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तुम आदमी हो या

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Feb 22, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Feb 2014 16:02:20

-विजय कुमार-

तालियों के शोर के बीच शर्मा जी को हमने एक बार फिर मोहल्ले के बुजुर्गों की संस्था ह्यवरिष्ठ नागरिक संघह्ण (वनास) का अध्यक्ष चुन लिया। आप जानते ही हैं कि बुजुर्गों को अपने अनुभव दूसरों को देने का रोग होता है। उबलते हुए दूध की तरह उनके अनुभव छलकते रहते हैं। कुछ को तो दिन में कई बार इसका दौरा पड़ता है। इसलिए युवक इस संस्था के सदस्यों से दूर भागते हैं। वे इसे ह्यवनासह्ण की बजाय ह्यवनवासह्ण कहकर हमें सदा के लिए वनवास चले जाने की सलाह देते हैं। बच्चे इसे ह्यबाबा पंचायतह्ण (बाप) कहते हैं। उनके खेल के समय यदि संस्था का कोई सदस्य दिख जाए, तो वे आपस में खुसफुस करते हैं – बाप जी आ गये हैं, भागो़…। खैर, अब असली मुद्दे पर आते हैं। शर्मा जी ने ह्यवनासह्ण की अगली बैठक में कहा कि वसंत आ रहा है, इसलिए सबको सपरिवार घूमने चलना चाहिए। उन्होंने इसके लिए अंदमान-निकोबार का सुझाव भी दिया। सबकी सहमति से ह्यट्रैवल एजेंसीह्ण वाले गुप्ता जी को इसकी विस्तृत जानकारी करने को कह दिया गया। अगली बैठक में गुप्ता जी ने पूरा विवरण बताया; पर पिछले दिनों 26 जनवरी को अंदमान में हुई नौका दुर्घटना से शर्मा जी का कोमल मन डोल गया। अब उनका मत था कि इन दिनों दक्षिण भारत का मौसम बहुत अच्छा रहता है। अत: रामेश्वरम, कन्याकुमारी और तिरुपति बालाजी चलना चाहिए। एक बार फिर गुप्ता जी को पूरा विवरण जुटाने को कहा, लेकिन अगली बैठक में शर्मा जी की राय फिर बदल गयी।
अब उनका तर्क था कि मार्च-अपै्रल में चुनावी माहौल चरम पर होगा। पता नहीं कब क्या गड़बड़ होने लगे। अत: अपने क्षेत्र से बहुत दूर जाना ठीक नहीं है। इसलिए मां वैष्णो देवी के दर्शन करना अच्छा रहेगा। इससे अगली बैठक में वे सोमनाथ और द्वारिका के गुण गाने लगे। शर्मा जी को बार-बार अपनी राय बदलते देख सब लोग नाराज हो गये। यात्रा की बात से घर वाले भी बहुत खुश थे। घर की युवा बहुओं के लिए तो यह ह्यमुक्तिपर्वह्ण जैसा ही था। उनका कहना था कि सास जी के यात्रा पर जाने के बाद ही हम ठीक से 15 अगस्त मनाएंगी। पर हर बैठक में शर्मा जी अपना विचार बदल लेते थे। ह्यवनासह्ण के उपाध्यक्ष वर्मा जी तो भड़क गये। उनका कहना था कि शर्मा जी एक बार ठीक से तय कर लें कि यात्रा पर जाना भी है या नहीं ? फिर वे एक समिति बना दें, जो बाकी सब बातें तय कर लेगी; पर शर्मा जी इसे मानने को तैयार नहीं थे। इस पर दोनों में बहस होने लगी वर्मा – शर्मा जी, तुम आदमी हो या केजरीवाल ? अपनी किसी बात पर तो टिक कर रहो। शर्मा – तुम ये कहने वाले कौन हो ? मैं 'वनास' का संस्थापक हूं। मैंने इसके लिए खून-पसीना एक किया है।
इसमें वही होगा, जो मैं चाहूंगा। – पर आप कुछ चाहें, तब तो…। आप तो हर बार अपनी ही बात पर ह्यकेजरी टर्नह्ण ले लेते हैं। बहुत हो गया। अब ऐसे नहीं – आप लोग चाहे जो कहें; पर यहां तो ऐसे ही चलेगा। यदि आप मेरी बात नहीं मानेंगे, तो मैं ह्यवनासह्ण के कार्यालय में धरना दे दूंगा।- पर कार्यालय सिर्फ आपका नहीं, हमारा भी है।- तो मैं सड़क पर बैठ जाऊंगा। वहीं सोऊंगा और वहीं नहाऊंगा। ह्यवनासह्ण का काम भी मैं वहीं से निबटाऊंगा। ज्यादा जिद की, तो मैं त्यागपत्र से लेकर भूख हड़ताल तक कुछ भी कर सकता हूं। सब जानते थे कि शर्मा जी को धरने और अनशन से बहुत प्रेम है। पिछले एक-डेढ़ साल से अण्णा हजारे और केजरीवाल की संगत के कारण वे बाहर ही नहीं, कई बार अपने घर में भी धरना और भूख हड़ताल कर चुके हैं। इस कारण उनसे बहस करना बेकार समझकर सबने बैठक स्थगित कर दी। शाम को बाजार जाते समय मैं उधर से निकला, तो वे मफलर गले में डाले अकेले बैठे खांस रहे थे। वापसी पर फिर देखा, तो मैदान साफ था। चौकीदार ने बताया कि वे झक मारकर घर चले गये हैं। यदि आपके पास शर्मा जी की खांसी और मानसिक अस्थिरता का कोई इलाज हो, तो जरूर बताएं। शर्मा जी के घर का पता तो आपको मालूम ही होगा। ह्यकौशाम्बीह्ण के पास ही है।

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