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आज महिलाओं के सामने कई तरह की समस्याएं हैं। घर से बाहर तो वह असुरक्षित महसूस करती ही हैं, घर के अन्दर भी उन्हें हिंसा का सामना करना पड़ता है। घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की सुरक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 बनाया गया है। इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को कुछ भागों में वर्गीकृत किया गया है, जो इस प्रकार हैं-
शारीरिक यातना– इसमें शारीरिक यातनाएं देना, जैसे- थप्पड़ मारना, लात मारना, पीटना, काटना, जलाना या किसी भी अन्य प्रकार से शारीरिक यातनाएं देना सम्मिलित है।
यौन यातना – इसमें जबरन सम्बंध स्थापित करना या संबंध स्थापित करते समय कुछ ऐसा करना या करने के लिए कहना जोकि उस महिला के मान और गरिमा को ठेस पहुंचाए।
मौखिक एवं भावनात्मक यातना– इसमें अपमानित करना, किसी गलत नाम से बुलाना, गलत और मनगढ़ंत आरोप लगाना, बच्चा न होने या लड़का पैदा न करने का ताना देना, किसी लड़की या महिला को नौकरी छोड़ने के लिए बाधित करना, दूसरी महिला से तुलना कर उसे नीचा दिखाना, कुछ ऐसा कहना या करना जिससे एक महिला/लड़की के मान सम्मान को ठेस पहुंचे।
आर्थिक यातना– इसमें एक महिला को उन सभी बुनियादी जरूरतों से दूर रखना जो उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा हों। जैसे एक महिला को उसकी जरूरतों या उसके बच्चे की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे न देना, उसे या उसके बच्चे को खाना न देना, कपड़े व दवाइयां उपलब्ध न करना, महिला को कार्य करने से रोकना या परेशान करना (अगर वह महिला अपनी इन जरुरतों को पूरा करने के लिए कोई कार्य करती है) या उसका वेतन उससे जबरन छीनना, महिला को घर के किसी हिस्से में जाने से रोकना या महिला को घर के किसी सामान के इस्तेमाल से रोकना या उसके स्त्रीधन (वह सामान जो उसे शादी के समय उसके माता-पिता से मिला है) को जबरन बेचना या उससे संबंधित उसकी कोई सम्पत्ति या वस्तु बेचना या किसी को देना सम्मिलित है। ये सभी कृत्य घरेलू हिंसा के अन्तर्गत आते हैं।
घरेलू हिंसा की शिकायत किसे करें
घरेलू हिंसा की शिकायत सुरक्षा अधिकारी या घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के तहत दण्डाधिकारी को सीधे की जा सकती है। इसमें यह आवश्यक नहीं है कि शिकायत वही करे जिसके साथ घरेलू हिंसा घटित हुई हो। इसकी शिकायत कोई भी अन्य व्यक्ति कर सकता है जैसे कोई रिश्तेदार, पड़ोसी या दोस्त। इसे आप स्वयं या किसी वकील के द्वारा भी दर्ज करा सकते हैं।
शिकायत किस न्यायालय में की जाए
एक महिला अपनी शिकायत इनमें से किसी भी जगह के न्यायालय में दर्ज करा सकती है। जहां वह रहती हो, जहां उसका पति रहता हो, जहां महिला या उसका पति कार्य करता हो या जहां घरेलू हिंसा घटित हुई हो।
सुरक्षा से संबंधित प्रावधान– यदि महिला को किसी भी कारण से घर से निकाला जाता है तो दण्डाधिकारी इस अधिनियम की धारा-19 के तहत महिला को उस घर में (जहां से उसे निकाला गया है) रहने का आदेश दे सकता है।
किसी भी महिला को उसके पति, घरवालों या किसी अन्य रिश्तेदार द्वारा घर से बाहर निकालना कानूनन अपराध है। यदि हालात इस प्रकार हैं कि महिला को उसके पति या अन्य रिश्तेदार के साथ रहने में खतरा है तो इसकी गंभीरता को देखते हुए दण्डाधिकारी महिला के लिए अलग निवास का आदेश देता है साथ ही उस निवास का किराया आदि के लिए महिला के पक्ष में आदेश दिए जाते हैं। अगर महिला के बच्चे (अगर कोई हो तो) उससे अलग अपने पिता या किसी अन्य रिश्तेदार के पास हों तो दण्डाधिकारी इस बात को ध्यान में रखकर जब तक मामले का अंतिम फैसला नहीं होता, बच्चे को उसकी मां को सौंप देता है। घरेलू हिंसा एक गैर-जमानती अपराध है।
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