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एक बाघ था। वह नदी किनारे मिट्टी के एक टीले पर रहता था। अब वह बहुत बूढ़ा हो चुका था। उसके दांत, नाखून, सब टूटकर गिरने लगे थे। वह इतना दुर्बल हो चुका था कि शिकार करने भी नहीं जा सकता था। बरसात आयी तो इतना पानी बरसा कि वह टीला चारों ओर से पानी से घिर गया। बूढ़ा बाघ भी उस टीले पर रहने से पानी में घिर गया। तब वह नदी किनारे उसी टीले पर आंखें बंद करके और बहुत गंभीर मुख बनाकर ऐसे बैठ गया कि जैसे किसी ध्यान में डूबा हो। एक लोमड़ी पानी पीने आयी तो वह डर रही थी कि बाघ उसे खा न जाये। पर बाघ ने उसे पुकारकर कहा- 'लोमड़ी रानी! डरो नहीं। मैंने कुछ न खाने का व्रत रखा है। आज का दिन भी तो बहुत पवित्र है।' लोमड़ी ने लौटकर जंगल के सब जीवों को बताया कि 'वह जो भयंकर बाघ था, अब व्रत रखने लगा है। मुझे छुआ भी नहीं। भक्त हो गया है। ध्यान करने लगा है।'
उसकी बात पर विश्वास करके एक हिरण नदी में निडर होकर पानी पीने आया तो देखा कि महाराज सच ही आंखें बंद करके ध्यान कर रहे हैं। लगा वह बेखटके पानी पीने। तभी बाघ ने आंखें खोलीं और यह कहते हुए झपटा कि 'भगवान् ने कहा है- हिरण को खाने में कुछ हर्ज नहीं, लोमड़ी न खाना।'
बाघ आखिर बूढ़ा था, झपटने पर भी हिरण हाथ न आया। कूद गया। बाघ दोबारा झपटा लेकिन हिरण छलांग लगाकर नदी में दूर भाग गया।
तब बाघ ने फिर से ध्यान लगाने का नाटक करते हुए कहा- 'छि: छि: आज के पवित्र व्रत वाले दिन अपवित्र हिरण को खाकर मैं अपना व्रत नहीं बिगाडूंगा।' उसने फिर से आंखें बंद कर लीं। मुखाकृति गंभीर बनाकर बैठा रहा उसी टीले पर। परन्तु हिरण ने जंगल में जाकर सब जीवों को चेताया, बताया कि होशियार। धोखे में न आना। वह पूरा ढोंगी भगत है। अब सब उस बाघ से दूर-दूर ही रहते व भूलकर भी वहां पानी पीने न जाते और इस प्रकार वह बाघ भूख के मारे मर गया। इसीलिए कहा गया है कि खोटे ध्यान-भजन का यही परिणाम होता ½èþ*n
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