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वसंत पंचमी (4 फरवरी ) पर विशेष
वसंत पंचमी हिन्दुओं के प्रमुख पर्वों में से एक है। इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बंगलादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन महिलाएं पीले वस्त्र धारण करती हैं और शिक्षण संस्थाओं में भी बच्चे मां सरस्वती पर आधारित कार्यक्रम पेश करते हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बांटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम है। वसंत में फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों मे सरसों पककर चमकने लगती है, जौं और गेहूं की बालियां खिलने लगतीं हैं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाते हैं और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं हैं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवें दिन एक बड़ा उत्सव मनाया जाता है जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा होती है, यह वसंत पंचमी का त्योहार कहलाता है। शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका वर्णन मिलता है। इस दिन अनसूझ साया भी होता है यानी जिन लोगों के विवाह की तिथि नहीं सूझती है उनका विवाह भी इस दिन कर दिया जाता है।
मां सरस्वती की उत्पत्ति
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की पर अपनी संरचना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों तरफ मौन छाया रहने लगा। विष्णु जी से अनुमति लेकर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई। यह एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उन देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्घि प्रदान करने वाली हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी कहलाती हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया हैकि- ह्यप्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतुह्ण। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हमारे भीतर जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वतीजी से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन उनकी भी आराधना की जाएगी। भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वतीजी की भी पूजा होने लगी, जो कि आज तक जारी है। पतंगबाजी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन पतंग उड़ाने की परम्परा हजारों साल पहले चीन में शुरू हुई थी और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होकर भारत पहंुच गई।
पर्व का महत्व
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यूं तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
पौराणिक महत्व
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता जी के हरण के बाद भगवान राम उनकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े थे। इसमें जिन-जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब श्री राम उनकी कुटिया में पधारे तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है, जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां गये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं। उसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर वहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
ऐतिहासिक महत्व
वसंत पंचमी का दिन महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब 17वीं बार वे पराजित हुए तो मोहम्मद गोरी ने उसे नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज,अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान।।
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा मारकर आत्मबलिदान दे दिया। कहा जाता है कि (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी। वसंत पंचमी हमें गुरु राम सिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई़ में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे थे। आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया। इन्द्रधनुष डेस्क
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