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सीमा के स्कूल में एक हफ्ते की छुट्टी है। उसके माता-पिता ने अचानक ही कानपुर जाने का कार्यक्रम बनाया तो सीमा का मन खुशी से झूम उठा। कानपुर में सीमा के नाना-नानी रहते हैं। सीमा कानपुर जाने की तैयारी करती हुई सोचने लगी-इस बार वह नानाजी से कहेगी, ह्यनानानी, नानाजी! मैं भी आपकी तरह अपने देश से बहुत प्यार करती हूं, सबको अपना समझती हूं और सबका सम्मान करती हूं।ह्ण
अचानक ही सीमा का मन यह सोचकर दु:खी हो गया, क्या वह अपनी प्रशंसा नानाजी से स्वयं करेगी? नानाजी तो कहा करते हैं, ह्यअपने मुंह मियां मिट्ठू बनना अच्छी बात नहीं होती।ह्ण नहीं, वह ऐसा कुछ भी नानाजी से नहीं कहेगी क्योंकि नानाजी कहते हैं, जो महान होता है उसकी महानता छिपी नहीं रहती, उसे अपने आप लोग जान जाते हैं।
सीमा ट्रेन में खिड़की के पास बैठी अपने नानाजी के महान विचारों में खोयी सी थी कि ट्रेन एक बड़े स्टेशन पर रुकी। देखते ही देखते डिब्बे में भीड़ इकट्ठी हो गई-बहुत से लोग सीट के अभाव में खड़े होकर यात्रा करने को मजबूर थे।
सीमा की नजर भीड़ में खड़े एक बुड्ढे आदमी पर टिकी, उसे खड़े होकर यात्रा करने में बहुत ही कठिनाई महसूस हो रही थी। कुछ देर बाद उस बुड्ढे व्यक्ति ने एक नौजवान से, जो अपने बगल में सीट पर हैंडबैग रखकर अखबार पढ़ रहा था, आग्रह किया, थोड़ी जगह दे दो। इस पर नौजवान ने बुड्ढे को झिड़कते हुए कहा, ह्ययहां कोई सीट खाली नहीं है, चुपचाप खड़े रहो या अगले स्टेशन पर उतर कर दूसरे डिब्बे में जगह तलाशो। न जाने कहां से चले आते हैं ऐसे गैरे, नत्थू खैरे।ह्ण
सीमा को बहुत बुरा लगा। वह अपनी सीट छोड़कर खड़ी हो गई और उस बुड्ढे से बोली, ह्यदादाजी आपको खड़े होकर यात्रा करने में परेशानी होगी, आइए, यहां बैठ जाइए मेरी जगह, मैं तो खड़ी होकर भी अच्छी तरह से कुछ देर समय काट लूंगी।ह्ण
सीमा के इतना कहते ही उस बुड्ढे व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। बुड्ढे दादाजी के बैठ जाने पर बगल में थोड़ी सी जगह निकाल कर सीमा भी बैठ गई।
शाम होते ही गाड़ी कानुपर पहुंच गई। नानाजी सीमा और उसके माता-पिता को देखकर बहुत खुश हुए।
सीमा दूसरे कमरे में जाकर अपनी नानी से बातें करने ही लगी थी कि उसे लगा नानाजी के पास कोई आया है। नाना जी ने उस आगन्तुक से पूछा,ठीक से चले तो आए न,रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई। उस आगन्तुक ने कहा,अजी! पूछो मत, ठीक से कोई क्या आयेगा-जायेगा आज के जमाने में? जहां देखो तहां भीड़ ही भीड़, ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि क्या बताऊं? किसी तरह डिब्बे में चढ़ा तो अंदर बैठने की जगह नहीं, आज के आदमी भी इतने स्वार्थी हो चुके हैं कि जगह रहते भी दूसरों को अपने बगल की सीट पर बैठाना नहीं चाहते। वो तो एक छोटी सी बच्ची की महानता कहिए, उसने स्वयं खड़े होकर अपनी सीट पर मुझे बैठाया, जब जाकर ठीक से पहुंच पाया हूं। भला हो उस बच्ची का।
सीमा ने जब इतना सुना तो उसे समझते देर न लगी कि आगंतुक और कोई नहीं, वही दादाजी हैं जिन्हें उसने ट्रेन में भीड़ के समय अपनी सीट पर बैठाया था। उसे आश्चर्य हुआ यह सोचकर कि उसने तो ऐसा करके बहुत छोटा सा काम किया है, बड़ों के प्रति अपना फर्ज निभाया है। फिर वो इस कार्य को महान कैसे कह रहे हैं? वह फौरन नानाजी के पास पहुंची। उनके ड्राइंग रूम में पहुंचते ही बुड्ढे व्यक्ति ने खुशी से चिल्ला कर कहा, ह्ययही तो वह बच्ची है जिसके बारे में मैं कह रहा था।ह्णनानाजी तो जैसे खुशी से झूम उठे, उन्होंने सीमा को प्यार से चूम लिया और कहा, बेटी तुमने आज बहुत बड़ा काम किया है। यदि ऐसे ही विचार सभी के मन में आ जाएं तो अपना देश खुशहाल हो जाएगा,आदमी का आदमी से प्यार का रिश्ता जुड़ जाएगा। -पुष्पा रानी पाण्डेय
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