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दुष्प्रचार के बावजूद ताकत बढ़ रही है संघ की

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Mar 15, 2014, 12:00 am IST
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दिंनाक: 15 Mar 2014 11:22:15

-कुन्दन पाण्डेय-

30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1 फरवरी, 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरुजी को गिरफ्तार कर लिया गया। इससे नेहरू और निकृष्ट मानसिकता वाले कांग्रेसियों को संघ को निपटाने का एक अवसर मिला, जिसकी वे शिद्दत से तलाश कर रहे थे। 4 फरवरी, 1948 को संघ पर पहली बार प्रतिबंध लगा। 21 जनवरी, 1949 तक संघ के लगभग 60,000 स्वयंसेवक गिरफ्तार हो चुके थे। गांधी हत्या से 25 दिन पूर्व 6 जनवरी, 1948 को आकाशवाणी से दिए संदेश में सरदार पटेल ने कहा था, 'कांग्रेस में जो लोग सत्तारूढ़ हैं, सोचते हैं कि वे अपनी सत्ता के बल पर संघ को कुचल सकेंगे, डंडे के बल पर आप किसी संगठन को दबा नहीं सकते। डंडा तो चोर-डाकुओं के लिए रहता है। आखिर संघ के लोग चोर-डाकू तो हैं नहीं। वे देशभक्त हैं और अपने देश से प्रेम करते हैं।ह्ण
गांधी हत्या का सीधा लाभ नेहरू को मिला, जो गांधी के शासन में बाध्यकारी हस्तक्षेप से हमेशा के लिए आजाद होकर निष्कंटक राज करने लगे। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कपूर की अध्यक्षता वाला जांच आयोग संघ को गांधी हत्या से दोष-मुक्त कर चुका है। इसी कारण प्रतिबंध समाप्त किया गया था। गांधी संघ के प्रात: स्मरणीय हैं।
सन् 1948 से संघ का 14 साल का वनवास 1962 के चीनी आक्रमण के समय सैनिकों की सेवा-उपचार से लेकर, सेना का मनोबल बढ़ाने और हरसंभव सहायता का स्तुत्य कर्तव्य निभाने से समाप्त हुआ। इससे प्रभावित होकर पं़ नेहरू ने संघ को ससम्मान 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। मात्र 2 दिन की सूचना पर दिल्ली में 3500 गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने परेड में कदमताल किया। गांधी के 'हत्यारे' को नेहरू गणतंत्र दिवस परेड में कभी नहीं बुलाते।
संघ को साम्प्रदायिक कहने वाले नेता राहुल, मुलायम, लालू, नीतीश, सुन लें कि जयप्रकाश नारायण ने संघ के बारे में क्या कहा था। 1975 के आपातकाल विरोधी आंदोलन में जेपी ने कहा था, ह्यसंघ अगर सांप्रदायिक है, तो मैं भी सांप्रदायिक हूं।' राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संयोजक श्री इन्द्रेश कुमार मुस्लिमों के बीच भारतीयता का बीज रोप रहे हैं। इससे सेकुलर राजनीतिक दलों की सांस उखड़ने लगी। कांग्रेस सहित समाज को तोड़ने की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है। वे सोचते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो उनका मुस्लिम वोट बैंक हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। इसलिए मुसलमानों को हरसंभव तरीके से संघ से दूर करने की कोशिशें युद्ध स्तर पर की जाने लगीं।
संघ का संगठन वोटबैंक, भाषावाद, क्षेत्रवाद या जाति विशेष को ध्यान में रखकर काम नहीं करता है। वह तो भारत की सभ्यता-संस्कृति-पहचान पर पूरे देश को एकता के सूत्र में संगठित करता है। संकीर्ण राजनीतिक दलों के संकीर्ण हितों को सिद्धांतत: संघ से बहुत नुकसान होता है।
हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयता है। यही संघ का आधारभूत विचार है। इसके दरवाजे सभी मत-पंथों के लिए खुले हुए हैं, क्योंकि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है पूजा-पद्धति नहीं। जैन मत के अनेक लोग संघ में वरिष्ठ प्रचारक हैं। उनके पूजा के तरीके अलग हैं, लेकिन फिर भी वे हिन्दुत्व के अंश हैं। कांग्रेस ने 1950 से 2013 तक जैन मत को अल्पसंख्यक नहीं माना, लेकिन 2014 में जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित करके वह राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। संघ से जुड़ने के लिए राष्ट्रीय होना आवश्यक है, हिन्दू होना नहीं।
इंदौर के आलमगिर गौरी 30 वषोंर् से भी अधिक समय से स्वयंसेवक हैं और आपातकाल में जेल की सजा काट चुके हैं। संघ की कार्य पद्धति है प्रचार-प्रसिद्धि और मीडिया से दूर रहना। विरोधी हमेशा इसी का फायदा उठाकर दुष्प्रचार में जुट जाते हैं।
14 से 16 दिसंबर, 2013 तक मुम्बई के निकट उत्तन में हुई राष्ट्रीय मुस्लिम

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