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-आलोक गोस्वामी-
1948 का वह दिन आज भी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा होगा जब पत्रकारिता जगत में छाए कुहासे और हिन्दू समाज से जुड़े विषयों पर अस्पृश्यता की हद तक जाने की मानसिकता को चीर कर पाञ्चजन्य का प्रकाशन शुरू किया गया था। निष्पक्षता और बेबाक सटीकता से सरकार को सावधान करने की जो परंपरा तब कश्मीर मुद्दे के साथ शुरू हुई थी उसका पैनापन आज भी जस का तस है। बिना लाग लपेट बात को खरे अंदाज में रखना और राष्ट्रहित से किसी भी तरह समझौता न करना पाञ्चजन्य की प्रामाणिकता की कसौटी रहा है। सतत प्रवाहित इस धारा में दो मौके ऐसे आए जब सत्ता ने दुर्भावनाग्रस्त होकर इसके रास्ते में बाधाएं खड़ी कीं और कुछ समय के लिए इसका प्रवाह बाधित कर दिया। पहले 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद प्रतिबंध लगा तो बाद में 1975 से 77 तक आपातकाल के दौरान पाञ्चजन्य का छपना बंद हुआ। कांग्रेसी सत्ता की त्योरियां चढ़ी रहीं। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा रोपा गया ये बिरवा लगातार बढ़ता और सराहा जाता रहा, संसद से सड़क तक देश से जुड़े और सरकारी तंत्र द्वारा जानबूझकर अनदेखे किए गए मुद्दों को मुखर करता रहा। 1953 में प्रयाग में तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी द्वारा हिन्दू समाज का विशद् मार्गदर्शन किया गया उसे पाञ्चजन्य ने ही घर घर पहंुचाया था। शेख अब्दुल्ला के कश्मीर को हड़पने के मंसूबों का पर्दाफाश किया था, दीनदयाल जी की अखण्ड भारत की संकल्पना को देश-विदेश में प्रसारित किया था।
देश रक्षा की तैयारियों में परमाणु विस्फोट को सराहा तो 6 दिसम्बर को अयोध्या में बाबरी ढांचे के ढहने पर देशव्यापी जनांदोलन और हिन्दू जागरण पर विशेष अंक प्रकाशित किए। बंगलादेश मुक्ति संग्राम हो या कश्मीर में जिहाद की ललकार, पूर्वोत्तर में चर्च प्रेरित अलगाव की बयार हो या विद्रोहियों के धमाके, भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने का अवसर हो या जम्मू में कश्मीरी पण्डितों के शरणार्थी शिविरों में बदहाली का आलम, पाञ्चजन्य ने हर ऐसे विषय पर शोधपरक सामग्री प्रकाशित की है जिससे दूसरे सेकुलर अखबार कन्नी काटने में ही अपना बाजार सलामत मानते हैं। दक्षिण में कम्युनिस्ट हिंसा में संघ कार्यकर्ताओं की हत्या हो या गुजरात में सूखे से हाहाकार, भारत में चीनी बाजार की घुसपैठ हो या विदेशी कंपनियों का भारत के लघु और कुटीर उद्योगों को लीलना, सरकार की आम आदमी-मजदूर विरोधी मानसिकता पर पाञ्चजन्य ने बराबर खबरदार किया है।
केन्द्र में पहली बार भाजपानीत सरकार बनने पर 26 मई 1996 को पाञ्चजन्य ने चुनौती स्वीकार शीर्षक से राजग सरकार के सामने जनता के मनोभाव रखते हुए वाजपेयी सरकार के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त की थीं। 24 मई 1998 के अंक में वाजपेयी सरकार की बड़ी उपलब्धि पोकरण विस्फोट पर जागा फिर स्वाभिमान शीर्षक से भारत के दमखम से दुनिया को परिचित कराया था। गोवध बंदी, ईसाई-मुस्लिम मतान्तरण, मंदिरों पर सरकारी शिकंजा, अवैध मस्जिदों और मदरसों का निर्माण, शिक्षा का सेकुलरीकरण, व्यापारीकरण, भ्रष्टाचार, काला धन और स्वदेशी अर्थव्यवस्था जैसे विषय पाञ्चजन्य में बराबर स्थान पाते हैं और इन विषयों पर जनता में एक अभिमत तैयार करते हैं। यही वजह है कि पाञ्चजन्य को किसी दल विशेष से नहीं, अपितु लगभग सभी राजनीतिक दलों से एक सा सम्मान प्राप्त होता रहा है। हर विचारधारा के नेताओं के विचारों को पर्याप्त स्थान देने और उनकी बात को जस का तस छापने के कारण पाञ्चजन्य के प्रति असंदिग्ध विश्वास है। यह विश्वास जिस भाव धारा के कारण है उसका सतत अवगाहन करने क ी प्रतिबद्धता के साथ पाञ्चजन्य आगे बढ़
रहा है।
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