याद आते हैं बहुत
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ये अंधेरे जब डराते हैं बहुत
ख्वाब नीदों में सताते हैं बहुत
बे-दरो-दीवार के घर हैं यहां,
गांव के घर याद आते हैं बहुत
आज के नेता मदारी हो गए,
खुशनुमां मंजर दिखाते हैं बहुत
देख लो कैसा अनोखा खेल है,
हम स्वयं को ही नचाते हैं बहुत
आंधियों से डर मुझे लगता नहीं,
मेरे घर तूफान आते हैं बहुत।
प्यास इतनी क्यूं ह्यभ्रमरह्ण देकर गए,
आंख में अब अश्क आते हैं बहुत
उस तरफ क्यों उठा बवण्डर है,
इस तरफ साफ बहुत मंजर है।
मंत्रियों का पता नहीं चलता,
कौन बाहर है, कौन अन्दर है।
आज प्यादे वजीर बन बैठे,
अपनी किस्मत के वे सिकन्दर हैं।
लोग अब तक समझ नहीं पाए,
एक हैवान मेरे अन्दर है।
खून बहता रहा पसीने सा,
ये न पूछो कहां पे खंजर है।
उनको डर है कि डूब जाएंगे,
मेरी आंखों में इक समन्दर है।
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