बदलाव की बयार
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राजस्थान की दोनों मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस जोर- शोर से चुनावी मैदान में कूद पड़ी हैं। दोनों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। अब दोनों दलों के बागियों की आवाज भी दबने लगी है। भाजपा की कमान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे संभाल रही हैं। वसुंधरा के धुआंधार दौरों और भाषणों से हवा काफी बदल गई है। चुनावी सर्वेक्षणों ने भी इसकी पुष्टि की है। पिछले दिनों विभिन्न मीडिया संस्थानों द्वारा किए गए चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में यह बात पुख्ता हो रही है कि राजस्थान में सुराज के लिए सत्ता परिवर्तन की लहर चल रही है। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि राजस्थान से इन विधानसभा चुनावों मे कांग्रेस सरकार की विदाई तय है।
वसुंधरा का प्रभाव
गौरतलब है कि प्रदेश में वर्ष 2003 से 2008 तक श्रीमती वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री रही हैं। भाजपा के शासन काल में राजस्थान बीमारू प्रदेश की श्रेणी से निकल कर विकास के पथ की तरफ अग्रसर हुआ था। तभी वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गईं थीं।
वर्ष 2003 में वसुंधरा ने परिवर्तन यात्रा के जरिए हवा का रूख पलटा था, तो इस बार ह्यसुराज संकल्प यात्रा ह्ण ने लोगों को आकर्षित किया है।
वर्ष 2003 की परिवर्तन यात्रा के बाद भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में पहली बार 120 सीटें जीतकर इतिहास रचा था।
यह श्रीमती वसुंधरा राजे का ही करिश्मा था, जिसने गांव-गांव,ढाणी-ढाणी में बैठे पार्टी के कार्यकर्ताओं को सक्रिय करके कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया था। इस बार फिर से वही स्थितियां बनती नजर आ रही हैं। सुराज संकल्प यात्रा के दौरान पूरे प्रदेश में कांग्रेस विरोधी माहौल नजर आया। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल चारभुजा जी से प्रारम्भ हुई सुराज संकल्प यात्रा का जयपुर के अमरूदों के बाग में श्री नरेन्द्र मोदी की ऐतिहासिक रैली के साथ समापन हुआ।
सुराज संकल्प यात्रा की शुरुआत में जहां चारभुजा जी में कार्यकर्ताओं की उपस्थिति के आगे स्थान छोटा पड़ गया तो लोग पहाड़ों पर,पेड़ों पर चढ़कर भाषण को सुन रहे थे।
वहीं यात्रा के समापन अवसर पर गुलाबी नगरी जयपुर भाजपा के रंग मे रंगा नजर आया। वर्षों बाद किसी राजनेता को सुनने के लिए जयपुर में इतना अपार जन समूह उमड़ा। सुराज संकल्प यात्रा के दौरान वसुन्धरा राजे ने चार माह में प्रदेश की प्रत्येक तहसील तक पहुंच कर 14 हजार किलोमीटर से अधिक का सफर तय किया। इस दौरान उन्होंने 175 बड़ी जन सभाओं को संबोधित किया। यात्रा का सैकड़ों स्थानों पर भव्य स्वागत हुआ। भाजपा को प्रदेश के सभी जाति वर्ग और क्षेत्रों से भरपूर समर्थन मिला। सुराज संकल्प यात्रा की सफलता देखने के बाद चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान में इस बार फिर से भाजपा की लहर है। निश्चित तौर पर इस बार फिर से भाजपा पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाएगी।
कांग्रेसी दावों की खुली पोल
टिकट वितरण से पहले कांग्रेस की तरफ से किए गए तमाम दावों की जनता के सामने कलई खुल गई। सितंबर में टिकट वितरण की बात कहने वाले कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्षय राहुल गांधी भी राजस्थान की राजनीति के आगे बेबस नजर आए। टिकट वितरण के लिए उन्होंने जो फॉर्मूला बनाया था, वह धराशायी हो गया।
बीकानेर में गत 15 मई को राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों को टिकट देगी। ऊपरी सिफारिश और चुनाव के समय नजर आने वाले नेताओं को महत्व नहीं मिलेगा, टिकट के वितरण में परिवारवाद नहीं चलेगा। कांग्रेस की तरफ से टिकट तय करने की पूरी प्रक्रिया बदली जाएगी।
बहरहाल कांग्रेस टिकट वितरण की प्रक्रिया बदल नहीं पायी,यदि कुछ बदला है तो वो हैं प्रदेश कांग्रेस की तरफ से जनता को दिए गए आश्वासन।
नामांकन की अंतिम तिथि तक हो रही टिकटों की घोषणा, टिकट वितरण के बाद ऊपजी बगावत तथा टिकटों के बटंवारे में हुई खींचतान ने कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौतियां खड़ी कर दी हंै।
युवाओं को किया दरकिनार
टिकट वितरण से पहले कांग्रेस की ओर से जितने भी दावे किए गए थे, सब धरे रह गए। कांग्रेस ने कहा था कि 65 वर्ष से अधिक आयु वाले कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं दिया जाएगा। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस ने ऐसे अनेक ऐसे नेताओं को चुनावी अखाड़े में उतारा है, जिनकी आयु 80 वर्ष से भी अधिक है। 70 वर्ष से अधिक आयु के टिकट पाने वाले कांग्रेसी नेताओं में अमरी देवी, विधायक मलखान सिंह बिश्नोई की मां हरजी राम, प्रद्युम्न सिंह, अमीन खान, शांति धारीवाल और रामनारायण मीणा प्रमुख हैं। कांग्रेस ने दागियों को टिकट नहीं देने की बात कही थी, लेकिन यदि कांग्रेसी सूची पर नजर डालें तो पता चलता है कि भरोसी लाल जाटव, रामलाल जाट,उदय लाल आंजना और प्रकाश चौधरी कांग्रेस की शान बढ़ा रहे हैं। इतना ही नहीं यौन शोषण के आरोप में जेल में बंद पूर्व मंत्री बाबूलाल नागर के भाई, महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला मदेरणा और मलखान सिंह विश्नोई की 83 वर्षीय मां अमरी देवी को कांग्रेस ने चुनावी समर में उतारा है। चुनावी मौसम में नजर आने वाले नेताओं को टिकट नहीं देने की घोषणा करने वाली कांग्रेस ने सरकार को समर्थन देने वाले अधिकांश निर्दलीय विधायकों, बसपा से कांग्रेस मे आए पांच विधायकों और गोविंद मेघवाल व गोपाल गहलोत को भी उम्मीदवार बनाया है। दो बार चुनाव हार चुके लोगों को टिकट नहीं देने की बात पर भी कांग्रेस नहीं टिक पाई। प्रदेशाध्यक्ष चंद्रभान और मीनाक्षी चंद्रावत को टिकट देकर कांग्रेस ने अपनी ही बात पलट दी। कांग्रेस ने कहा था कि प्रदेश पदाधिकारियों को चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा। वे संगठन के लिए काम करेंगे, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रभान,उपाध्यक्ष रामचन्द्र सराधना, उपमहामंत्री पंकज,सचिव अर्चना वर्मा, विक्रम सिंह शेखावत,मीनाक्षी चंद्रावत और सोहन नायक को प्रदेश पदाधिकारी होने के बाद भी टिकट दिया गया।
कांग्रेस ने सांसदों को टिकट नहीं देने की घोषणा का पालन करते हुए सीकर के सांसद महादेव सिंह खण्डे़ला के पुत्र,जयपुर ग्रामीण के सांसद लालचन्द कटारिया के भाई की पत्नी और रघुवीर मीणा की पत्नी को टिकट दिया है। यह कांग्रेसी नीति के विरुद्ध है। फिर भी कांग्रेस हाई कमान चुप है।
कुशासन से निराश जनता को सुशासन की आस
राजस्थान की जनता पिछले पांच वर्षों के दौरान हुए भ्रष्टाचार के मामलों से तो परेशान थी ही, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने ह्यकोढ़ में खाजह्ण का काम किया है। दैनिक उपयोग की वस्तुओं के मूल्यों में हुई बेतहाशा बढ़ोतरी से त्रस्त जनता कांग्रेस के शासन को कुशासन बता रही है। उल्लेखनीय है कि सत्ता में आने के साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया था, लेकिन पांच वर्ष पूरा होने के बाद भी उनका आश्वासन सिर्फ आश्वासन ही रहा।
प्रदेश में युवाओं में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, पिछले वर्ष सचिवालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर भर्ती के लिए निकाली गई 150 भर्तियों के लिए चार लाख युवाओं ने आवेदन किया था। एमबीए, इंजीनियर और बीएड की डिग्री लेकर बेकार बैठे युवाओं ने भी नौकरी के लिए आवेदन किया था। प्रदेश के युवाओं का कहना है कि विभिन्न पदों की भर्तियों में तकनीकी खामी छोड़ते हुए कांग्रेसी सरकार ने मामलों को न्यायालय में धकेल कर युवाओं के सपनों पर कुठाराघात कर दिया। कांग्रेसी कुशासन से नाराज युवाओं को भाजपा के रूप में अपना सुनहरा भविष्य नजर आ रहा है। पिछली बार जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी तब शिक्षा विभाग में एक लाख से अधिक युवाओं को नौकरियां मिलीं।
प्रदेश में केसरिया लहर
देश भर में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी को लेकर जो उत्साह है, उसका फायदा भी भाजपा को चुनावों में मिलेगा।
प्रदेश में एक तरफ से वसुंधरा लहर चल रही है,वहीं मोदी को चाहने वाले युवाओं में भी बेहद जोश है। कांग्रेस की आर्थिक नीतियों, बेरोजगारी और बढती महंगाई के चलते प्रदेश के युवा कांगे्रस से खासे नाराज हैं।
प्रदेश में अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों और जाटों को मूल रूप से कांग्रेस का समर्थक माना जाता है।
नाथूराम मिर्धा , दौलतराम सारण, कुम्माराम आर्य, परसराम मदेरणा,शीशराम ओला, नटवर सिंह, कर्नल सोनाराम और डॉ हरि सिंह की गिनती प्रदेश के वरिष्ठ जाट नेताओं में होती है। इन नेताओं के राजनीतिक कौशल से राजस्थान ही नहीं बल्कि सभी परिचित हैं। राजनीति में अशोक गहलोत जैसे-जैसे मजबूत होते गए , वैसे ही एक-एक कर दिग्गज जाट नेताओं का प्रभाव कम होता गया। जाट समाज अपने नेताओं के घटते प्रभाव के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलौत को जिम्मेदार मानता है।
जाट समाज अपने अस्तित्व के लिए अशोक गहलोत को खतरा मानकर इस चुनाव में अन्दरखाने भाजपा का साथ देने का मन बना चुका है। जाट समाज इस बार कांग्रेस पार्टी को पटखनी देने का मन बना चुका है।
जाटों के साथ – साथ अल्पसंख्यकों को भी कांग्रेस अपना मजबूत वोट बैंक मानती है। ऐसा था भी, लेकिन पिछले पांच वर्षो में कांग्रेस के शासन के दौरान हुए गोपालगढ़ कांड, सूरवाल कांड तथा भीलवाड़ा जिले की कलंदरी मजिस्द प्रकरण ने कांग्रेस पर से अल्पसंख्यकों का विश्वास उठ चुका है।
गोपालगढ़ कांड से केवल अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि हिंदुओं में भी कांग्रेस के प्रति रोष व्याप्त है। अल्पसंख्यक समाज के लोग कई बड़े मंचों पर सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को सबक सिखाने की बात कह चुके हैं। इन परिस्थितियों मे अल्पसंख्यकों के मतों का विभाजन तय माना जा रहा है। स्पष्ट है कि सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सकता है। ल्ल
जयपुर से विवेकाननंद
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