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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दो स्वयंसेवकों- अर्जित शाश्वत एवं अविरल शाश्वत ने केदारनाथ मंदिर से 450 से अधिक लोगों की जान बचाई। वह भी तब जबकि इस हादसे में इनके मौसा-मौसी समेत सात लोग मारे गये थे। ये 13 जून को केदारनाथ पहुंचे जहां इनके पिता एवं बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने अपने पूर्वजों का पिण्डदान किया। 16 जून को एक धमाका जैसा हुआ और कुछ ही देर में इनके होटल में पानी घुस गया। पानी का बहाव काफी तेज था। किसी प्रकार जान बचाकर ये लोग मंदिर के गर्भगृह में पहुंचे। वहां पता चला कि अर्जित के भाई रमण तिवारी, पुरोहित दिनेशचंद्र झा एवं तीन सुरक्षाकर्मियों का कोई अता-पता नहीं था। रात किसी प्रकार मंदिर में ही बितायी। उस समय गर्भगृह एवं मंदिर परिसर में तीर्थयात्री भरे हुए थे। 17 जून की सुबह करीब आठ बजे पुन: एक बड़ा धमाका हुआ। कुछ सेकेण्ड में पहले मलवा, फिर जल सैलाव आया। अर्जित ने बताया कि बीस से पच्चीस सेकेण्ड के अंदर मंदिर परिसर में जल भर गया। ये सब लोग गले-गले तक डूब गये थे। आधे मिनट के अंदर पानी उतर भी गया और सब कुछ बहा ले गया। मंदिर परिसर में मुश्किल से सौ-सवा सौ लोग बच पाए थे। इस प्रलय में इन्होंने अपने मौसा-मौसी को मुख्य द्वार के पास मृत पाया। वहां आठ लोग और मृत पड़े थे। कुछ के शरीर मलबे में दबे थे। बाहर आकर इन दोनों भाईयों ने देखा कि बगल के क्षतिग्रस्त मकान से सहायता की गुहार लगाई जा रही है, परंतु उन्हें बचाने वाला कोई नहीं है। ट्रैकिंग का प्रशिक्षण लिए अर्जित ने उन चौदह लोगों को वहां से निकाला। 18 जून को दोपहर एक बजे पहला हैलीकॉप्टर आया। केदारनाथ मंदिर के सामने इन लोगों ने जमीन हलांकि समतल कर दी थी, परंतु हैलीकॉप्टर चालक ने वहां हैलीकॉप्टर न उतार कर नदी के दूसरी तरफ हैलीकॉप्टर उतारा। तब इन लोगों ने जहां जल की धारा कम तेज थी, वहां से नदी के बीच रास्ता निकालना उचित समझा। मलवे के ढेर से निकाल कर लकड़ी का गट्ठर जमा किया। उसे पानी में डाला। अर्जित ने अपने कमर में मोटी रस्सी (तार वाली) बांधी और दूसरी तरफ उसे एक चट्टान से बांधा। इस 'केवल' के सहारे इन दोनों ने 450 से अधिक लोगों को नदी पार कराई।संजीव कुमार
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