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सपा सरकार द्वारा घोषित 5 लाख रुपये का मुआवजा पाने के लिए मुस्लिम समाज किस सीमा तक धोखेबाजी पर उतारू है। इसके उदाहरण निरन्तर सामने आ रहे हैं। दस-दस साल से गंाव छोड़कर सऊदी अरब या गुजरात में जा बसे दो मुस्लिमों ने दंगों में अपने को दंगा पीडि़त दिखाते हुए मुआवजे के लिए दावे ठोके, जो समय रहते प्रशासन की जंाच में पकडे़ गए।
पहला मामला गांव लिसाढ़ का है। यहां काफी समय पहले रहने वाले महबूब हसन के दावे की जांच के लिए उप जिलाधिकारी,शामली व तहसीलदार 16 दिसम्बर को लिसाढ़ पहुंचे। उनके साथ ग्राम प्रधान अजीत सिंह भी थे। उपजिलाधिकारी ने अपनी जांच शुरू करते हुए हसन से उसका घर पूछा तो हसन ने एक मकान की ओर इशारा किया। उसके बाद उससे गांव के ग्राम प्रधान को बुलाने के लिए कहा गया। इस पर हसन वहां से जाकर कुछ समय बाद अकेले लौटा और बताया कि ग्राम प्रधान बाहर गए हुए हैं ,जबकि ग्राम प्रधान उपजिलाधिकारी के साथ व उसके सामने ही खड़े थे। जांच दल ने फौरन धोखे को समझ लिया। जिसके बाद हसन से गहन पूछताछ में स्वयं ही सच्चाई उगल दी कि वह दस साल से सऊदी अरब में है। मुआवजे के लालच के चलते वह यहां आया। दूसरा मामला गांव बहावड़ी का है। यहां का निवासी अब्दुल रहमान 2003 से गुजरात में बसा हुआ है। जांच व पूछताछ के दौरान वह अपने गांव के ग्राम प्रधान का नाम तक नहीं बता सका और न ही पहचान सका। इसी प्रकार के अन्य 41 मामले भी पकड़ में आए हैं जिनकी मुआवजा राशि रोक दी गई है। ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या का कारण यह है कि धोखेबाजों व्यक्ति के विरुद्ध प्रशासन कानूनी कार्यवाई से बचता है क्योंकि सरकार में बैठे लोगों में उनके चाहने वालों की कमी नहीं है। मुआवजा पाने के लिए मुसलमान नित नए-नए करतब कर रहे हैं। जांच में खुलासा हुआ है कि गांव कुटबा, कुटबी, मुंडमर,मोहम्मदपुर तथा काकड़ा के ऐसे 90 मामले हैं। मुस्लिम बुजुर्ग मुआवजे के पांच-पांच लाख रुपये लेकर गायब हो गए हंै,जबकि उनके बेटे-पोते और मुआवजे की आस में अभी तक राहत शिविरों में डेरा डाले हैं। इनका कहना कि ह्यअब्बाह्ण ने पैसे डकार लिए,हमें कुछ नहीं दिया। इनमें बुजुर्ग मुस्लिमों ने अपने को परिवार का प्रमुख बताकर इस आशय का शपथपत्र देकर पांच-पांच लाख रुपये प्राप्त कर गायब हो गए हैं। मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने इन लापता वृद्धों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने और पैसे की वापसी की बात कही है
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