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विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के सभी दरबारियों में सबसे श्रेष्ठ और बुद्धिमान तेनालीराम थे। राजा हमेशा उन्हें अपने साथ रखते थे। इस बात से अन्य दरबारी तेनालीराम से ईर्ष्या करते थे। एक बार दरबारियों ने मौका देखकर राजा को भड़का दिया। राजा ने दरबारियों की बातों से नाराज होकर उन्हें नगर से चले जाने को कहा।
कुछ दिनों बाद राजा अपना वेष बदलकर अपनी प्रजा का हाल चाल जानने अपने दरबारियों के साथ निकले। वे घूमते-फिरते एक गांव में पहुंचे, जहां खेतों के पास बैठे कुछ किसान आपस में बातचीत कर रहे थे। राजा अपने दरबारियों के साथ वहां पहुंचे और किसानों से पूछा कि भाइयो, आपके गांव में कोई व्यक्ति कष्ट में तो नहीं है। गांव वाले बोले, महाशय, हमारे यहां सब कुशल मंगल है, सभी लोग सुखी हैं। किसी को कोई दुख नहीं है। वेष बदले हुए राजा कृष्णदेव राय ने फिर पूछा कि, राजा कैसे हैं? इस प्रश्न पर एक बूढ़ा किसान उठा, उसने ईख के खेत से एक गन्ना तोड़ा और राजा को दिखाते हुए कहा, हमारे राजा कृष्णदेव राय इस गन्ने जैसे हैं।
राजा को किसान की बात समझ में नहीं आई, उन्होंने अपने दरबारियों से पूछा कि बूढ़े किसान की इस बात का क्या अर्थ है ? यह सुनकर दरबारी एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। फिर एक चाटुकार दरबारी ने कहा, महाराज इस बूढ़े किसान के कहने का अर्थ यही है कि हमारे राजा इस मोटे गन्ने की तरह कमजोर हैं। उसे जब भी कोई चाहे, एक झटके में उखाड़ सकता है, जैसे कि मैंने यह गन्ना उखाड़ लिया है।
राजा दरबारी की बात सुनकर सोच में पड़ गए। वह उसकी बात से सहमत होकर गुस्से से भर उठे। वे बूढ़े किसान से बोले, तुम शायद मुझे नहीं जानते कि मैं कौन हूं? राजा की क्रोध से भरी वाणी सुनकर वह बूढ़ा किसान डर के मारे थर-थर कांपने लगा। तभी एक अन्य बूढ़ा उठा और बड़े नम्र स्वर में बोला, महाराज, हम आपको पहचान गए हैं, लेकिन हमें दुख इस बात का है कि आपके दरबारी ही आपके असली रूप को नहीं जानते। मेरे साथी किसान के कहने का अर्थ यह है कि हमारे महाराज अपनी प्रजा के लिए तो गन्ने के समान कोमल और रसीले हैं, लेकिन दुष्टों के लिए कठोर भी हैं। उस बूढ़े ने गन्ने से एक कुत्ते पर प्रहार करते हुए अपनी बात पूरी की। यह कहने के बाद बूढ़े व्यक्ति ने अपना लबादा उतार फेंका और अपनी नकली दाढ़ी-मूंछे उतारने लगा। उसे देखते ही राजा चौंक पड़े। वे बोले, तेनालीराम, तुम नगर छोड़कर गए नहीं ? तेलानीराम ने कहा कि महाराज अगर मैं चला जाता तो इन चाटुकार दरबारियों की वजह से निर्दोष किसान को आप बिना किसी कारण ही दंडित कर देते। राजा को तेनालीराम की बात समझ में आ गई। वह बोले, तेनालीराम तुम सही कहते हो, चाटुकारों का साथ हमेशा दुखदायी होता है। उन्होंने तत्काल बाकी दरबारियों को वहां से चले जाने का आदेश दिया। चाटुकार दरबारी मुंह लटकाकर वहां से चले गए और राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम को वापस अपने साथ राजमहल ले आए। शिक्षा: राजा को हमेशा चाटुकारों से
दूरी बनाकर रखनी चाहिए। बाल चौपाल डेस्क
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