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बड़े को सम्मान, छोटे को प्यार

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Oct 26, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 26 Oct 2013 16:47:03

दिल्ली/ मौजपुर
जम्मू से पठानकोट और वहां से दिल्ली के मौजपुर के पास स्थित अर्जुन मोहल्ले में आकर बसने वाले श्री शिवदत्त गुप्ता का परिवार आज आसपास के इलाके में एक अलग पहचान और सम्मान रखता है। यह परिवार उनके पड़ोस में रहने वाले एकल परिवारों के लिए उदाहरण बन गया है। दिल्ली शहर में जहां संयुक्त परिवार गिने-चुने रह गए हैं, वहां श्री गुप्ता का परिवार एक ही छत के नीचे रहता है। पूरे परिवार का खाना एक ही जगह बनता है। कुल 18 सदस्यों वाले इस परिवार में श्री गुप्ता की पत्नी नीलम, उनके चार बेटे, बहुएं और पोते-पोतियां हैं। परिवार की सभी जरूरतें और खर्चे मिलजुलकर पूरे किए जाते हैं। पूरा परिवार इकट्ठे होकर सारे त्योहार मनाता है। आस-पड़ोस के लोग एक दूसरे को उनके परिवार की एकता की मिसाल देते हैं।

68 वर्षीय शिवदत्त गुप्ता घर के मुखिया हैं जो वह 50 वर्ष से ज्यादा समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं। परिवार में इकट्ठा रहने का पाठ उन्होंने संघ से ही सीखा है।  वर्तमान में वह विश्व हिंदू परिषद का काम देख रहे हैं। उन पर प्रांत सत्संग प्रमुख का दायित्व है। परिवार का बिल्डिंग मैटेरियल व हार्डवेयर का काम है, जिसको उनके चारों बेटे मिलकर संभालते हैं, जबकि वह अपना पूरा समय सामाजिक कार्यों और विश्व हिंदू परिषद को देते हैं। पूरा परिवार उनसे बंधा हुआ है। उन्हीं के दिशा-निर्देश पर परिवार सारे काम करता है। श्री गुप्ता का कहना है कि वह ज्यादातर समय सामाजिक कार्यों के चलते घर से बाहर ही बिताते हैं, लेकिन उन्होंने अपने चारों बेटों को ऐसी शिक्षा दी है कि उनकी अनुपस्थिति में भी परिवार में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आती है। यदि कोई मामूली परेशानी होती भी है तो पूरा परिवार सबकी राय से उसका समाधान निकाल लेता है।

श्री गुप्ता के चार बेटों में से दो, सुशील और रमन भवन निर्माण सामग्री का व्यवसाय करते हैं, जबकि दो बेटे राजेंद्र और देशबंधु हार्डवेयर की दुकान संभालते हैं। पूरे व्यवसाय से जो भी आय प्राप्त होती है उसी से परिवार का खर्चा चलाया जाता है। चारों बेटे अपने व्यवसाय से हर महीने होने वाली सारी आय अपनी मां श्रीमती नीलम के हाथ में रख देते हैं। इसके बाद जिसको जितना भी खर्च चाहिए होता है वह अपनी मां से मांग लेता है। रसोई के सारे खर्चे का हिसाब-किताब श्रीमती नीलम ही रखती हैं। रसोई में कार्य का बंटवारा भी वही करती हैं। उन्होंने दो बहुओं को सुबह तो दो बहुओं को शाम के समय रसोई की जिम्मेदारी दी हुई है। जबकि दोपहर के समय सभी महिलाएं मिलकर रसोई को संभालती हैं।

घर के पास एक अलग प्लॉट में परिवार ने चार गाय पाली हुई हैं। उनके पूरे परिवार की सुबह गो माता की सेवा से शुरू होती है। गो धन की देखरेख का जिम्मा उनकी पत्नी श्रीमती नीलम ही करती हैं जिसमें उनकी बहुएं उनकी मदद करती हैं। उनका कहना है कि आज के दौर में  गाय लोग पाल तो लेते हैं, लेकिन उसकी सेवा नहीं करते हैं। हिंदू धर्म में गाय को माता कहा गया है, उनके परिवार को गो माता की सेवा करके संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा घर का दूध दही भी होता है। इसलिए उनका परिवार शुरू से गाय रखता है।

श्री गुप्ता का पूरा परिवार मिलकर त्योहार मनाता है। दीपावली के लिए कई दिन पहले से ही उनके घर में तैयारियां शुरू हो जाती हैं। सभी लोग एक सप्ताह पहले से ही घर को सजाना शुरू कर देते हैं। दीपावली के दिन परिवार के सभी लोग इकट्ठे बैठकर लक्ष्मी-गणेश का पूजन करते हैं और एक दूसरे की खुशियों के लिए कामना भी करते हैं। घर में त्योहार के मौके पर उनके परिचित व रिश्तेदार भी आ जाते हैं, जिससे सदस्यों की संख्या और भी बढ़ जाती है, घर का माहौल और भी सुंदर हो जाता है।

श्री गुप्ता का कहना है कि एकता में ही शक्ति है। संघ से भी उन्होंने यही सीखा और अपने बेटों को भी उन्होंने सही सिखाया। उनके चारों बेटे भी संघ के स्वयंसेवक हैं। वह बताते हैं कि उनके परिवार की सबसे बड़ी उपब्लिध यह है कि संयुक्त रूप से रहने के बाद भी उनके परिवार में कभी किसी बात को लेकर विवाद नहीं हुआ। आज के दौर में जहां छोटी छोटी बातों पर परिवारों में कलह होती है। वहीं उनके परिवार की एकता आज भी बनी हुई है। इसके लिए वह भगवान को धन्यवाद देते हैं। उनका कहना है कि सारे बेटे उनकी बात मानते हैं। बड़े भाई की बात छोटे भाई मानते हैं। यही उनके परिवार की शिक्षा है जो उन्होंने अपने परिवार को दी है।   प्रतिनिधि

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