नेल्सन मंडेला का अवसान
|
नेल्सन मंडेला का अवसानरंगभेद के विरुद्घ शांतिपूर्ण आंदोलन में अपना संपूर्ण जीवन होम कर देने वाले जिजीविषा से सराबोर रहे दक्षिण अफ्रीका के सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति 95 वर्षीय नेल्सन मंडेला का जोहांसबर्ग में 6 दिसम्बर को निधन हो गया। वे जिजीविषा से सराबोर इस मायने में थे कि जीवन में कितनी ही बार उन्होंने विकट चुनौतियों का सामना किया, रंग भेद के पहरेदारों से जूझे, 30 से ज्यादा साल कैद रहे, पर टूटे नहीं। गांधीवादी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के कारण उनके प्रशंसक उन्हें ह्यदक्षिण अफ्रीका का गांधीह्ण भी कहते थे और शायद यही कारण था कि 1990 में भारत ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। 1993 में उन्हें नोबुल शांति सम्मान दिया गया था। 1994 से 1999 के दौरान दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत के साथ संबंधों को और प्रगाढ़ किया था। 1999 में मंडेला ने खुद को सक्रिय राजनीति से लगभग दूर कर लिया था और पूरा वक्त समाजहित के कामों में लगाने लगे थे। 95 साल के मंडेला को अभी करीब 6 महीने पहले बेहद गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया था, तब सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोकतंत्र के समर्थकों ने उनके शतायु होने की कामना की थी। सितम्बर में हालत में कुछ सुधार होने पर उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी गई थी। इसलिए परिवार के तमाम लोगों के बीच उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। उनके निधन की घोषणा भी राष्ट्रपति जैकब जुमा ने ही की और दुखी स्वर में बताया कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की अलख जगाने वाले मंडेला के सम्मान में उनके देश में शोक की लहर दौड़ गई, राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया। भारत सहित विश्व के तमाम देशों के प्रमुख नेताओं ने मंडेला के विदा होने पर शोक व्यक्त किया है। प्रतिनिधि
कंधमाल में पोप के प्रतिनिधिगत 28 और 29 नवम्बर को पोप के भारत में दूत सल्वाटोर पिनाशियो ने ओडिशा में कंधमाल क्षेत्र का दौरा किया। सूत्रों की मानें तो वह एक बार फिर कंधमाल क्षेत्र में ईसाई मतान्तरण को कथित हवा देने के लिए आए थे, लेकिन ईसाई प्रवक्ता कहते हैं कि कन्धमाल के राईिकया वे में कटक-भुवनेश्वर डाओसिस मिशन के 75 साल पूरे होने पर आए थे। उल्लेखनीय है कि सन 2008 में कन्धमाल में ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे मतान्तरण को रोकने के लिए स्वामी लक्ष्मणानन्द ने पूरे क्षेत्र में जन जागरण आन्दोलन किये थे। स्वामी लक्ष्मणानन्द जी के अथक प्रयासों से ईसाई मिशनरियां अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं हो पा रही थीं और इस वजह से कथित चर्च से जुड़े तत्वों ने लक्ष्मणानन्द जी की हत्या कर दी।ध्यान देने की बात है कि सन् 1999 में पोप जान पॉल-द्वितीय भारत यात्रा पर आए थे और तब उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि 21वीं शताब्दी में एशिया में मतान्तरण करके ईसाइयत का तेजी से प्रसार किया जाएगा। तब चीन ने पोप की चाल को समझते ही उनका पुरजोर विरोध किया था जिसके कारण पोप का चीन दौरा संभव नहीं हो सका था।आज जब कंधमाल में शान्ति है, ऐसे में पोप के प्रतिनिधि द्वारा राईिकया में सभा करना फिर से ईसाई मिशनरियांे के मतान्तरण के प्रयासों को हवा देने की ही एक कोशिश मानी जा रही है। क्या कारण है कि पिनाशियो की राईिकया यात्रा के बारे में प्रशासन को कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई? मतान्तरण गतिविधियों को शह देने की पिनाशियो की इस कोशिश का स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया। पंचानन अग्रवाल
कंधमाल में पोप के प्रतिनिधिगत 28 और 29 नवम्बर को पोप के भारत में दूत सल्वाटोर पिनाशियो ने ओडिशा में कंधमाल क्षेत्र का दौरा किया। सूत्रों की मानें तो वह एक बार फिर कंधमाल क्षेत्र में ईसाई मतान्तरण को कथित हवा देने के लिए आए थे, लेकिन ईसाई प्रवक्ता कहते हैं कि कन्धमाल के राईिकया वे में कटक-भुवनेश्वर डाओसिस मिशन के 75 साल पूरे होने पर आए थे। उल्लेखनीय है कि सन 2008 में कन्धमाल में ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे मतान्तरण को रोकने के लिए स्वामी लक्ष्मणानन्द ने पूरे क्षेत्र में जन जागरण आन्दोलन किये थे। स्वामी लक्ष्मणानन्द जी के अथक प्रयासों से ईसाई मिशनरियां अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं हो पा रही थीं और इस वजह से कथित चर्च से जुड़े तत्वों ने लक्ष्मणानन्द जी की हत्या कर दी।ध्यान देने की बात है कि सन् 1999 में पोप जान पॉल-द्वितीय भारत यात्रा पर आए थे और तब उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि 21वीं शताब्दी में एशिया में मतान्तरण करके ईसाइयत का तेजी से प्रसार किया जाएगा। तब चीन ने पोप की चाल को समझते ही उनका पुरजोर विरोध किया था जिसके कारण पोप का चीन दौरा संभव नहीं हो सका था।आज जब कंधमाल में शान्ति है, ऐसे में पोप के प्रतिनिधि द्वारा राईिकया में सभा करना फिर से ईसाई मिशनरियांे के मतान्तरण के प्रयासों को हवा देने की ही एक कोशिश मानी जा रही है। क्या कारण है कि पिनाशियो की राईिकया यात्रा के बारे में प्रशासन को कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई? मतान्तरण गतिविधियों को शह देने की पिनाशियो की इस कोशिश का स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया। पंचानन अग्रवाल
रंगभेद के विरुद्घ शांतिपूर्ण आंदोलन में अपना संपूर्ण जीवन होम कर देने वाले जिजीविषा से सराबोर रहे दक्षिण अफ्रीका के सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति 95 वर्षीय नेल्सन मंडेला का जोहांसबर्ग में 6 दिसम्बर को निधन हो गया। वे जिजीविषा से सराबोर इस मायने में थे कि जीवन में कितनी ही बार उन्होंने विकट चुनौतियों का सामना किया, रंग भेद के पहरेदारों से जूझे, 30 से ज्यादा साल कैद रहे, पर टूटे नहीं। गांधीवादी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के कारण उनके प्रशंसक उन्हें ह्यदक्षिण अफ्रीका का गांधीह्ण भी कहते थे और शायद यही कारण था कि 1990 में भारत ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। 1993 में उन्हें नोबुल शांति सम्मान दिया गया था। 1994 से 1999 के दौरान दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत के साथ संबंधों को और प्रगाढ़ किया था। 1999 में मंडेला ने खुद को सक्रिय राजनीति से लगभग दूर कर लिया था और पूरा वक्त समाजहित के कामों में लगाने लगे थे।
95 साल के मंडेला को अभी करीब 6 महीने पहले बेहद गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया था, तब सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोकतंत्र के समर्थकों ने उनके शतायु होने की कामना की थी। सितम्बर में हालत में कुछ सुधार होने पर उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी गई थी। इसलिए परिवार के तमाम लोगों के बीच उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। उनके निधन की घोषणा भी राष्ट्रपति जैकब जुमा ने ही की और दुखी स्वर में बताया कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की अलख जगाने वाले मंडेला के सम्मान में उनके देश में शोक की लहर दौड़ गई, राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया। भारत सहित विश्व के तमाम देशों के प्रमुख नेताओं ने मंडेला के विदा होने पर शोक व्यक्त किया है। प्रतिनिधि
गत 28 और 29 नवम्बर को पोप के भारत में दूत सल्वाटोर पिनाशियो ने ओडिशा में कंधमाल क्षेत्र का दौरा किया। सूत्रों की मानें तो वह एक बार फिर कंधमाल क्षेत्र में ईसाई मतान्तरण को कथित हवा देने के लिए आए थे, लेकिन ईसाई प्रवक्ता कहते हैं कि कन्धमाल के राईिकया वे में कटक-भुवनेश्वर डाओसिस मिशन के 75 साल पूरे होने पर आए थे। उल्लेखनीय है कि सन 2008 में कन्धमाल में ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे मतान्तरण को रोकने के लिए स्वामी लक्ष्मणानन्द ने पूरे क्षेत्र में जन जागरण आन्दोलन किये थे। स्वामी लक्ष्मणानन्द जी के अथक प्रयासों से ईसाई मिशनरियां अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं हो पा रही थीं और इस वजह से कथित चर्च से जुड़े तत्वों ने लक्ष्मणानन्द जी की हत्या कर दी।
ध्यान देने की बात है कि सन् 1999 में पोप जान पॉल-द्वितीय भारत यात्रा पर आए थे और तब उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि 21वीं शताब्दी में एशिया में मतान्तरण करके ईसाइयत का तेजी से प्रसार किया जाएगा। तब चीन ने पोप की चाल को समझते ही उनका पुरजोर विरोध किया था जिसके कारण पोप का चीन दौरा संभव नहीं हो सका था।
आज जब कंधमाल में शान्ति है, ऐसे में पोप के प्रतिनिधि द्वारा राईिकया में सभा करना फिर से ईसाई मिशनरियांे के मतान्तरण के प्रयासों को हवा देने की ही एक कोशिश मानी जा रही है। क्या कारण है कि पिनाशियो की राईिकया यात्रा के बारे में प्रशासन को कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई? मतान्तरण गतिविधियों को शह देने की पिनाशियो की इस कोशिश का स्थानीय लोगों ने भारी विरोध किया। पंचानन अग्रवाल
टिप्पणियाँ