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सुरक्षित है तब तक ही राष्ट्र है, और सुरक्षा सिर्फ सीमाओं की नहीं होती। मुद्दा और भी महत्वपूर्ण तब हो जाता है जबसुरक्षा को लेकर समस्या आतंरिक हो। बारूद और बहादुरी बाहरी ताकतों से निबटने के लिए जितने कारगर हैं उतना घर में इस्तेमाल की चीज नहीं। चौकसी अच्छी बात है परंतु जब सेंध गढ़ में लगे तो चोट गहरी होती है और चुनौती बड़ी। आतंरिक स्तर पर सुरक्षा को लेकर उपजी समस्याओं से निबटने के लिए अलग तरह के तेवर और तैयारी की जरूरत होती है। आजादी के 67 वर्ष बाद देश की आतंरिक सुरक्षा को लेकर कुछ बड़ी समस्याएं बाकी हैं। उत्तर पूर्वी राज्यों की बेचैनी, नक्सलवाद, आतंकवाद, बढ़ते आर्थिक अपराध जैसे कुछ विषय ऐसे हैं, जिन पर गहराई से सोचने और उनसे निबटने के लिए सटीक योजनाएं बनाने की जरूरत है। इसी विचार को धुरी बनाते हुए पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर ने देश की आतंरिक सुरक्षा चुनौतियों पर केंद्रित ह्यसुरक्षा पर संवादह्ण कार्यक्रम आयोजित किया। 26 दिसंबर, 2013 को दिल्ली के मध्यप्रदेश भवन में हुए इस कार्यक्रम में सुरक्षा विशेषज्ञों, बुद्धिजीवियों और वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने विचार रखे। आठ सत्रों में बंटी इस विस्तृत संवाद कार्यशाला में अलग-अलग मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपनी जानकारी और विचार साझा किए।
आजादी के बाद स्पष्ट विलयपत्र के बावजूद राजनैतिक नेतृत्व और राजनय का जरा सा हल्कापन आजतक देश को भारी पड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर को लेकर उपजी समस्या हमारी ही खामियों से जस की तस बनी हुई है। इस विषय पर मुख्य वक्ता थे सेंटर फार लैंड वारफेयर स्टडीज के आलोक बसंल। उनका मानना था कि पिछले कुछ समय के दौरान जम्मू- कश्मीर राज्य की परिस्थितियों में कुछ परिवर्तन आया है। घाटी की पुरानी पीढ़ी जहां अलगाववादी नेता गिलानी को सही मानती थी, वहीं वर्तमान परिवेश में युवा पीढ़ी की सोच बदली है। आज युवा मानते हैं कि पाकिस्तान का की राह और रवैया गलत है। पाक कब्जे वाले कश्मीर के मुकाबले अपने मूल देश भारत में कश्मीरी ज्यादा खुश और सुरक्षित हैं। आतंकियों ने पहले घाटी में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया। अब अल्पसंख्यक शिया मुसलमान और गुज्जर व बक्करवाल समुदाय सुन्नियों के हाथों भेदभाव के शिकार हैं। कश्मीर के बारे में लोगों की जानकारी कम है। चर्चा में विशेषज्ञों की साझी राय थी कि देश के सभी राज्यों की पाठ्यपुस्तकों में जम्मू-कश्मीर की विस्तृत भौगोलिक स्थिति और समृद्ध संस्कृति की जानकारी शामिल की जाए। है। चर्चां में उभरा दूसरा विचारोत्तेजक मुद्दा था गिलगित। मूल रूप से भारत का यह वह हिस्सा है जिसके बारे में खुद भारतीय अच्छे से नहीं जानते और पाकिस्तान के संविधान तक में उल्लेख ना होने के बावजूद हम अपना अत्यंत महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र भूले बैठे हैं। आज पाकिस्तान ने अथाह प्राकृतिक संपदाओं से भरा यह पूरा इलाका चीन को जा सौंपा है।
जम्मू में सेना की स्थिति को लेकर विशेषज्ञों का यह स्पष्ट मत था कि सेना से स्थानीय लोगों के परेशान होने की धारणा गलत है। यह मुट्ठीभर भारतविरोधियों का एकपक्षीय प्रचार और उनकी अब तक सफल रही चाल है। ज्यादातर मामलों में ऐसा अनुभव रहा कि स्थानीय लोग सेना से नहीं, बल्कि स्थानीय पुलिस से नाराज दिखे और ठीकरा सेना के माथे फोड़ा गया। परस्पर संवाद में रक्षा विशेषज्ञों का मानना था कि यदि अपवादों को उदाहरण ना माना जाए तो सीमांत क्षेत्रों में फौज और स्थानीय लोगों के बीच आमतौर पर संबंध अच्छे ही रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा बार-बार संघर्ष विराम का उल्लंघन और सीमा पार से आतंकी घुसपैठ के मुद्दे पर विशेषज्ञ सरकार की वतअमान नीति से पूर्णत: असहमत दिखे। सेवानिवृत वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की एकमत राय थी की भारत को चाहिए कि पहले हरकत का कड़ा जवाब दिया जाए इसके बाद ही कोई बातचीत की जाए। हरकतों को हल्का आंकना और चोट खाने पर भी बार-बार दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाना दूसरे पक्ष का दु:स्साहस और अपनी जनता का क्षोभ बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त हमारी शासन व्यवस्था का यह भी दोष है कि योजना बनती हैं परंतु क्रियान्वयन में बहुत लंबा समय लग जाता है।
जम्मू -कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में संचार और प्रसार की सही व्यवस्था नहीं है। लद्दाख में परंपरागत चारागाहों की हमारी जमीन पर पड़ोसियों की नजर है, स्थानीय लोग नाराज हैं और दिल्ली को इसकी फिक्र नहीं दिखती। लदख के लोगों की चिंताओं को समझना और उन्हें साथ लेकर चलना जम्मू- कश्मीर राज्य और पूरे देश के व्यापक हित में है। है।
विशेषज्ञों का कहना था कि जम्मू-कश्मीर पुलिस की भर्ती प्रक्रिया और ढांचे में सुधार करना होगा। आतंकवाद खत्म करने के ग्राम रक्षा समितियों और स्थानीय पुलिस को और असरदार मुद़्दे पर एकनई भूमिका निभानी है। जिस तरह पंजाब में आतंकवाद को खत्म करने में वहां की पुलिस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसी तरह जम्मू-कश्मीर पुलिस को और सशक्त बनान होगा ताकि आतंकवाद का सफाया किया जा सके।
नक्सलवाद जैसे बड़ी समस्या से सरकार आज तक निजात नहीं पा सकी है। न ही नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई समग्र योजना ही अब तक बनी है। सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह व रि. मेजर जनरल ध्रुव कटोच ने इस विषय पर अपने विचार रखे।
वक्ताओं का कहना था कि सरकार की कुछ अच्छी नीतियों के चलते बंगाल और छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों में कुछ कमी जरूर आर्स है परंतु उपाय पर्यापत रूप से प्रभावी नहीं कहे जा सकते। विशेषज्ञों की साप राय थी कि विचारधारा को गोली से खत्म नहीं किया जा सकता। मनोवैज्ञानिक तौर पर लोगों को सही बात समझानी होगी और भोले-भाले आहत मन को संवेदनशील ढ़ग से पढ़कर उसका भरोसा जीतना होगा। पिछले 60 वर्षों में भारत सरकार वनवासियों के साथ न्याय करने में असफल रही है। सरकार को चाहिए कि वनवासियों को शिक्षित करे। न्याय प्रक्रिया में तेजी लाए। कॉरपोरेट सेक्टर के लालच को कम किया जाए ताकि वनवासियों की जमीन नहीं छीनी जाए और वे नक्सली बहकावे में ना आएं। श्री कटोच का कहना था कि नक्सलवादियों को रोकने के लिए सीआरपीएफ का चयन सही फैसला नहीं है। सीआरपीएफ के जवानों को नक्सल प्रभावित इलाके की भौगोलिक जानकारी नहीं होती, इसलिए उनपर हमले आसानी होते हैं और वे मारे जाते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यदि सही से काम करने में वहां की स्थानीय पुलिस महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है तो हमें उन्हें तरजीह देनी चाहिए। श्री प्रकाश सिंह के अनुसार, नक्सल प्रभावित इलाकों काम कर रहे एनजीओ पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि उन्हें चलाने वाले लोग कौन हैं। देखने में आया है कि एनजीओ चलाने के नाम पर कुछ वामपंथी बुद्धिजीवी भोले-भाले लोगों को बरगलाते हैं। सबसे बड़ी बात है। इस समस्या को सुलझाने के लिए विकास के पैमानों को तय किया जाना। वनवासी लोग सड़क और पुल नहीं चाहते हैं, बल्कि वे शांति से अपनी जमीन पर अधिकारपूर्वक रहना चाहते हैं। सरकार के पास इस समस्या के समाधान के लिए आज तक कोई समेकित योजना नहीं है। जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
विशेषज्ञों की यह साझी चिंता थी कि उत्तर पूर्वी राज्यों में चीन माओवाद को फैलाने के लिए मोटी रकम खर्च कर रहा है। वार्ता के दौरान आशंका यह भी उठी कि भारतीय बाजारों में भारी मात्रा में खपाए जा रहे चीनी सामान के जरिए जो पैसा यहां-वहां घूम रहा है उससे भी माओवादियों को सहयोग मिल रहा है। चीन ने अरुणाचल और असम के कुछ हिस्से में घुसपैठ भी शुरू कर दी है। चीन खुले तौर पर यह कह भी चुका है कि अरुणाचल प्रदेश भारतीय राज्य नहीं वरन एक विवादित हिस्सा है।
माओवादी अभी तक ग्रामीण और जंगली इलाके में सक्रिय थे, लेकिन से अब अपने स्लीपर सेलों के माध्यम से वे शहरों में भी अपना प्रभाव जमा रहे हैं। आतंकवादी संगठन सिमी के लोग भी नक्सलियों के साथ मिल गए हैं। आतंकियों को छिपने के लिए जगह चाहिए। वे नक्सलियों को हथियार मुहैया करा रहे हैं। हमें चाहिए कि हम नक्सलियों पर मनोवैज्ञानिक तौर पर प्रभाव छोड़ें जिससे उन्हें नक्सली बनने से रोका जा सके। बिहार, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में सिमी नक्सलियों के साथ मेल-जोल बढ़ाकर अपना नेटवर्क मजबूत कर रहा है। इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि नक्सलवाद पश्चिमी बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से आंदोलन के तौर पर शुरू हुआ था, लेकिन आज इस आंदोलन की दिशा ही बदल गई । अब इस आंदोलन को वामपंथी हितों के अनुसार व्याख्यायित करने वाले लोग अपने को नक्सलवादी नहीं बल्कि माओवादी कहकर बुलाते हैं। छत्तीसगढ़ में आतंकवादी संगठन सिमी के साथ नक्सलियों के संबंधों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार देबब्रत घोष ने बताया कि छत्तीसगढ़ में नक्सली और सिमी के गुर्गे आपस में मिल गए हैं। वे एक दूसरे के नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं और आपस में एक दूसरे को छिपने के लिए जगह और हथियार मुहैया करा रहे हैं। इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
साइबर अपराध यानी इंटरनेट के जरिए किया जाने वाला व्हाइट कॉलर क्राइम, सुनियोजित तरीके इंटरनेट के माध्यम से किए जाने वाले अपराध साइबर अपराधों की श्रेणी में आते हैं। इसके साथ ही इंटरनेट आज आतंकवादियों गतिविधियों को अंजाम देने, सूचनाओं के आदान प्रदान का एक सशक्त काम हो चुका है। जिस पर बिना कोई ठोस नीति बनाए नियंत्रण लगाना मुश्किल है। विशेषज्ञों का मानना था कि सरकारी एजेंसियां खुद ही जीमेल और याहू मेल जैसी इंटरनेट सुविधाओं का प्रयोग करती हैं, उन्हें अपना सर्वर सेटअप विकसित करना और अनिवार्य रूप से बरतना चाहिए ताकि संवेदनशील सूचनाओं को कम से कम घर में सहेजने का काम शुरू हो सके। संदेशों तक सके। ऑपरेशन प्रिज्म के अंतर्गत भारत सहित दुनिया भर के देशों में अमेरिका की सूचना सेंधमारी से रुष्ट विशेषज्ञों ने इस पूरे घटनाक्रम पर सरकार की लचर प्रतिक्रिया को देश के लिए घातक बताया। इसके अलाव आतंकियों के संदेशों को इंटरसैप्ट करने के लिए तकनीकी तौर पर पुख्ता कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता भी इस सत्र के दौरान चर्चा में रही।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र में उग्रवाद और सीमा समस्या जैसे महत्वपूर्ण विषय पर सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक ईएन राममोहन और सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिरीक्षक अनिल कं�
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