुड़ी थी।
तमिलनाडु के जिन मछुआरों को श्रीलंका सरकार द्वारा अवैध रूप से पकड़कर दो-दो महीने जेल में रखा जाता है, उनकी नौकाएं तथा जाल तोड़ दिए जाते हैं, वे लगभग सभी हिन्दू मछुआरे होते हैं। उनके विषय में सामान्यत: ऐसा मान लिया जाता है कि अगर किसी को बोलना भी है तो तमिलनाडु के नेताओं और संगठनों को बोलने दीजिए। हमारा उनसे क्या संबंध है?
एक समय था जब रामसेतु पर पूरे देश में हजारों प्रदर्शन हुए और एक करोड़ से ज्यादा हस्ताक्षर राष्ट्रपति को सौंपे गए। पर अब न रामसेतु और न ही तमिलनाडु के हजारों मंदिरों को सर्वोच्च न्यायालय में डॉ.सुब्रहमण्यम स्वामी द्वारा दर्ज जनहित याचिका द्वारा सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के ऐतिहासिक फैसले पर कोई राष्ट्रव्यापी विचार तरंग दौड़ती है। मेरठ में कुछ भटके हुए कश्मीरी लड़कों ने भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान ह्यपाकिस्तान जिंदाबादह्ण के नारे लगाए तो हर पार्टी के नेता बोले, मुख्यधारा के संपादकों ने संपादकीय लिखे, भाषण और सेमिनार हुए। पांच लाख कश्मीरी अभी भी शरणार्थी हैं, शंकराचार्य पहाड़ी को ह्यतख्ते सुलेमानह्ण और अनंतनाग को ह्यइस्लामाबादह्ण लिखा जा रहा है। सरकारी वेबसाईट और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के नामपट्टों में ऐसे नामों का जिक्र होता है। लेकिन यह राजनीतिक मुद्दा ही नहीं है, चुनाव घोषणा-पत्र या भाषण और सेमिनारों की तो बात ही छोड़ दीजिए।
भारत का एक मन भी है, उसका चैतन्य है, वह सिर्फ रोटी-कपड़ा और मकान पर जिंदा भौतिक काया मात्र नहीं है। इसीलिए श्री अरविंद ने भवानी-भारती की कल्पना सामने रखते हुए कहा था, ह्यहमारे लिए भारत नदियों, पहाड़ों, मकानों, जंगलों और भीड़ का समुच्चय नहीं, वरन् साक्षात जगत-जननी माता है। भारत हमारे लिए भवानी-भारती का जीवंत स्वरूप है और हम उसकी संतान हैं।ह्ण यही भाव जब हृदय में उठता है तब आसेतु हिमाचल भारत की वेदना, उसके किसी भी नागरिक की पीड़ा, चाहे वह किसी भी पंथ, जाति या सम्प्रदाय को मानने वाला क्यों न हो, हमें अपनी वेदना, अपनी पीड़ा जैसी महसूस होती है। जैसे-जैसे राजनीति के छल और द्वंद्व में यह भाव तिरोहित होता गया और भारत कल्पना जहां तक राजनेताओं का वोट बैंक है वहीं से भारतीय परंपराओं और हिन्दुत्व की प्रखर एवं क्षमाबोध रहित आवाजें दबनी और दबायी जानी शुरू हो गइंर्। अगर केवल बिजली, पानी और सड़क का मामला लिया जाए तो यह हिन्दुत्व की परम वैभव की कल्पना में स्वत: सन्निहित है। जिस धर्म के अनुयायी जीवन में लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के बिना अपने भाव विश्व की कल्पना नहीं कर सकते, उनके बारे में यह कहना कि हिन्दुत्व की बात छोड़कर सड़क, पानी, बिजली की बात करो क्योंकि हिन्दुत्व का अर्थ है पिछड़ापन, साम्प्रदायिकता, अल्पसंख्यक विरोध, बैलगाड़ी युग और प्रगतिशीलता का विरोध, तो यह सत्य से मुंह मोड़ना होगा।
तालिबानवाद और जिहाद केवल बंदूक और शारीरिक हिंसा से ही नहीं होता। हिन्दुओं के विरुद्ध शब्द हिंसा तथाकथित सेकुलर मीडिया और जिहादी मानसिकता के तत्वों का एक बड़ा हथियार रहा है। वे यह कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते कि लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती की आराधना का अर्थ ही है उद्योग, व्यापार, आर्थिक विकास, शिक्षा और प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक मानसिकता के साथ नित्य नूतन मानवहितवर्धक अन्वेषण तथा गवेषगाएं, सैन्य विकास, शत्रु को परास्त करने के लिए हर प्रकार की शक्ति का अर्जन और आत्मनिर्भरता। केवल घंटी बजाकर कर्मकांड करना हिन्दू का स्वभाव नहीं है, बल्कि वैदिक परंपराओं और विरासत को समसामयिक संदर्भों में पुन: व्याख्यायित करते हुए धर्म पर छाने वाली काई, कीचड़, धूल को साफ करने के लिए पाखंड खंडिनी पताका का स्वागत यह हमने करके दिखाया है। स्वामी दयानंद सरस्वती से लेकर सावरकर और माता अमृतानंदमयी से लेकर गायत्री परिवार के डॉ.प्रणव पण्ड्या तक पाखंड, दोहरेपन एवं झूठे कर्मकांड के विरुद्ध हिन्दू जय की उद्घोषणाएं ही हैं। वास्तव में 2014 में यदि आदिशंकर और स्वामी विवेकानंद के जीवन आदर्श जीते हुए धर्म की नई सामाजिक व्याख्या कोई कर रहा है तो वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं जो अपना नाम, अपना भविष्य, अपनी विद्या और कृतित्व समाज में विलीन करते हुए अनथक कर्मरत हैं। वास्तव में नवीन भारत के भाग्यविधाताओं में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे संघ के प्रचारक एवं आनुषांगिक संगठनों के पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता अग्रणी माने जाएंगे, क्योंकि जब कुछ नहीं था तब उन्होंने डॉ.हेडगेवार के पथ का अनुसरण करते हुए नवीन भारत सृजन की आधारशिला बनना स्वीकार किया। ऐसे लोग दुनिया में कहां मिलेंगे जो शिखर छोड़कर गुमनामी की आधारशिलाएं बनना स्वीकार करें?
वे जिन्होंने हिन्दू गौरव और हिन्दू समाज को चतुर्दिक आक्रमणों से अपने जीवन को गलाकर दधीचि की तरह सुरक्षा कवच देते हुए उसकी रक्षा हेतु वातावरण तैयार किया, वे हिन्दू तैयार किए जो सामर्थ्यवान स्वरों में हिन्दू हित की बात बिना झिझक और संकोच के कर सकेंगे, जिन्होंने डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और पं.दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुष बलिदानी दिए, जिनका जीवन हिन्दू समाज और उसके विकास द्वारा सम्पूर्ण भारतीय जनजीवन का विकास था, जिन्होंने प्राण देना स्वीकार किया पर हिन्दुत्व के लिए समझौता स्वीकार नहीं किया, उनका पाथेय ही भारत के नवीन चैतन्य का पथ दिखाएगा।
एक ऐसे समय में जब विश्व की प्रबल शक्तियां भारत के पुनरोदय के विरुद्ध जी-जान से षड्यंत्रों में व्यस्त हैं और विश्व की सबसे कठिन एवं दीर्घकालिक अग्निपरीक्षा से गुजरते हुए सोमनाथ की धरती से एक स्वयंसेवक पुन: भारत-भारती की आराधना के लिए प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने चला है, ऐसे समय में माटी की सुगंध और विजय हेतु कटिबद्धता में सामंजस्य अनिवार्य आवश्यकता है। सदियों बाद ऐसा समय आता है जब राष्ट्र अपने जीवन के नये परिवर्तन के दौर में प्रवेश करता है। उस समय बहस और तर्क-वितर्क नहीं, चेहरे, नाम और पहचान पर सवाल जड़ना नहीं, अपनी विरासत और हिम्मत को बिसारना नहीं और हर-हर महादेव के साथ एक बड़ी हुंकार से विजय को थामना, यही अपने हिन्दुत्व और नागरिकत्व को सार्थक करना है।
साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता सर विद्याधर नॉयपाल ने पाञ्चजन्य के साथ बातचीत करते हुए कहा था कि हिन्दू समाज स्मृतिभ्रंश का शिकार है। स्मृति जगाओ तो देश का पुरुषार्थ और चैतन्य स्वत: जगेगा। यदि आज हिन्दुओं पर आक्रमण चर्चा और चिंता का विषय नहीं बनता तो यही स्मृतिलोप का परिणाम है। डॉ.हेडगेवार ने भारत राष्ट्र के स्मृति जागरण का जो युगांतरकारी अध्याय प्रारंभ किया वह शनै:शनै: वीरव्रती समाज का निर्माण करता दिखता है जो अत्यंत कंटकों के मार्ग साहस के साथ तय करते हुए मंजिल की ओर बढ़ रहा है। भारत का अभ्युदय, श्री अरविंद के शब्दों में, नियति का अटल विधान है और यह विश्वास हृदय में संजोकर चलना होगा कि भले ही राजनीति के विषफल पर जीवित वर्ग इकट्ठा हो जाए, लेकिन दुनिया की कोई ताकत इस भारत-अभ्युदय को रोक नहीं सकती। ल्ल
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