मानवाधिकार दिवस पर आयोजित संवाद में जम्मू-कश्मीर के पीडि़तों की पुकार
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मानवाधिकार दिवस पर आयोजित संवाद में जम्मू-कश्मीर के पीडि़तों की पुकार

by
Dec 14, 2013, 12:00 am IST
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हम भी मानव हैं, मानवीय अधिकार दो

दिंनाक: 14 Dec 2013 13:55:50

्रगत 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर नई दिल्ली में ह्यजम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार हनन:पीडि़तों की व्यथा-कथाह्ण विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की प्रस्तावना रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार जवाहरलाल कौल ने कहा कि इस समय जम्मू-कश्मीर के एक तिहाई लोग शरणार्थी जीवन जी रहे हैं,जिनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है।  इनमें हर तरह के शरणार्थी हैं। कुछ लोग आतंकवाद के कारण शरणार्थी बने,कुछ लोग पाकिस्तान और भारत के बीच हुए युद्घों की वजह बेघर हुए तोकुछ लोग 1947 या उसके बाद पाकिस्तान से आकर कश्मीर में बसे। इन लोगों को अभी तक विधानसभा के चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं मिला है।  बहुत से ऐसे लोग हैं,जो न तो भारत के नागरिक हैं और न ही पाकिस्तान के। ये लोग देश-विहीन लोग हैं। किन्तु इन लोगों के मानवाधिकारों की बात कोई नहीं करता है।
मुख्य वक्ता और राज्य सभा के सदस्य बलबीर पुंज ने कहा कि देश में जो भी समस्याएं हैं उसके लिए दोहरी मानसिकता और विकृत सेकुलरवाद जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि भारत में बंगलादेशियों और म्यांमारी मुसलमानों का राशन कार्ड तुरन्त बन जाता है,उनके नाम मतदाता सूची में भी दर्ज हो जाते हैं,लेकिन कोई भी कश्मीरी हिन्दुओं की बात नहीं करता है।   
पत्रकार विजय क्रांति ने कहा कि मेरे माता-पिता पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापित होकर भारत आए थे। इस समय मेरे पिता काफी वृद्घ हो चुके हैं। वे अपने जीवन में तीन बार विस्थापित हुए। पहली बार 1931 में हुए। एक उपद्रव के बाद मेरे दादा जी को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह रहना पड़ा।  उस समय मेरे पिता की उम्र सिर्फ एक की साल की थी। देश विभाजन के समय 1947 में दूसरी बार उन्हें विस्थापित होना पड़ा। उस समय जम्मू-कश्मीर में आकर रहे। 1948 में एक बार फिर विस्थापित होना पड़ा। शेख अब्दुल्ला ने जबरन हजारों हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल दिया था। इसके बाद मेरा परिवार दिल्ली में बस गया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 सीटें आरक्षित की गई हैं। उन सीटों के लिए वहां के लोगों का मनोनयन किया जाना चाहिए,यह उनका अधिकार है, किन्तु कोई उनके अधिकारों की बात नहीं करता है। क्या यह मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है?
नियंत्रण रेखा के पास छम्ब से आए रछपाल सिंह ने कहा कि उनके जैसे हजारों हिन्दू परिवार 1947 में हुए पाकिस्तानी  हमले के कारण विस्थापित हुए हैं। इतने वषोंर् के बाद भी ये सभी हिन्दू दर-दर भटक रहे हैं। सरकार हमारी कुछ भी नहीं सुनती है। सीमा पर रहने के कारण इन हिन्दुओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है,ऊपर से सरकार उनके साथ भेदभाव करती है। और न ही हमारी आवाज जम्मू से आगे ही बढ़ पाती है। उन्होंने कहा कि धारा 370 को खत्म किया जाना चाहिए। यह धारा जम्मू-कश्मीर रियासत के लोगों के साथ भी भेदभाव को बढ़ावा देती है।
आतंकवाद के कारण शरणार्थी बने मोहम्मद असलम कोली ने कहा कि भारत-भक्ति दिखाने की वजह से उन्हें शरणार्थी बनना पड़ा। अभी पांच बच्चों के साथ जम्मू के शरणार्थी शिविर में रहना पड़ रहा है। सरकार की ओर से हर महीने 1600 रु. मिलते हैं। इस महंगाई में इतने कम पैसे से गुजारा कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा कि चाहे कश्मीर की सरकार हो या भारत की दोनों बिल्कुल अंधी हैं। इन दोनों सरकारों को हम शरणार्थियों की तकलीफें दिखाई नहीं देती हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास से आए सरदार हरदेव सिंह ने कहा कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई होती है, हम सब बेघर हो जाते हैं। युद्घ के समय सरकार कहती है कि उन्हें शांति वाले स्थान पर बसाया जाएगा, किन्तु युद्घ के बाद सरकार हम सबको भूल जाती है।
उन्होंने कहा कि कश्मीर में जो लोग सुरक्षाकर्मियों पर पत्थर फेंकते हैं उन्हें विशेष भर्ती अभियान आयोजित करके राज्य पुलिस में भर्ती किया जाता है, किन्तु जो लोग देशभक्त हैं  उन्हें कदम-कदम पर छला जाता है। कार्यक्रम का आयोजन जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फ्रंट ने किया था।     प्रतिनिधि

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