|
जितेन्द्र भार्गव
पूर्व कार्यकारी निदेशक, एयर इण्डिया
गत दिनों नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में एक भारतीय और एक विदेशी कम्पनी के बीच हुए सौदे पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। 2058 करोड़ रुपए का यह सौदा हुआ है भारतीय कम्पनी जेट एयरवेज और यूनाइटेड अरब अमीरात की कम्पनी एतिहाद एयरवेज के बीच। इस सौदे को नागरिक उड्डयन क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा सौदा माना जा रहा है। किन्तु यह विवाद में फंस गया है और ऐसे सुराग मिले हैं जो साफ बताते हैं कि यह सौदा नियमों को ताक पर रख कर किया गया है। आखिर इस बात के पीछे क्या तथ्य हैं कि प्रत्यक्ष विदेशी पूँजी निवेश (एफडीआई) नीति के तहत एक भारतीय और एक विदेशी विमानन कम्पनियों के बीच एक विशुद्ध कारोबारी सौदे में भारत- आबूधाबी सेक्टर पर हफ्ते में 37000 सीटें मुहैया कराई जा रही हैं? विमानन के जानकार इस पर एकमत हैं कि सरकार के वरदहस्त के बिना जेट-एतिहाद के बीच करार कभी सिरे नहीं चढ़ सकता था।
इस सरकारी 'कृपा' ने किया यह है कि इसने जेट एयरवेज का मोल बहुत ज्यादा ऊंचा कर दिया है। इसके बावजूद नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह मानते हैं कि इसमे कोई उलटफेर नहीं की गई है। जरा तथ्यों को देखें। जेट एयरवेज पर करीब 13000 करोड़ रुपए का कर्ज है। वित्तीय वर्ष 2011-12 में जेट एयरवेज को 1236 करोड़ रुपए का नुकसान भी हुआ है। पहले एतिहाद ने जेट एयरवेज के 24 प्रतिशत शेयर के लिए लगभग 1780 करोड़ रु. दिए थे। फरवरी 2013 में एतिहाद एयरवेज के मुख्य शेख हमीद बिन जावेद अल नहयान ने मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि यह जेट द्वारा मांगी गई रकम से अधिक है। वे इसमें संशोधन भी चाहते थे। फिर दो माह में ही ऐसा क्या हो गया कि जेट एयरवेज 2058 करोड़ रुपए पाने में कामयाब हो गया? इसलिए इस सौदे पर चाहे जो भी तर्क दिए जा रहे हों पर यह साफ है कि यह सरकार की 'कृपा' के बिना मुमकिन नहीं था। नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह इस करार को यह कह कर सही ठहरा रहे हैं कि यह बेहतर जुड़ाव उपलब्ध कराएगा और यात्रियों को कम कीमत अदा करनी पड़ेगी। इस द्विपक्षीय सौदे के अन्तर्गत सीटें उपलब्ध कराना भारत को अमीरात या लुफ्थांसा के साथ हुए ऐसे ही द्विपक्षीय करारों से बेहतर स्थिति उपलब्ध कराएगा, जो तब हुए थे जब प्रफुल्ल पटेल नागरिक उड्डयन मंत्री थे।
ऐसा करके उन्होंने नैतिकता, सही-गलत और इस सवाल के उस बड़े मुद्दे को आसानी से दरकिनार कर दिया कि क्या यह सरकार का काम है कि किसी निजी भारतीय उद्यम की मदद की जाए या किसी विदेशी उड्डयन कम्पनी के मुनाफे के लिए काम किया जाए, क्योंकि 37000 सीटों पर समझौते पर, जेट-एतिहाद द्वारा अपने करार की घोषणा करने के छह घंटे के भीतर ही दस्तखत कर दिए गए थे? अगर कोई कहे कि इन दोनों करारों में आपस में कोई सम्बन्ध नहीं था तो उसकी मासूमियत पर तरस ही खाया जा सकता है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि जेट-एतिहाद को पहले से इस निर्णय की जानकारी नहीं थी और कि यह महज संयोग था कि दोनों घोषणाएं एक-दूसरे के कुछ ही घंटों के भीतर की गईं। इसमें खासतौर पर सन्देह इसलिए जाता है कि इससे नरेश गोयल नाम के शख्स जुड़े हैं, जिन्होंने विभिन्न नागरिक उड्डयन नीतियों को बनाने में सरकार पर हमेशा खासा दबदबा दिखाया है, ताकि अपनी कम्पनी को आगे ले जाते हुए दूसरी कम्पनियों को नुकसान पहुंचाएं।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय का मुख्य काम है देशभर में हवाई सेवा को बढ़ावा देना पर इस करार की वजह से देश में नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में जो संभावनाएं थीं वह धूमिल हो गई हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई सहित पूरे देश के हवाई अड्डे पिछड़ जायेंगे, क्योंकि इन हवाई अड्डों पर जेट-एतिहाद का दबदबा बढ़ जायेगा।
इस करार से अनेक हवाई मार्गों से दूसरी कम्पनियों के हवाई जहाजों को हटना पड़ेगा। सभी हवाई जहाज आबूधाबी होते हुए आएंगे इसलिए भारत में हवाई अड्डों का एक 'हब' भी नहीं बन पायेगा। इससे भारतीय विमानन क्षेत्र को बहुत बड़ा नुकसान होगा।
इस करार पर दस्तखत होने से पहले ही सांसद दिनेश त्रिवेदी ने प्रधानमंत्री को सावधान किया था कि यह सौदा भारतीय विमानन क्षेत्र के लिए ठीक नहीं है। इसके बावजूद पी चिदम्बरम, आनन्द शर्मा, सलमान खुर्शीद और अजित सिंह ने इस करार को हरी झंडी दे दी। ताज्जुब तो यह है कि इन मंत्रियों ने 48 घंटे के अन्दर इस करार के सभी पहलुओं को मान्य कर दिया। जबकि इस करार के खिलाफ कई मंत्रालयों के नौकरशाहों ने अपनी राय दी थी। उन्होंने इस करार पर कई आपत्तियां भी उठाई थीं किन्तु इन आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया गया। सवाल उठता है कि इस करार में सरकार ने इतनी हड़बड़ी क्यों दिखाई?
यह करार तब हुआ था जब रेल मंत्री पवन बंसल और कानून मंत्री अश्विनी कुमार के मुद्दे उछल रहे थे। इसलिए इस करार की ओर न तो मीडिया का ध्यान गया और न ही अन्य दलों का। बाद में सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति (परिवहन) ने इसे घातक बताया। फिर इस मुद्दे को दिनेश त्रिवेदी, गुरुदास दासगुप्ता और जसवंत सिंह ने प्रमुखता से उठाया। इन सबने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आपत्ति दर्ज की है। फिर जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि यदि यह करार रद्द नहीं किया गया तो वह इस मामले को न्यायालय में चुनौती देंगे। यह कहना ठीक ही होगा कि इन्हीं नेताओं की वजह से यह मुद्दा सबकी जानकारी में आया। इसका नतीजा भी निकला। प्रधानमंत्री कार्यालय हरकत में आया।
2 जुलाई को प्रधानमंत्री कार्यालय (पी एमओ) ने कहा है कि जेट-एतिहाद मामले की जांच चल रही है। इससे जुड़े विभिन्न मुद्दों को संबंधित मंत्रालयों को भेज दिया गया है। पीएमओ ने यह भी कहा है कि इस मुद्दे को लेकर सरकार के अन्दर कोई मतभेद नहीं है। जबकि सूत्रों का मानना है कि इस करार को लेकर मंत्रियों के एक समूह ने आपत्ति दर्ज कराई है। इस समूह का मानना है कि यह करार एतिहाद एयरवेज के पक्ष में है। विपक्षी नेताओं की आपत्ति के बाद कुछ मंत्रियों की यह नाराजगी क्या गुल खिलाएगी, यह वक्त ही बताएगा।
जेट–एतिहाद विवाद पर किसने क्या कहा
नागरिक उड्डयन मंत्री अजीत सिंह
सौदे के संबंध में विवाद खड़ा करने के पीछे कॉरपोरेट लॉबी का हाथ है। इस क्षेत्र में कई कॉरपोरेट लॉबी सक्रिय हैं। नागरिक उड्डयन के गला-काट व्यापार में कोई किसी को जरा भी जगह नहीं देता। नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में यह अब तक का सबसे बड़ा सौदा है।
प्रधानमंत्री कार्यालय
सौदे की जांच जारी है। इससे जुड़े विषयों पर गौर करने के लिए संबंधित मंत्रालयों को कहा गया है। भारत और आबू धाबी के बीच हवाई सेवाओं के समझौते को लेकर सरकार में कोई मतभेद नहीं है।
भाजपा
दाल में कुछ काला है। सौदे की जांच पर सवाल खड़ा है। सौदे की जांच सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में सीबीआई से कराई जाए। यह सौदा हर तरह के विवादों से घिरा है। संयुक्त अरब अमीरात से द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर के दो दिन बाद जिस तरह सौदा किया गया और उसे 37 हजार अतिरिक्त सीटें दी गईं, उससे साफ संकेत मिलता है कि इन दो निजी कम्पनियों (जेट एयरवेज और एतिहाद) को पूरी जानकारी थी कि सरकार क्या करने जा रही है।
टिप्पणियाँ