इस्लाम विरोधी नहीं छोटा परिवार
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मुजफ्फर हुसैन
परिवार नियोजन को इस्लाम विरोधी कहना शरीयत और भारतीय संविधान के विरुद्ध है, जो भी मौलाना और संगठन ऐसा कहते हैं वे इस्लाम विरोधी तो हैं ही साथ में भारतीय कानून से भी द्रोह करते हैं। इसलिए उन पर कानूनी कार्यवाही अत्यंत अनिवार्य है। ऐसे समाज –द्रोहियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। ह्यपरिवार नियोजन के विरुद्ध मौलानाओं का प्रचार बंद नहीं हुआ तो मैं न्यायालय का दरवाजा खटखटाऊंगा। इस संबंध में जनहित याचिका भी दायर की जा सकती है।ह्ण उक्त सनसनीपूर्ण बयान काजी अनीशुल हक का है। उन्होंने संकल्प लिया है कि इस्लामी आधार पर जो परिवार नियोजन का विरोध कर रहे हैं, वास्तव में तो यह इस्लामी हदीस और कुरान की पवित्र आयतों का विरोध है। इसलिए उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए। भारत सरकार को इस संबंध में बहुत पहले ही कार्रवाई कर देनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने ऐसा न कर अपना मानवीय दायित्व नहीं निभाया है।
एक मुसलमान होने की हैसियत से यह मेरी जिम्मेदारी बन जाती है कि इस्लाम के दुश्मनों को पाठ पढ़ाया जाए और मुस्लिम को गुमराह होने से बचाया जाए, भारत के उच्च कोटि के मौलाना और इस्माली विद्वानों को काजी मोहम्मद अनीशुल हक ने कानूनी नोटिस जारी किया है।
काजी हक अंग्रेजी भाषा के प्रथम पंक्ति के लेखक और प्रसार भारती के सेवानिवृत्त महानिदेशक हैं। हक लंबे समय तक आकाशवाणी से भी जुड़े रहे। सूचना एवं प्रसारण सेवा के वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, उनका कहना है कि हदीस में खानदानी मनसूबे (परिवार नियोजन) से संबंधित जो विचार दिए गए हैं, वे लोगों के सम्मुख प्रस्तुत ही नहीं किए जाते। उन्हें या तो छिपाया जाता है या फिर उन्हें तोड़–मरोड़ कर पेश किया जाता है। इन विचारों को इतना भ्रमित किया जाता है कि एक सीधा–साधा इंसान उन्हें समझ ही नहीं पाता है। हमेशा वह शंका और भ्रम का शिकार रहता है। काजी अनीशुल हक ने हदीसों को उद्धृत करते हुए कहा कि हजरत पैगंबर मोहम्मद ने अपने अनुयायियों को यह बताया था कि अनचाहे गर्भ से किस प्रकार बचा जा सकता है, हक ने पैगंबर के इस मार्ग का प्रसिद्ध विद्वान एवं इस्लामी साहित्य के विख्यात लेखक इमाम गजाली की प्रसिद्ध पुस्तक ह्यकीमियाए सआदतह्ण से उद्धृत किया है।
उन्होंने लिखा है कि ह्ययदि कोई अनचाहे गर्भ से परहेज करना चाहता है तो वह हराम नहीं है। एक पति और पत्नी यदि यह इच्छा रखते हैं कि उन्हें आने वाली संतान नहीं चाहिए तो वे उसे जायज तरीकों से रोक सकते हैं। गर्भ यदि प्रारंभिक अवस्था में है और उसमें जान नहीं पड़ी है तो उसे रोकने में हर्ज नहीं है, किंतु इस बात को ध्यान में रखना अनिवार्य है कि एक विशेष अवधि में जब गर्भ में जान पड़ जाती है तो उसे समाप्त करना बिल्कुल ठीक नहीं बल्कि महापाप है। गर्भपात एक विशेष अवधि के बाद भ्रूण हत्या में बदल जाता है, इसके अतिरिक्त यदि गर्भ को रोकने के लिए अन्य बाह्य साधनों का उपयोग किया जाता है तो वह भी वर्जित नहीं है। इस संबंध में कुरान में मार्गदर्शन किया गया है। जो मुसलमान उन आयतों का अनुकरण करेगा वह कृत्य गैर इस्लामी नहीं हो सकता।ह्ण काजी साहब के मतानुसार हदीस और कुरान दोनों ही अनचाहे बच्चे को रोकने के लिए पूरा–पूरा समर्थन देते हैं, और परिवार को शरीयत के अनुसार सीमित रखने में सहायता प्रदान करते हैं, लेकिन काजी अनीशुल हक को यह सब कुछ करने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई। वे न तो किसी ऐसे दल से संबंधित हैं जो मांग
करता हो कि मुस्लिम भी परिवार नियोजन करें और न ही इस्लामी सिद्धांतों को नकराने वाले। पिछले दिनों काजी हक का एक उपन्यास बाजार में आया। वह अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ। उसका नाम है ह्यफिरदौसह्ण।
फिरदौस शब्द फारसी भाषा का है, जिसका अर्थ होता है स्वर्ग। काजी साहब का यह उपन्यास परिवार नियोजन की हिमायत करता है। यानी वे मुसलमानों में परिवार नियोजन के हिमायती हैं और यह कहना चाहते हैं कि संतति नियमन का इस्लाम विरोध नहीं करता है। वह मनुष्य के विवेक पर यह सब–कुछ छोड़ देना चाहता है और कहता है कि अपने परिवार को बड़ा रखा जाए या छोटा रखा जाए, अथवा उसकी मर्यादा क्या हो, यह शुद्ध रूप से किसी भी युगल का अपना अधिकार है। इसमें मजहब का कोई दखल नहीं क्यों कि यह शुद्ध रूप से सामाजिक विषय है। लेखक हक का कहना है कि उनका उपन्यास बाजार में आते ही उनका कड़ा विरोध हो रहा है।
उन्हें धमकियां मिल रही हैं कि यदि उन्होंने अपनी पुस्तक को वापस नहीं लिया तो उनकी जान को खतरा है। लेखक ने अपनी पुस्तक का विमोचन अमरीका में भारत के पूर्व राजदूत रहे डॉक्टर आबिद हुसैन से करवाया है। उन्हें जो पत्र मिल रहे हैं उनमें कहा जा रहा है कि आबिद हुसैन भले ही सामाजिक हैसियत रखते हों लेकिन वे शिया हैं इसलिए कोई सुन्नी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है। काजी साहब का कहना है कि ह्यमैं कट्टर सुन्नी हूं, मैंने जो लिखा है वह कुरान और हदीस पर आधारित है, इसलिए यहां किसी पंथ की बात नहीं बल्कि यह संपूर्ण समाज की भलाई की बात है।ह्ण काजी का पूछना है कि कुरान और इस्लाम के पैगंबर भी शिया– सुन्नी में बंटे हुए हैं। यह मामला केवल संपूर्ण इस्लाम का है। उनकी पुस्तक फिरदौस बाजार में आते ही सबसे पहले पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना राबेअ हुसैन नदवी ने, जो दारूल उलूम, देवबंद के प्राचार्य हैं, उसके विरुद्ध अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसकी निंदा की है।
इस्लामी विद्वान मुफ्ती हबीबुर्रहमान, मुफ्ती ऐजाज अहमद कासिमी, मोहम्मद सलीम कासिमी, इमाम सैयद अहमद बुखारी और जमीयत उलेमा के महासचिव मेहमूद मदनी ने जो सार्वजनिक रूप से विचार व्यक्त किये हैं उससे मेरे प्रकाशक बुरी तरह से भयभीत हैं। क्योंकि मुसलमान उन पर इस्लाम के अपमान का आरोप लगा रहे हैं। वे इतनी भड़काऊ भाषा में बात कर रहे हैं कि उनकी और उनके प्रकाशक की जान को खतरा पैदा हो गया है। किसी भी समय कोई कट्टरवादी उन पर हमला कर सकता है। पुस्तक की आड़ में उन्माद फैलाया जा रहा है। सम्पूर्ण वातावरण को आतंकित कर दिया गया है। इन कट्टरवादियों के वक्तव्य समाज में बेचैनी का कारण बने हुए हैं। यदि सरकार ने और अन्य समझदार मुसलमानों ने हक का साथ नहीं दिया तो भारत भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान से बदतर देश बन जाएगा। भारत का संविधान उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, इसलिए उनकी रक्षा करना प्रशासन का कर्तव्य है।
काजी अनीशुल हक का कहना है कि उन्हें कानूनी कार्यवाही करने पर मजबूर किया जा रहा है। वे अपने विरोधियों को अदालत में खींचने का मन बना चुके हैं। उनके पक्ष में कुछ लोग जनहित याचिका भी दायर करने जा रहे हैं जिसमें मांग की जाएगी कि किसी एक मौलाना का बयान अथवा फतवा अपनी मनगढ़ंत व्याख्या के आधार पर सबको स्वीकार नहीं हो सकता। वे परिवार नियोजन संबंधी जो कथन प्रस्तुत कर रहे हैं वह पूर्णत: इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित है।
जनहित याचिका में मांग की जाएगी कि इस मुद्दे पर सरकार विश्व के सभी मुस्लिम उलेमाओं से विचार विमर्श करे।
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