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उल्लेखनीय है कि अमरीका के केन्द्रीय न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के अपराध के लिए सोनिया गांधी को समन जारी किया है। न्यायालय ने प्रथम दृष्ट्या इस आरोप को सही करार दिया है जिसमें सोनिया गांधी पर कांग्रेसी अपराधियों को बचाने का आरोप लगाया गया है। अमरीकी न्यायालय ही क्यों, भारत का हर प्रबुद्घ नागरिक जानता है कि पहले राजीव गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी ने सिख विरोधी दंगों के कांग्रेसी अपराधियों को सिर्फ बचाने की ही नहीं बल्कि उन्हें राजनीतिक तौर पर बढ़ावा देने का भी काम किया है। चाहे सज्जन कुमार हों या फिर वर्तमान केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ या जगदीश टाइटलर। इनके साथ ही सैकड़ों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर सिखों के कत्लेआम में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भूमिका होने के आरोप हैं।
प्रारंभ से ही कांग्रेस सिख विरोधी दंगों पर पर्दा डालने और अपराधी कांग्रेसियों को बचाने की बिसात बिछाती रही है। कभी पुलिस, कभी सीबीआई तो कभी न्यायालय तक को यह कांग्रेसी बिसात प्रभावित करती रही है। सत्ता के इशारे पर अभियोजन पक्ष ने जान-बूझकर कमजोर और आधारहीन तथ्य गढ़े, वास्तविक तथ्य छिपाये गये, गवाहों के बयानों को वैज्ञानिक ढंग से सूचीबद्घ नहीं किया गया। ऐसा इसलिए हुआ कि सिख विरोधी दंगों की आंच कांग्रेस पर न आये और दोषी कांग्रेसी सजा पाने से भी साफतौर बच जाएं। यही कारण है कि गवाहों के पुख्ता बयान और आहत परिजनों के बयानों के बाद भी जगदीश टाइटलर, ललित माकन, कमलनाथ, एच.के.एल. भगत जैसे कांग्रेसी बरी होते गये। अगर तत्कालीन और वर्तमान केन्द्रीय कांग्रेसी सत्ता ने न्याय धर्म का पालन किया होता तो राजीव गांधी तक सिख विरोधी दंगों की चपेट में आ सकते थे। सरकारी रिकार्ड के अनुसार सिख विरोधी दंगों में तीन हजार से अधिक लोग मारे गये थे, पर गैर सरकारी आंकड़ा लगभग दस हजार का है। दुर्भाग्य यह है कि सिख विरोधी दंगे को आज लगभग 30 साल हो गये पर अभी तक दंगों में लूटी गयी संपत्तियों का ठीक-ठीक माप-तोल तक नहीं हुआ, न ही हताहतों के सभी परिजनों को वास्तविक मुआवजा मिला है।
अमरीकी अदालत ने प्रथम दृष्टया सोनिया गांधी को अपराधी मानकर और समन भेजकर क्या अमरीकी कूटनीति को भी भारत के संबंध में प्रभावित किया है? प्रश्न यह है कि जब सोनिया गांधी सिख विरोधी दंगों के अपराधियों को बचाने के अपराध में संलिप्त हैं तो फिर सोनिया गांधी को अमरीकी वीजा क्यों? अमरीकी कानून कहता है कि किसी भी प्रकार के अपराध में संलिप्त विदेशी नागरिक को अमरीकी वीजा नहीं मिलेगा। अमरीका का सिख समुदाय आज नहीं, बल्कि वषोंर् से यह मांग करता आया है कि सोनिया गांधी सहित उन सभी कांग्रेसियों को अमरीकी वीजा न दिया जाये जो सिख विरोधी दंगों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल थे और अपराधी थे। सिर्फ सोनिया गांधी ही नहीं बल्कि केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ, जगदीश टाइटलर सहित अन्य कई दागी कांग्रेसियों के पास भी अमरीकी वीजा है।
आज 30 साल बाद भी राजीव गांधी का वह बयान भारत का प्रबुद्घ वर्ग कैसे भूल सकता है कि ह्यजब बड़ा पेड़ गिरता है तब हलचल होती है और हलचल को कैसे रोका जायेगाह्ण? राजीव गांधी के इस बयान से साफ होता है कि उन्होंने इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेसियों द्वारा किये गये कत्लेआम को जायज ठहराया था। देश की राजधानी दिल्ली सहित पूरे देश में कांग्रेसियों द्वारा सिखों के कत्लेआम पर पुलिस और अन्य सभी सुरक्षा एजेंसियां मूकदर्शक बनी हुई थीं। दिल्ली, कानपुर, जयपुर जैसे शहरों में तत्कालीन राजीव गांधी की केन्द्रीय सरकार-कांग्रेसी राज्य सरकारें अगर पुलिस और सेना को सख्त निर्देश देतीं तो निश्चित तौर इतनी बड़ी संख्या में सिखों का कत्लेआम नहीं होता।
राजीव गांधी ने सिख विरोधी दंगों में कांग्रेसियों की करतूतों पर पर्दा डालने की पूरी बिसात बिछायी थी। राजीव गांधी ने पुलिस और सीबीआई जांच को ही नहीं प्रभावित किया था बल्कि न्यायिक जांच को प्रभावित किया था। उन्होंने खानापूर्ति के लिए सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया था, जिसने वही रपट दी जो कांग्रेस सरकार चाहती थी।
जब सात समन्दर पार की अदालत सोनिया गांधी को समन दे सकती है तो फिर देशी अदालत सोनिया गांधी, मनमोहन सरकार, पुलिस और सीबीआई को सिख विरोधी दंगों के कांग्रेसी अपराधियों को बचाने और सबूतों को नष्ट करने, सबूतों पर पर्दा डालने जैसे अपराध के लिए दोषी क्यों नहीं ठहरा सकती? विष्णुगुप्त
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