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पिछले कई महीने से शर्मा जी खाली बैठे थे; लेकिन चुनावी सर्वेक्षणों पर हुए विवाद ने उनके मन की बत्ती जला दी। सरकारी कामों की तरह यहां भी हेरफेर की काफी गुंजाइश देखकर उन्होंने यही काम करने का निश्चय कर लिया। कोई नया काम करने के लिए नाम भी दमदार सा होना चाहिए। सो उन्होंने अपने घर के बाहर 'वर्षा प्रचार एवं सर्वेक्षण संस्थान' का बोर्ड लगा लिया।
मुझे पता लगा, तो पूरी जानकारी करने के लिए मैं शाम को उनके घर जा पहुंचा। शर्मा जी ने अपने बैठक कक्ष को ही अपने संस्थान का कार्यालय बनाया था। बोर्ड पर 'वर्षा' नाम देखकर मैं चौंका। उनकी पत्नी, बेटी या बहू में से किसी का नाम वर्षा नहीं है। फिर यह नाम क्यों? मैंने सोचा, किसी समय उनसे ही पूछ लूंगा।
मैंने देखा कि सामने दीवार पर राजनीतिक दलों के उतार-चढ़ाव प्रदर्शित करते हुए कई ग्राफ लगे थे। कुछ अखबारी कतरनें एक बोर्ड पर चिपकी थीं। गंभीर मुद्रा में बैठे शर्मा जी के सामने कई मोटी फाइलें और एक कम्प्यूटर रखा था। मैंने आंख के इशारे से इस तमाशे का कारण पूछा, तो वे बोले, ह्यह्यवर्मा जी, तुम तो जानते ही हो कि ये चुनाव के दिन हैं। कोई देशी और विदेशी चंदे से पेट भर रहा है, तो कोई पोस्टर और बैनर से। 'पेड न्यूज' की भी इन दिनों बहार है। मैंने भी सोचा कि इस बहती गंगा में हाथ-मुंह धो लूं। बस इसीलिए़.़।
तभी एक ग्राहक महोदय आ गये।
ग्राहक-हम अपनी पार्टी के लिए सर्वेक्षण कराना चाहते हैं?
शर्मा जी-जरूर कराइये। हम इसी सेवा के लिए तो यहां बैठे हैं।
ग्राहक-अभी तक के सर्वेक्षणों में हमें चौथा या पांचवां नंबर मिल रहा है। हम पहले या दूसरे स्थान पर कैसे दिखाई दे सकते हैं?
शर्मा जी – आप चिन्ता न करें। सर्वेक्षण की 'झूम पद्घति' से हम दो और दो को चार भी कर सकते हैं और चौदह भी।
ग्राहक-इसका नाम तो मैं पहली बार सुन रहा हूं ?
शर्मा जी – जी हां, जैसे शराबी बार-बार नीचे गिरता है और कुछ देर बाद फिर उठकर चल देता है। ऐसे ही ह्यझूम सर्वेक्षणह्ण में नेता और पार्टी का ग्राफ चार से चौदह के बीच झूमता रहता है।
ग्राहक -तो इसके लिए हमें क्या करना होगा?
शर्मा जी-बस आप हमें खुश करें, तो हम आपको खुश कर देंगे। व्यापार का यही सिद्घांत है। आप चाहें, तो हम सर्वेक्षण का मीडिया में भरपूर प्रचार-प्रसार भी करा देंगे। हमारी पहुंच सब तरफ है।
उसके जाते ही दूसरे ग्राहक आ टपके।
ग्राहक – हम चाहते हैं कि सब ओर राजुल बाबा के नाम का डंका बजने लगे।
शर्मा जी – हो जाएगा। इसके लिए हमें 'पटाखा विधि' से प्रचार करना होगा। जैसे पटाखों की लड़ी में एक-दो पटाखे फुस्स भी हो जाएं, तो पता नहीं लगता। बस ये प्रचार भी ऐसा ही है।
ग्राहक – कुछ ऐसा भी कीजिये कि 'नमो-नमो' का शोर कम हो।
शर्मा जी – इसके लिए हमें हिटलर के प्रचार मंत्री ह्यगोयबल्स का सिद्घांतह्ण अपनाना होगा। इसमें झूठ को इतनी बार, इतना बढ़ा-चढ़ाकर और इतनी जोर से बोला जाता है कि लोग भ्रमित हो जाएं। ऐसे प्रचार के हम विशेषज्ञ हैं। बस पैसा कुछ अधिक खर्च करना होगा।
मैं काफी देर वहां बैठा रहा। इस दौरान कई जाति और प्रजाति के ग्राहक आये। शर्मा जी ने सबको खुश करते हुए भरपूर दक्षिणा ली और जैसा माथा देखा, वैसा तिलक लगा दिया।
चुनाव परिणाम आने से दो दिन पहले वे बोले कि उनके दिल की धुक-धुक ह्यतूफान मेलह्ण की छुक-छुक जैसी तेज होती जा रही है। उन्हें पता है कि किसी न किसी दल के लोग या प्रत्याशी उन्हें आकर जरूर पीटेंगे। इसलिए वे दो महीने के लिए बाहर जा रहे हैं। अब मुझे उनके संस्थान के नाम का रहस्य भी समझ में आ गया। जैसे वर्षा कब और कितनी होगी, इसकी भविष्यवाणी करना बहुत कठिन है। प्राय: मौसम विभाग जो बताता है, उसका उल्टा ही होता है। ऐसे ही शर्मा जी के संस्थान के परिणामों की भी कोई गारंटी नहीं है। सब कुछ भगवान और प्रत्याशी के भाग्य पर निर्भर है।
आपको भी यदि कोई प्रचार या सर्वेक्षण कराना हो, तो यह ह्यवर्षा सिद्घांतह्ण पहले ही समझ लें। और हां, इन दिनों वे बाहर हैं। अत: अब दो महीने बाद ही उनसे सम्पर्क करने का कष्ट करें, धन्यवाद।
विजय कुमार
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