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26 जनवरी 1950 से प्रभावी होने वाले स्वाधीन भारत के संविधान में हिन्दी को सम्पर्क भाषा और राजभाषा के रूप में मान्यता दी गयी है। हिन्दी शब्द के कई अर्थ प्रचलित रहे हैं किन्तु इसका सबसे सही और व्यापक अर्थ है 'भारतीय'। यह शब्द सभी भारतीय भाषाओं का द्योतक बना। कालान्तर से यह उपयोग की पांच उपभाषाओं और 17 बोलियों का सामूहिक नाम बन गया जिसे आज हिन्दी भाषी क्षेत्र कहते हैं।
अपनी जनशक्ति के कारण ही इस भाषा ने लम्बी लड़ाई के बाद स्वतंत्र भारत संघ की राजभाषा का स्थान प्राप्त किया। 14 सितम्बर 1949 को भाषा सम्बन्धी प्रावधानों को संविधान सभा ने स्वीकृत किया था और यह तय किया गया था कि 15 वर्ष के भीतर हिन्दी को उसका वैधानिक अधिकार दिलाने के लिए आवश्यक प्रयास किए जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसलिए हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रसार समिति वर्धा ने सन् 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। आगे चलकर केन्द्र सरकार ने इसे सरकारी कार्यालयों के लिए अनिवार्य आयोजन का रूप दे दिया। संविधान लागू होने के 15 वर्ष पूरे होते ही कुछ प्रान्तों में भाषाई राजनीति का ऐसा उबाल आया कि हिन्दी के साथ अंग्रेजी को सहराजभाषा बना दिया और व्यावहारिक रूप से भारत संघ की राजभाषा बनने की सम्यक आशाओं पर पानी फेर दिया।
हिन्दी के विरोध में एक वर्ग यह भी है कि हम ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी को अपनाकर अपेक्षित उन्नति नहीं कर सकते और इसके लिए अंग्रेजी का ज्ञान अनिवार्य है। सोचने का विषय है कि यदि ज्ञान विज्ञान की उन्नति का मूलाधार अंग्रेजी ही होती तो हम स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही विश्व के सर्वाधिक उन्नत देशों में होते किन्तु विडम्बना तो यह है कि साहित्य दर्शन, व्याकरण, औषधि, विज्ञान, खगोलशास्त्र, गणित और धातु विज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन भारत का योगदान रहा, न कि परतंत्र भारत का काल। जब जर्मन विद्वान मैक्समूलर, महाकवि कालिदास को पढ़ने के लिए संस्कृत भाषा को सीखते हैं, और स्पेन के नोबेल पुरस्कार विजेता कवि वान रेमोन हेमेनिस व उनकी विदुषी पत्नी गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के साहित्य मंत्रों को समझने के लिए बंगला भाषा सीखते हैं तो हम अपनी भाषा की विपुल साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहर को पाने के लिए हिन्दी क्यों नहीं सीख सकते?
हिन्दी भारत की ही महत्वपूर्ण भाषा नहीं, यह भारत के बाहर विदेशों में भी ससम्मान अपनायी जाने वाली भाषा बन चुकी है। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप अर्थात् नेपाल, पाक, बंगलादेश और भूटान में अधिकांश जनता हिन्दी समझती है। मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिडाड आदि देशों में भी बहुत बड़ी संख्या में हिन्दी बोलने वाले हैं। यहां विभिन्न आयामों, शिक्षा, व्यापार, वाणिज्य, सरकारी कामकाज, साहित्य सृजन आदि में हिन्दी का व्यापक प्रयोग हो रहा है। विश्व के अनेक विकसित देशों जैसे अमरीका, ब्रिटेन, चीन और रूस सहित कनाडा, आस्ट्रेलिया केअनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है। विश्व के 50 देशों की 600 से अधिक शिक्षण-संस्थाओं, विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। जापान जैसे छोटे देश में 8 विश्वविद्यालयों में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था है। अनेक देशों में हिन्दी के साथ हिन्दी सिनेमा के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है। इन देशों में नियमित रूप से हिन्दी फिल्में प्रदर्शित की जाती हैं।
विश्व में हिन्दी प्रसार के लिए प्रतिवर्ष 10 जनवरी को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। मॉरीशस में एक विश्व हिन्दी सचिवालय स्थापित किया जा चुका है। यह सचिवालय अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठियों और सम्मेलनों का आयोजन करता है।
आज हिन्दी इन्टरनेट का बोलबाला है। ढेरों बेवसाइटें व सर्च इंजन 'क्लिक' करते ही देश दुनिया की खबरों से रू-ब-रू करा रहे हैं। ज्ञान-विज्ञान का सबसे बड़ा विश्वकोष 'विकीपिडिया' सकेण्डों में परेशानी दूर कर देता है। समाचार पत्रों के पोर्टल, अपडेट जानकारियां दे रहे हैं। हिन्दी को महत्व दिलाने के लिए 'गूगल' और 'यूनीकोड' की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गूगल ने ऑनलाइन हिन्दी टाइपिंग की सुविधा उपलब्ध करायी है, तो यूनीकोड ने हिन्दी फॉन्ट संबंधी असुविधाओं को दूर किया है जिसके बलबूते आज ब्लॉगर धूम मचाए हुए हैं। गौरी शंकर वैश्य 'विनम्र'
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