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पुलिस को मिलता है राज्य सरकारों का खुला संरक्षण
गत दिनों राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने कहा कि राज्यों में होने वाली फर्जी मुठभेड़ों में से ज्यादातर पुलिस की होती हैं, सेना की नहीं होती। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरफ से आए इस बयान ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उमर सरकार काफी समय से घाटी में सेना को हटाने के लिए प्रयासरत हैं। उनका आरोप है कि सेना फर्जी मुठभेड़ के नाम पर राज्य के युवाओं को अपना निशाना बनाती है, लेकिन मानवाधिकार आयोग की जांच में स्पष्ट है कि ऐसे कार्य राज्य की पुलिस के द्वारा ही किए जाते हैं। आयोग के जांच ने उमर सरकार को कटघरे में ला दिया है।
पिछले दिनों सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का जायजा लेने और फर्जी मुठभेड़ों की शिकायतों को देखने के लिए आयोग ने हाल ही में कई राज्यों सहित मणिपुर का भी दौरा किया। आयोग ने वहां मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन पाया है। 2005 से 2010 के बीच हुई 44 फर्जी मुठभेड़ों की शिकायतों की जांच की, जिसमें पाया कि राज्य सरकार ने केवल तीन मामलों में वित्तीय सहायता दी एवं जांच में पाया गया कि फर्जी मुठभेड़ के मामलों में असम और मणिपुर में हालात चिंताजनक हंै।
उल्लेखनीय है कि फर्जी मुठभेड़ के नाम पर अलगाववादी नेता और देश विरोधी लोग सेना के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहते हैं साथ ही विरोध कर घाटी से सेना को हटाने की मंाग करते रहते हैं। यह मांग वह उस समय करते हैं जब पड़ोसी देश पाकिस्तान के द्वारा सबसे ज्यादा बार नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण किया जाता है। सेना के जवानों की हत्याएं होती हैं, लेकिन उस समय उमर सरकार कुछ भी नहीं बोलती है। और तब देश की रक्षा में प्राणों का बलिदान करने वालों को अनदेखा कर देते हैं। प्रतिनिधि
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