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एक ऐसे देश में जहां आबादी के एकबड़े हिस्से को भरपेट भोजन नहीं मिलता, हर तीसरा व्यक्ति भूखा सोता हो, बच्चे भूख से रोते हो उसी देश में हर साल दो करोड़ टन गेहंू अपर्याप्त भंडारण औरआधारभूत ढांचे की कमी के कारण बर्बाद होता जाता है। लेकिन सरकार इस बर्बादी पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती वह सिर्फ बयानवाजी करती नजर आती है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय कई बार अनाज की बेतहाशा बर्बादी पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दे चुका है। लेकिन उसके बाद भी केन्द्र सरकार के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इस साल भी टनों कुन्तल गेहंू भंडारण के अभाव में सड़ गया। हाल ही मेकेनिकल इंजीनियर्स संस्थान के द्वारा जारी एक रपट की मानंे तो भारत में मुख्यत: भंडारण और परिवहन सुविधा की कमी के कारण हर साल 2 करोड़ टन गेहूं बर्बाद होता है। रपट के अनुसार विश्व में करीब 1़.2 से 2 अरब टन खाद्यान्न की बर्बादी होती है। इसमें विकासशील देशों में यह बर्बादी खेत से लेकर बाजार के बीच तक होती है। रपट में जिक्र किया गया है कि भारत के फल और सब्जियों के उत्पादन का करीब 40 फीसद भाग शीतभंडार गृहों की कमी के कारण खेत और उपभोक्ताओं के बीच बेकार चला जाता है। मेकेनिकल इंजीनियरिंग संस्थान पर्यावरण के प्रमुख टिम फाक्स ने कहा कि बर्बाद हुए अनाज को देश और दुनिया की बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और मौजूदा समय में भुखमरी के शिकार लाखों लोगों का पेट भरने के लिए इस अनाज का उपयोग किया जा सकता है। -प्रतिनिधि
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