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जो चार धाम की यात्रा पर गए और पूरे के पूरे परिवार परमधाम की यात्रा पर चले गए, उनका कुछ अता-पता नहीं। जो कुछ अपने सामने अपनों को खोकर लौटे उनके दर्द का समझ पाना किसी के बस की बात नहीं। पर जो पूरे के पूरे परिवार भगवान् का लाख- लाख शुक्रिया जताते वापस लौट आये, उनकी जिन्दगी भी आसानी से पटरी पर लौट आई क्या? पहले तो पहाड़ से वापस लौटने के लिए एक-एक दिन का पहाड़-सा इंतजार, और अब लौट आये तो कुछ के सामने पहाड़ जैसी ही समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं । दिल्ली के रहने वाले प्रतीक गुप्ता सेना की मदद से जैसे-तैसे वापस तो आ गए, पर अपनी जिस कार में सवार होकर वे बद्रीनाथ गए थे, उसे वहीं छोड़कर आना पड़ा है। उसके वापस लौटने का मार्ग शायद 3-4 महीने बाद खुले .. और शायद इस 'सीजन' में न भी खुले। अब अपने असक्त बेटे को कहीं भी लाने-ले जाने के लिए कोई कार तलाश रहे हैं। रोहतक के रहने वाले सतीश गर्ग को लगा ही नहीं कि उनकी इनोवा गाड़ी अब कभी वापस लौट पायेगी, बताया, 'अभी तीन महीने बरसात का मौसम, फिर एक-दो महीने में सड़क नहीं बनी तो बर्फबारी की मार, लगता नहीं कि अगली मार्च-अप्रैल तक गाड़ी वापस जा पायेगी। इसीलिए अपनी 12 लाख की खरीदी टॉप मॉडल कार 6 महीने बाद ही यहाँ के एक व्यापारी को 5 लाख 30 हजार में बेचकर जा रहा हूँ। 2.30 नकद मिल गए हैं और बाकी का चेक।' पर जहाँ लोग खुद भूख से लड़ाई लड़ रहे हों वहां कार के इतने खरीददार कहाँ? सैकड़ों कारें और मोटरसाइकिलें बद्रीनाथ में ही नहीं पूरे गढ़वाल में जहाँ- तहां छोड़कर वापस आने को मजबूर हुए लोग। इस उम्मीद के सहारे कि जल्दी रास्ता खुलेगा और हिम्मत पड़ी तो जाकर अपनी कार ले आयेंगे। बद्रीनाथ टैक्सी स्टैंड पर खड़ी नई स्कोडा कार के चालक रणवीर को उसके मालिक धर्मशाला में रहने का आसरा दिला और कुछ खर्च देकर वहीं छोड़ आये कि जब रास्ता खुले गाड़ी लेकर आ जाना, वहां हम तुम्हारे परिवार को सम्हाल लेंगे। पर अपनी टैक्सी लेकर वहां पहुंचे। रमेश हाल ही में सेकेंड हैण्ड टैक्सी खरीदी थी और सोचा था कि यात्रा के इस सीजन में कुछ कमाई हो जाएगी तो किस्त दे दूंगा, पर अब भगवान् ही जाने आगे क्या होगा।
इस सबके बारे में पूछे जाने पर जोशीमठ के सैन्य शिविर में दिन भर हाथ पर हाथ धरे बैठकर हैलीकॉप्टरों की उडान देखने में वक्त बिता रहे चमोली के जिलाधिकारी मुरुगेशन ने टका-सा जवाब दिया, 'और क्या करूं, हम कोई 'सुपरमैन' तो हैं नहीं जो लोगों को कंधे पर बिठाकर ले आयें, सेना के पास हैलीकाप्टर हैं और वही यह काम कर सकती है। बद्रीनाथ में राहत शिविर की जरूरत ही कहाँ है, वहां तो बहुतेरी धर्मशालाएं हैं। जहाँ तक कारों-मोटर साइकिलों की बात है तो लोग स्थानीय पुलिस स्टेशन पर अपनी कार का नंबर और अपना मोबाइल नंबर छोड़ जायें , जैसे ही रास्ता खुलेगा उन्हें सूचना भेज दी जाएगी । और रास्ता कब तक खुलेगा यह भी सीमा सड़क संगठन वाले ही बता पाएंगे। वैसे भी हम पहाड़ के कर्मचारियो को बर्फ और बरसात का टाइम छोड़कर 6 महीने ही काम के मिलते हैं।'
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