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स्वामी विवेकानंद को इस धरा धाम से विदा हुए लम्बा वक्त बीत चुका है, लेकिन आज भी उनके संदेश युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बने हुए हैं। राष्ट्र के भविष्य की दिशा तय करने में भी उनके विचार निर्णायक भूमिका का निर्वहन करने की क्षमता रखते हैं। स्वामी जी राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि राष्ट्र के गौरवबोध से ही राष्ट्र का कल्याण होगा। हिन्दू संस्कृति,समाजसेवा,चरित्र-निर्माण,शिक्षा,देशभक्ति,व्यक्तित्व तथा नेतृत्व इत्यादि के विषय में स्वामी जी के विचार आज और भी अधिक प्रासंगिक हैं। हाल ही प्रकाशित हुई मेजर डॉ़ परशुराम गुप्त की पुस्तक ह्यविवेकानंद और राष्ट्रवादह्य में उन्होंने उनके जीवन परिचय के साथ-साथ, तमाम विषयों पर उनके विचारों को समाहित किया है।
पुस्तक के सबसे पहले खंड में ह्यस्वामी विवेकानंदह्ण अध्याय में उनका संक्षिप्त जीवन-परिचय को दिया गया है। स्वामी जी सदैव देशवासियों को एक संदेश दिया करते थे कि राष्ट्र ही हमारा जाग्रत देवता है। उसके हाथ हैं,पैर हैं और कान हैं। समझ लो कि दूसरे देवी-देवता सो रहे हैं। जिन देवी-देवताओं को हम देख नहीं पाते,उनके पीछे दौड़ने की बजाय, जिस विराट देवता को हम अपने चारों ओर देख रहे हैं,उसकी पूजा करें । अपने चारों ओर फैले विराट की ही पूजा प्रथम पूजा है। ये मनुष्य और पशु ,जिन्हें हम आस-पास और आगे पीछे देख रहे हैं, ये ही हमारे ईश्वर हैं और इनमें सबमें पहले पूज्य हैं हमारे देशवासी ।
पुस्तक के खंड ह्यसेवा और त्यागह्ण में लेखक ने स्वामी जी के विचारों को शब्द रूप देकर लिखा है कि भारत दोबारा तभी उठेगा जब सैकड़ों विशाल हदय युवक-युवतियां सुखोपभोग की समस्त कामनाओं को तिलाञ्जलि दे अपने करोड़ों देशवासियों के,जो धीरे-धीरे दरिद्रता और अज्ञान के गर्त में गिरते जा रहे हंै, कल्याण हेतु अपनी पूरी शक्ति लगाने का संकल्प लेंगे।
स्वामी जी ने नारी शक्ति को इस जगत की प्रमुख शक्तियों में से एक कहा है। पुस्तक में ह्यनारी जागरणह्ण अध्याय में नारी जागरण पर उनके विचार व उसके महत्व को प्रस्तुत किया गया है। स्वामी जी स्त्री शिक्षा पर जोर देकर कहा करते थे कि भारत की स्त्रियों को ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए, जिससे वे निर्भय होकर भारत के प्रति अपने कर्तव्यों को भली-भांति निभा सकें और संघमित्रा,लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई,मीराबाई आदि भारत की महान देवियों द्वारा चलाई गई परम्परा को आगे बढ़ा सकें। उन्होंने भारतीय स्त्रियों के बारे में विशेष रूप से कहा था कि हिन्दू स्त्रियां बहुत आध्यात्मिक और धार्मिक होती हैं,कदाचित संसार की सभी महिलाओं से अधिक । यदि हम उनकी इन सुन्दर विशिष्टताओं की रक्षा कर सकें और साथ ही उनका बौद्घिक विकास भी कर सकें,तो भविष्य की हिन्दू नारी संसार की आदर्श नारी होगी। कुल मिलाकर पुस्तक में स्वामी जी के जीवन से संबंधित कुछ विषयों पर उनके विचारों को देने का पूर्ण प्रयास किया है,क्योंकि स्वामी जी का दर्शन एक सागर के समान है, जिसे एक क्या सैकड़ों पुस्तकों में भी बताना संभव नहीं है। उनकी सार्द्घ शती पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं,उसी क्रम में लेखक की यह भी एक पुस्तक है,जो पाठकों को उनके अथाह ज्ञान सागर में से कुछ विषयों पर जानने के लिए उत्तम सिद्घ होगी।
शब्दों से परे कैलास मानसरोवर
कैलास पर्वत का नाम आते ही मन में एक अद्भुत,अलौकिक स्वरूप का आभास जागृत होने लगता है। स्वयं भगवान शंकर का वास होने के
कारण दानव,मानव,यक्ष,गन्धर्व,किन्नर और देवता तक उस कैलास की अप्रतिम सुन्दरता का बखान करते नहीं थकते हंै। इसके सौन्दर्य का उल्लेख रामायण,महाभारत,स्कंद पुराण,व कालिदास के रघुवंश और कुमार संभव में इसके अपूर्व सौन्दर्य का वर्णन मिलता है। हाल ही प्रकाशित लेखक हेमन्त शर्मा की पुस्तक ह्यद्वितियोनास्तिह्ण में कैलास मानसरोवर यात्रा में उनके स्वयं के अनुभव समाहित हंै। पुस्तक के खण्ड ह्यसंकल्पह्ण में लेखक ने लिखा है कि, कैलास मानसरोवर की यात्रा जीवन की इच्छा नहीं बल्कि एक संकल्प था। बचपन में दादी की कहानियों में कैलास मानसरोवर के अद्भुत सौन्दर्य का वर्णन सुना था और सुन रखा था कि वह एक रहस्य लोक है,दिन में कई बार सूर्य की स्थिति बदलने से मानसरोवर का रंग बदलता है। लेकिन वह पल धीरे-धीरे नजदीक आ रहा था। हम सभी प्रकृतिक के उस अपूर्व सौन्दर्य का दर्शन करने के लिए लालायित थे।
अपने सभी साथियों के साथ नेपाल के रास्ते हेलीकॉप्टर से सिमीकोट पहुंचे और वहां से इसी प्रकार हम सभी लोग हिलसा पहुंचे, जहां कुछ समय विश्राम करने के बाद हम सभी लोग हिलसा से चीन के तकलाकोट के लिए रवाना हुए। लेखक ने लिखा है कि चेक पोस्ट पर चीनी सुरक्षाकर्मियों के साथ पहला ही अनुभव अच्छा नहीं रहा । वह हमारे साथ ठीक व्यवहार नहीं कर रहे थे। हम सभी लोग यहां से कैलास के लिए रवाना हुए । रास्ते में प्रकृति के उस अनुपम और अद्भुत स्वरूप को देखकर पुस्तकों और कहानियों की याद आने लगी, जिसमें कैलास को स्वर्ग की संज्ञा दी गई है।
पुस्तक के खण्ड ह्यअंचभाह्ण में लेखक ने लिखा है कि कैलास को मैं अपनी आंखों से पहली बार देख रहा था। उसके अप्रतिम् सौन्दर्य को देखते ही मैं सन्न रह गया। लगा कि जैसे कोई सपना देख रहा हूं। सामने सुभ्र,उज्ज्वल,धवल कैलास, जिसकी सुन्दरता को शब्दों में गढ़ा ही नहीं जा सकता है। एकटक आंखें उस अद्भुत सौन्दर्य को देखें ही जा रही थी, जैसे लग रहा था कि मानो कोई सपना देख रहा हूं। गाड़ी के चालक ने मुझसे कहा आगे और चलिए इससे भी सुन्दर नजारा देखने को मिलेगा। थोड़ी दूर चलने के बाद मानसरोवर दिखा। अद्भुत,अपूर्व,अलौकिक स्वरूप से पूर्ण,जिसे मन देखकर गदगद हो गया। ऐसा लग रहा था कि उसे देखता ही जाऊं। चारों ओर पहाड़ बीच में अपार जलराशि । शब्दों से परे,निशब्द़
पुस्तक में कैलास पर्वत की परिक्रमा के साथ-साथ चीनी सेना द्वारा बौद्घों पर किए गए अत्याचार व तिब्बती लोगों की जीवन शैली को भी विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया गया है। आज भी इस क्षेत्र में चीनी सेना का आतंक गूंजता है। कभी बौद्घ गोंपा सभ्यता के गढ़ के रूप में रहे इस क्षेत्र को चीनी सेना ने बल प्रयोग करके नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था और सभी साहित्य को आग लगा दी थी। 1950 में चीन के लोगों के आने से पहले यहां लगभग 6 हजार मठ-मन्दिर हुआ करते थे और जिनमें 6 लाख से ज्यादा बौद्घ भिक्षु रहते थे ,लेकिन चीन ने इस क्षेत्र पर हमला करके दमन के साथ-साथ धर्म और राज्य दोनों को कुचला। चीनी बर्वरता का अंदाजा वर्ष1979 में हुए एक सर्वे से लगाया जा सकता है कि उस समय वहां पर सिर्फ 60 मठ ही बचे थे और सभी को चीनी सेना ने आग लगा दी। लेखक ने पुस्तक में नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए आक्रोश व्यक्त किया है । इसी बात पर समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया की हिमालय नीति का भी संज्ञान लिया है,जिसमें उन्होंने नेहरू से सवाल पूछते हुए कहा था कि हमारे प्रभु विदेश में क्यों ? कुल मिलाकर पुस्तक कैलास मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले लोगों के लिए पथ प्रदर्शक की के रूप में है। लेखक को जहां भी लगा कि पुस्तक के शब्द उस अद्भुत दृश्य का वर्णन नहीं कर सकते वहां पर उन्होंने चित्रों का सहारा लिया है। मनमोहक व सुन्दर चित्रों से पुस्तक की शोभा और बढ़ गई है।
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