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अकल्पनीय प्राकृतिक आपदा के बीच पीड़ितों को सुरक्षित बचाने के लिए जूझते सेना के जवान और उन्हें राहत पहुंचाने में जुटे संघ के स्वयंसेवक, देश भर से राष्ट्रवादियों के बढ़ रहे सहायता के हाथों को ठुकराकर हताश तीर्थयात्रियों की मुश्किलें बढ़ाती संवेदनहीन राज्य सरकार, मरने वालों और दुर्गम स्थानों पर फंसे लोगों के झूठे आंकड़े प्रस्तुत करता लाचार और अपंग प्रशासन और खुले आसमान तले भीगते हुए बैठे 85 साल के बुजुर्ग से लेकर दुधमुंहे बच्चे…यही है देवभूमि का वर्तमान परिदृश्य। 15-16 जून को हुई भारी बारिश और बादल फटने से मची तबाही में हजारों मरे और 13 दिन बाद भी स्थिति यह थी कि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में फंसे हजारों लोग जहां-तहां घर वापसी की बाट जोह रहे थे, वह भी तब जबकि भारतीय वायुसेना ने अपने अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा राहत अभियान चलाया। देहरादून से लेकर बद्रीनाथ तक की यात्रा के दौरान जो जहां मिला, जैसे मिला, उसके दर्द और आक्रोश को एक वाक्य व्यक्त करना हो तो उनका कहना था-'जिस चार धाम की यात्रा से उत्तराखंड सरकार को भारी कमाई होती है, यहां के लोगों को इतना रोजगार मिलता है, उसमें इतनी बदइंतजामी, इतनी संवेदनहीनता, क्यों, क्योंकि ये हिन्दू तीर्थ हैं और दर्शन करने वाले हिन्दू।'
हिमालयी सुनामी के एक सप्ताह बाद 24 जून को भी सहस्रधारा हैलीपैड पर अपने परिजनों को खोजते सैकड़ों लोग डेरा डाले हुए थे, पर इन्द्र देव नाराज, भारी बारिश के चलते कोई हैलीकाप्टर नहीं उड़ा और अपनों से मिलने को बेचैन दिल मायूस। शाम का धुंधलका छाने से पहले गंगोत्री के पास हर्षिल से एक हैलीकाप्टर जैसे-तैसे उतरा, उसमें से बनारस के रहने वाले वृद्ध, बीमार 75 वर्षीय अंजनी नंदन को उतारा गया। उनके पुत्र संजय से अपनों का हाल जानने को झपट पड़े कई लोग। घर से हजारों किमी. दूर हजारों फीट की ऊंचाई पर बफर्ीली हवाओं और तेज बारिश में फंसे अपने परिवार के सदस्यों की कल्पना कर रो पड़े पिंटू डागा। धमतरी के रहने वाले पिंटू की मां-भाभी और 7-8-9 साल के भतीजों सहित छत्तीसगढ़वासियों को वापस लाने के लिए वहां की राज्य सरकार ने विशेष हैलीकाप्टर भेजा था, पर पहाड़ी क्षेत्र में विमान उड़ाने का अभ्यस्त एक निजी पायलट जब वहां पहुंचा तो कुछ ले-देकर गोंदिया (महाराष्ट्र) के रहने वाले चार युवाओं को उतार लाया। और तो और, परिजनों की पहचान के लिए गए उनके एक साथी को हर्षिल ही छोड़ आया।
अगले दिन 25 जून की सुबह कुछ क्षण के लिए बारिश रुकी और ईश्वर ने एक छोटे हैलीकाप्टर से बद्रीनाथ तक पहुंच जाने का रास्ता दे दिया। जिन घाटियों के ऊपर से होती हुई यह यात्रा पूरी हुई उसके नीचे बह रही नदियों के किनारे तबाही के दृश्य साफ-साफ नजर आ रहे थे। और जब बद्रीनाथ में उतरे तो उस अधबने हैलीपैड के चारों तरफ बैठी भीड़ जैसे झपट-सी पड़ी। आईटीबीपी के जवानों ने बमुश्किल उन्हें संभाला और जो भाग्य वाले थे उनमें से चार-पांच ही उसमें बैठ पाए। बाकी सब तेज हवा और रिमझिम फुहारों के बीच मायूस, बेबस और लाचार। रायबरेली के रहने वाले शेखर शुक्ला हों या नागपुर की रहने वाली मोनाली दरने या फिर इंदौर की प्रिया मित्तल-ये सब एक दो नहीं इनके साथ दस-दस, बारह-बारह लोगों का समूह, सबकी एक ही आपबीती थी कि वे 15 जून को बद्रीनाथ पहुंचे थे और उस दिन शाम को मची तबाही के बाद से बस यहीं के होकर रह गए हैं। पूरी तरह से ध्वस्त रास्तों के बाद बस इन्हीं हैलीकाप्टरों का सहारा बचा है, जिसके लिए रोज सुबह 5 बजे यहां आकर बैठ जाते हैं और शाम 7 बजे तक इंतजार करते रहते हैं कि शायद आज उनका भाग्य बलवान हो। दिन भर में एक-आध पैकेट बिस्कुट या पानी की बोतल, बस यही बचा था जीवन में। इंदौर के 73 वर्षीय शील कुमार जैन पैरों में पड़ी रॉड और घुटने में दर्द की वजह से बैठ ही नहीं सकते तो यू.एस.अग्रवाल कमर दर्द की वजह से ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते, पर जूझ रहे थे कि कैसे भी हो घर तक पहुंचें।
एक छोर पर बने उस अस्थाई हैलीपैड से लेकर बद्रीनाथ के बिल्कुल दूसरे छोर पर बने सेना के हैलीपैड तक जहां भी जो मिला वह व्याकुल और गुस्से से भरा हुआ। चार धाम की यात्रा के सबसे प्रमुख समय, जून माह का मध्य और वह भी शनिवार, रविवार के दिन, जबकि सड़कें भरी रहती थीं, दुकानों पर भारी भीड़ होती थी और मंदिर में दर्शन के लिए घंटों-घंटों का इंतजार और लम्बी लाइन, पर अब अब वहां ऐसा कुछ भी नहीं था। सूनी सड़कें, बंद पड़े बाजार और मंदिर में भी पसरा सन्नाटा। भगवान बद्रीनाथ जी के बंद कपाट दिन के तीन बजे दोबारा खुले तो वहां दर्शन करने वाला अकेला मैं। कुछ देर बाद छत्तीसगढ़ की रहने वाली सुप्रिया आईं तो बताया कि हम बड़े सौभाग्यशाली थे कि 14 जून की शाम बाबा केदारनाथ के दर्शन कर अपनी चार धाम यात्रा के अंतिम पड़ाव में बद्रीनाथ पहुंचे। 15 की सुबह लगभग चार घंटे लाइन में खड़े रहने के बाद जब नारायण के दर्शन हुए तो बस कुछ सेकेंड के लिए, धक्का देकर आगे बढ़ा दिया गया। और उसके बाद अचानक आई विपदा और बंद रास्तों की वजह से न घर जा पा रहे हैं न कहीं और। बस एक बात का सुकून है कि जिस नाथ के एक सेकेंड के दर्शन से मन मायूस था, मैं अब उनको घंटों देख सकती हूं और उनके सामने बैठकर ध्यान भी कर सकती हूं, क्योंकि अब वही एक सहारा हैं।
पर विश्वास नगर (दिल्ली) के रहने वाले प्रतीक गुप्ता की विपदा और बड़ी है। उनका एकमात्र पुत्र यश शरीर से लाचार, दिमाग से अविकसित, 17 साल की उम्र में 4 साल वाली समझ। अपनी पत्नी और एक बिटिया के साथ उसको लेकर भगवान के दर्शन को गए थे। पर दैवी आपदा ऐसी कि बस अब रोए, तब रोए। उनकी परेशानी यह भी कि अगर हैलीकाप्टर से उन्हें बद्रीनाथ से जोशीमठ तक पहुंचा भी दिया गया तो उसके बाद की यात्रा वह इस बालक को पीठ पर लादकर कैसे करेंगे। उसको पीठ पर लादकर जोशीमठ से किसी सरकारी वाहन से चमोली तक, फिर बस बदलकर चमोली से श्रीनगर तक, और फिर श्रीनगर से बस बदलकर ऋषिकेश या हरिद्वार, और उसमें भी जहां कहीं कोई भूस्खलन हो जाए तो पीठ पर लादकर उस टूटी सड़क को पार करना, उनके लिए असंभव ही था। बद्रीनाथ से निकाले जा रहे हजारों लोगों को इसी रास्ते से होते हुए नीचे भेजा जा रहा था। उसी दीपक लॉज में रह रहे वृंदावन के राजेश वशिष्ठ लगभग चिल्ला ही पड़े। बोले, 'सिर्फ और सिर्फ गालियां ही निकलती हैं ऐसी सरकार और उसके चलाने वालों के लिए। हम यहां मर रहे हैं और नेता- मंत्री टीवी पर आकर झूठे-झूठे आंकड़े बताते हैं। इन्हें शर्म नहीं आती टीवी पर कहते हुए कि बद्रीनाथ में बस दो-ढाई सौ लोग शेष बचे हैं जबकि मेरा टोकन नम्बर सात सौ है। एक टोकन पर आठ-आठ, दस-दस लोग हैं, अंदाजा लगाइए। आठ हजार लोग हैं और ये ढाई सौ बता रहे हैं। इन राजनीति करने वालों को क्या हिन्दुओं की पीड़ा नहीं दिखती। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैलीकाप्टर भेजने को कह रहे थे तो उत्तराखंड सरकार ने इनकार कर दिया। जब मौसम ठीक था तब पूरे देश से मदद मांगकर हम लोगों को बाहर निकालने के जतन नहीं किए गए। और अब मौसम खराब होने के बहाने। धिक्कार है ऐसी राजनीति पर और ऐसी राजनीति करने वालों पर।'
इंदौर के रहने वाले भैंरो लाल राठौर का 18 सदस्यीय भरा-पूरा परिवार तो बद्रीनाथ आते हुए हनुमान चट्टी के पास ही फंस गया। इधर सड़क नहीं, उधर खाई और उफनती अलकनंदा, एक पुलिस चौकी पर पूरी रात कटी। अगले दिन सुबह आईटीबीपी के जवान आए, रस्सा डाला और चेन-पुली के सहारे रस्सी से बांधकर उधर से इधर खींचे गए, और वहां से बद्रीनाथ लाकर बैठा दिए गए। अब दिन भर आसमान तकते रहते हैं। उनकी बिटिया मुस्कान को वह रस्सी के सहारे लटक कर आना बड़ा कारनामा लगा, लेकिन दादी बोलीं, 'भैया नीचे हहराती अलकनंदा और उसका भीषण शोर और उसके बीच में लटकती मेरी पोती, बस यूं समझो कि धड़कन बंद-सी हो गयी थी। ये बच्चे जब पार हो गए और हमारा नम्बर आया तो सोचा अब जिंदा बचे तो बाकी को देख पाएंगे।
जो हैलीकाप्टर से नहीं जा पाए उनके लिए आसान नहीं था उन बीहड़, दुर्गम रास्तों पर से गुजरकर नीचे तक पहुंचना। जिस रस्सी के सहारे टंगकर काफी अभ्यास के बाद सेना और अन्य अर्द्धसैनिक बलों के जवान दुर्गम रास्तों और नदियों को पार करते हैं, उस पर से हाथ-पैरों के बल लटककर पार होना मौत से खेलने के समान ही था। फिर कम से कम पांच घंटे तक रपटीली पहाड़ियों पर से गुजर कर पांडुकेश्वर पहुंचने को मजबूर थे वे लोग, जहां से सड़क कुछ ठीक थी और वे जोशीमठ तक पहुंच सकते थे। इस दौरान ना जाने कितने चोट खाए, फिसले, गिरे।
कदम दर कदम जिधर बढ़ते जाओ बस विपदा से घिरे लोग, सहायता से वंचित और सरकारी अव्यवस्थाओं का घोर आलम। मौसम खराब होने से हैलीकाप्टर की आवाजाही बाधित हो गई और वह रात बद्रीनाथ में ही गुजारनी पड़ी। भला हो संत गंगेनंदन जी महाराज के एक समूह का, जिसके प्रमुख सदस्य और दिल्ली के अधिवक्ता श्री रामविलास ने अपने साथ साधु-सुधा में रहने की व्यवस्था करवाई। वे और उनके समूह के 115 लोग यहां कथा श्रवण के लिए आए थे। ये खुद अपनी व्यवस्था कर रहे थे, किसी सरकारी सहायता की न उन्हें दरकार थी और न उम्मीद। रात गुजरी, भोर हुई तो रेलिंग के सहारे खड़ी दिल्ली के द्वारका की रहने वाली पद्मा माहेश्वरी और जया राठी धुले हुए पहाड़ों की हरियाली और उस पर चमकती बर्फ को देखती हुई मिलीं। यूं ही पूछ लिया कि प्रकृति के नजारे देख रही हैं तो वे बोलीं, 'अब ये पहाड़ सुंदर नहीं लगते। रुखे हैं और निर्दयी भी, और ऐसी ही है हमारी सरकार भी। कब तक देखते रहेंगे हम इन पहाड़ों पर फंसे लोगों की मुसीबतों को और झूठे राजनेताओं को?
सबने माना देवदूत
कल्पना कीजिए कि अगर सेना न होती तो इस भीषण दैवी आपदा में कौन किसकी सहायता कर पाता? टेलीविजन पर आकर मुंह चमकाते चंद चेहरे सिर्फ और सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी करते रहे और हतप्रभ, हताश और नाकारा प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा था। ऐसे में भारतीय सेना और वायुसेना के हैलीकाप्टरों ने जो किया और जैसे किया उससे उनके बारे में एक ही छवि बनी-देवदूत। गंगोत्री के पास हर्षिल में फंसे लोगों से लेकर बद्रीनाथ, केदारनाथ, गौरीकुंड, रामबाड़ा, गुप्तकाशी, अगस्तमुनि, तिलबाड़ा, जंगल चट्टी हेमकुंड साहब, गोविंदधाम, गोविंदघाट और हनुमान चट्टी के तंग गलियारों से बहुत नीची उड़ान भरते हुए जिस जांबाजी और सेवाभाव से सैनिकों ने उन्हें निकाला, उसकी सब तरफ प्रशंसा हो रही है। बद्रीनाथ में लोगों को हैलीकाप्टर से भेजने का कार्य संचालन कर रहे ले.कर्नल कर्मवीर को चिंता थी कि मौसम ज्यादा खराब हो उससे पहले सब लोग यहां से निकल जाएं। सिर्फ सेना के जवान ही थे जो वहां न केवल हैलीकाप्टर की उड़ान संचालित कर रहे थे बल्कि लोगों को लाइन में लगाना, उनको नियंत्रित रखना, उनके बीच टोकन तक बांटना, ताकि लोग रात-रात भर खुले में हैलीकाप्टर के इंतजार में भीगते न रहें, यह सब भी वही कर रहे थे। कुछ लोग सेना के जवानों से भी उलझ पड़ते कि पहले हमें भेजो, हमारी उम्र ज्यादा है या हम बीमार हैं, पर ले.कर्नल कर्मवीर के चेहरे पर शिकन तक नहीं देखी। वे बड़े सरल और नम्र शब्दों में कहते, 'अम्मा-बाबा सब जाएंगे, भरोसा रखो।' न किसी को डांटना, न किसी को फटकारना। और यह शिकायत भी नहीं कि लाइन लगाने या टोकन बांटने का जो सामान्य-सा काम, यहां का सामान्य प्रशासन कर सकता था, वह भी वो क्यों नहीं करता। बुजुर्ग लोग, असहाय लोग, थके- मांदे लोग को सेना के जवानों ने न केवल हैलीकाप्टर से एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाया बल्कि इन सबका सामान भी कंधों पर ढोया। और तो और जो बेहद लाचार थे, चलने में सक्षम नहीं थे, उन्हें भी कई-कई किलोमीटर तक कंधों पर ढोकर सुरक्षित नीचे तक पहुंचाया। इसलिए सबकी जुबान पर एक ही बात था- यह सरकार नाकारा है, हमें तो सिर्फ सैनिकों का सहारा है।
बिना वर्दी वाला सैनिक
बद्रीनाथ का मौसम साफ होते ही एक हैलीकाप्टर बार-बार इधर-उधर जाता नजर आता। सेना के हैलीपैड पर पहुंचे तो देखा यू.टी. एयर का वही निजी हैलीकाप्टर आकर उतरा। उसका इंजन कुछ हल्का हुआ, पंख अभी थमे नहीं कि इधर से सेना के जवान 5 लोगों को लेकर उधर भागे और वहां उस हैलीकाप्टर का पायलट खुद नीचे उतरा, फिर एक-एक कर सबको चढ़ा लिया। किसी को उसके बैग पर बैठाया तो किसी को किसी की गोद मे। साथी पायलट भी नहीं था। उसकी सीट पर भी जैसे-तैसे 2 को बैठा लिया। ठूंस-ठूंस कर कुछ जगह और निकाली तो कहा 1 और भेजो। सबको बैठाकर, खुद उन्हें अन्दर दबा-दबाकर हैलिकाप्टर का दरबाजा बंद किया, और जिस आत्मविश्वास से, जमीन से बस 4 फीट की ऊंचाई पाते ही फरर्ाटे से उड़ान भरी तो सब वाह-वाह कर उठे। पता चला कि सेना के एम.आइ. 17 के बाद यही एक निजी हैलिकाप्टर है जिसने सबसे ज्यादा उड़ान भरी है और सबसे ज्यादा लोगों को बद्रीनाथ से जोशीमठ ताख पहुंचाया है। बद्रीनाथ-जोशीमठ- बद्रीनाथ का एक चक्कर मात्र 30 में लगा देने वाले इस जांबाज कैप्टन की प्रशंसा तो सेना वाले भी कर रहे थे। दूसरे चक्कर में जब बात करने की कोशिश की तो कहा अभी काम करने दीजिए। तय कर लिया कि कल सुबह इस हैलीकाप्टर से वापस जाना है। अगले दिन भी जोशीमठ से उड़ान भरकर सबसे पहले बद्रीनाथ पहुँचने वाला वही हैलीकाप्टर था। पर सबसे पहले मुझे नहीं बैठाया। पहले 3 चक्कर में उन महिलाओं-बच्चों को उस पार पहुँचाया जो ज्यादा परेशान थे और तब मेरी बारी आई। उतारते समय बमुश्किल अपना नाम बताया- कैप्टन अरविन्द पाण्डे।
बद्रीनाथ मंदिर समिति की अभिनंदनीय पहल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक अव्यवस्थाओं को सिर्फ एक उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे ही सड़क टूटने और बादल फटने के समाचार मिले, बद्री केदार मंदिर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.डी.सिंह ने घटना की गंभीरता को इसलिए समझ लिया क्योंकि वे खुद भारत-चीन सीमा के अंतिम गांव 'माणा' के रहने वाले हैं और वन विभाग के अधिकारी हैं। उन्होंने 16 तारीख को ही एक आदेश/निर्देश/अनुरोध सभी लॉज वालों और होटल मालिकों के लिए भेज दिया कि वे तीर्थयात्रियों से अब किराया न वसूलें। बद्रीनाथ मंदिर परिसर सहित टैक्सी स्टैंड व अन्य दो स्थानों पर लंगर का प्रबंध कर दिया। बद्रीनाथ की व्यापार सभा को भी लिखित निर्देश भेज दिया कि वे केवल मुद्रित मूल्य पर ही सामान बेचें। ये सब हो रहा है या नहीं इसके लिए उन्होंने रात को कुछ लॉज में जाकर पूछताछ भी की। मंदिर समिति के जितने भी कर्मचारी थे, उनके अलग-अलग दल बनाकर सारी व्यवस्थाओं का संचालन करना शुरू कर दिया। चूंकि तीर्थयात्रियों का मुख्य केन्द्र बद्रीनाथ मंदिर दर्शन ही रहता है, इसलिए वहां से सूचनाओं का आदान-प्रदान एवं व्यवस्थाओं का संचालन भी सुचारू रूप से हो रहा था। उन्होंने कुछ पत्र भी बांटे ताकि प्रत्येक धर्मशाला, लॉज या होटल में जितने लोग रह रहे हैं, उनके नाम क्या हैं, इसकी जानकारी जुटाई जा सके और उसी अनुरूप उनको भेजने की व्यवस्था भी की जा सके। पर… अचानक 22 तारीख को एक निर्देश आया कि आपदा प्रबंधन के लिए एक नये आईएएस अधिकारी को नियुक्त कर दिया गया है। और उस आईएस अधिकारी ने आते ही एक होटल में डेरा डाला, वहीं से एक लिखित निर्देश भेज दिया कि अब आप कोई भी काम हमारी अनुमति के बिना नहीं करेंगे। अब तक जो राहत सामग्री बांटी है उसका हिसाब दीजिए। …बी.डी.सिंह चुप हो बैठ गए, हिसाब भेज दिया। अब पूछने पर कहते हैं कि 'सर, यह तो सरकार का निर्देश है, अब जो भी करेंगे नए साहब करेंगे।'
चमत्कार से कम नहीं मन्दिर का बचना
जलप्रलय के कारण केदारनाथ में सब कुछ खत्म हो गया, बचा तो केवल मन्दिर। इस प्राचीन मन्दिर का सुरक्षित रहना भी एक चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा है। चमत्कार यह हुआ कि जब प्रलय आयी तो उसके साथ एक बडी चट्टान भी बहकर आई और मन्दिर से कुछ दूरी पर जम गई। इससे जलधारा दो हिस्से में बंट गई और मन्दिर तक तेज बहाव नहीं पहुंच पाया, इस कारण मन्दिर पूरी तरह सुरक्षित रहा। वहीं पुरातत्वविदों का मानना है कि यह मन्दिर प्राचीन स्थापत्य (आकर्ीटेक्चर) के कारण बच पाया है। यह मन्दिर एक विशाल चट्टान पर खड़ा है। यदि इस मन्दिर के नीचे मिट्टी होती तो यह सदियों से ख़डा नहीं रह पाता। पुरातत्वविद् इस मन्दिर के सुरक्षित रहने के पांच कारण बता रहे हैं। पहला, यह मन्दिर जमीन तल से जितना ऊपर है उसका एक तिहाई भाग जमीन के अन्दर है। दूसरा, मन्दिर में लगे पत्थरों को गारे से नहीं जोड़ा गया है, पत्थरों को काटकर एक-दूसरे से जोड़ा गया है। तीसरा, पूरा मन्दिर पत्थर के टुकड़ों से बना है। अनुमान है कि पत्थर के एक टुकड़े का वजन 50 से 80 किलोग्राम तक है। चौथा, मन्दिर की दीवारें 4 से 5 फीट तक मोटी हैं और मन्दिर का भार उसे जड़ बनाए हुए है। पांचवां, जमीन के ऊपर चबूतरे पर मन्दिर की बनावट कंगूरेदार है, जिससे पानी का दबाव दीवारों पर नहीं पड़ा। बद्रीनाथ से जितेन्द्र तिवारी
क्यों नाराज हुए केदारनाथ?
हिमालयी क्षेत्र में बाबा केदारनाथ का कहर क्यों बरपा, इसके कई कारण हैं। इनमें प्रमुख हैं–
l हिमालय के ऊंचे इलाकों में केदारनाथ- हेमकुण्ड साहिब- बद्रीनाथ में शुरू की गई हैलीकाप्टर सेवा ने दिनभर में सैकड़ों उड़ानों से वहां का वातावरण गर्म हुआ।
l हजारों की संख्या में पहुंच रहे वाहनों के धुएं ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया।
l गंगा किनारे, मंदिरों के आस-पास बड़ी-बड़ी इमारतों का अंधाधुन्ध निर्माण कार्य, आबादी का बढ़ता बोझ।
l तीर्थाटन का पर्यटन के रूप में होता बदलाव।
l हिमालयी क्षेत्र में सड़क और बांध परियोजनाओं में विस्फोटक पदार्थों का इस्तेमाल।
l बांध-सड़क परियोजनाओं में हरे पेड़ों की कटाई।
l पहले वाहनों को पहाड़ी मार्गों पर 55 कुन्टल भार ले जाने की अनुमति थी, जो अब दो सौ कुन्टल से भी ज्यादा ले जा रहे हैं।
l पहाड़ी इलाकों का बिना योजना के विकास, राजनीतिक दखलंदाजी, प्रशासनिक अस्थिरता।
l बिल्डर-माफियाओं का दबदबा।
l बांधों की गाद से बढ़ता नदियों का जलस्तर।
मरने वालों की संख्या का सही आंकड़ा नहीं
केदारनाथ घाटी में मृतकों की संख्या सैकड़ों में नहीं हजारों में है। सरकारी आंकड़ा एक हजार गलत है। प्रदेश के आपदा मंत्री यशपाल आर्य मृतकों की संख्या पांच हजार मानते हैं जबकि प्रत्यक्षदर्शी यह संख्या पन्द्रह हजार से अधिक बताते हैं। मीडिया के लोगों और स्थानीय जानकारों का भी अनुमान है कि इस हादसे में पन्द्रह हजार से अधिक लोगों की मौत हुई हैं।
चौपट हुई चारधाम यात्रा: तबाही के भय ने अगले दो-तीन सालों तक चारधाम यात्रा पर तीर्थयात्रियों के आने पर बन्दिश-सी लगा दी है। जब तक सरकार यात्रियों की सुरक्षा की गारण्टी नहीं लेगी, तब तक तीर्थयात्री यहां का रुख नहीं कर पायेंगे। केदारनाथ को संवारने में लगेंगे कई साल। केदारनाथ मंदिर के शुद्धिकरण, पुर्ननिर्माण में कई साल लग जायेंगे। दिनेश मानसेरा
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