|
गत 14 फरवरी को दिल्ली विधानसभा में पहले से लिखी पटकथा पर आधारित संवाद बोलकर हर सूरत में अपनी बात मनवाने की कोशिश नाकाम होने के बाद केजरीवाल के नाटक का पहला अध्याय विधानसभा सत्र के साथ समाप्त हो गया। अब उन्होंने नाटकीयता बढ़ाने के लिए इस्तीफा देकर एक और कोशिश की है, ताकि उनकी 'टीआरपी' बनी रहे। 'आम आदमी पार्टी' की सरकार द्वारा पूर्वलिखित पटकथा के अनुसार ही सब कुछ किया गया। उप राज्यपाल नजीब जंग ने दो दिन पहले ही विधानसभा के अध्यक्ष एमएस धीर को पत्र लिखकर कहा था कि मैंने प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक को मंजूरी नहीं दी है। इसलिए यह विधेयक असंवैधानिक है। आप विधानसभा के संरक्षक हैं और इस नाते आपकी यह जिम्मेदारी है कि आप किसी असंवैधानिक विधेयक को विधानसभा के पटल पर पेश न होने दें। उपराज्यपाल की इस सलाह के बाद विधानसभा में विधायकों की राय ली गई कि इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा जाए या नहीं। 42 विधायकों ने विधेयक को सदन में प्रस्तुत न करने की राय दी,तो 27 विधायकों ने प्रस्तुत करने को कहा। 42 सदस्यों की राय को देखते हुए जनलोकपाल विधेयक को प्रस्तुत नहीं किया गया। इसके बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गर्मागर्म बहस हुई। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बहस का जवाब देते हुए जल्दी ही पद छोड़ने का संकेत दिया। इसके बाद विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई।
दरअसल, सच बात तो यह है कि 'आआपा' भी यह तथ्य जानती थी कि वह जिस जनलोकपाल विधेयक की बात कर रही है वह केंद्र की अनुमति के बिना असंवैधानिक है, लेकिन केजरीवाल सरकार इस विधेयक की आड़ में अपने को 'शहीद' दिखाकर अपनी छवि बचाना चाहती थी।
केजरीवाल यह भली प्रकार जानते थे कि कांग्रेस और भाजपा इस विधेयक को किसी भी सूरत में पारित नहीं होने देगी। जब ऐसा होगा तो उन्हें भोली-भाली जनता के बीच जाकर यह बोलने का बहाना मिल जाएगा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों भ्रष्ट हैं। इसलिए वे जनलोकपाल विधेयक के विरोध मेंे खड़ी हुई हैं। वे जनता से यह भी कहेंगे कि दोनों पार्टियां ही भ्रष्टाचार को खत्म नहीं होने देना चाहती हैं। ध्यान देने वाली बात है कि केजरीवाल सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही थी। जनता उनकी सरकार को लेकर तरह- तरह के सवाल पूछने लगी थी। इन सवालों का स्पष्ट जवाब न तो केजरीवाल के पास है और न ही उनकी सरकार के मंत्रियों के पास। इसलिए वे इसी विधेयक को मुद्दा बनाकर खुद अपनी सरकार गिराना चाहते थे ताकि उनकी जनता के सामने किरकिरी होने से बच जाए। इस बहाने वे लोकसभा चुनावों में कुछ सीटों पर काबिज होने की कोशिश में जुटे हुए हैं। वे खुद ही चाहते थे कि ऐसा कुछ हो कि उनकी सरकार गिर जाए और वे इसको मुद्दा बनाकर अपना 'ब्लैकमेलिंग गेम' जारी रख सकें। प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ