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गुजरात में गांधी आश्रम कर मुक्त, महाराष्ट्र में टैक्स वसूली का नोटिस
गांधी जी के नाम पर सत्ता सुख भोग रही नकली गांधियों की कांग्रेस ने असली गांधी के विचारों को तो तिलांञ्जलि पहले ही दे दी थी, अब उनके प्रतीकों के प्रति भी अनादर और उपेक्षा का भाव प्रकट कर रही है। यह तब और साफ हुआ जब कांग्रेस शासित महाराष्ट्र में वर्घा के निकट सेवाग्राम में स्थित गांधी आश्रम तथा बापू कुटी अपनी स्थापना का 75वां वर्ष मना रहा है और राज्य तथा केन्द्र सरकार इससे पूरी तरह अलग है। इससे पूर्व सेवाग्राम स्थित गांधीजी के आश्रम को राज्य सरकार द्वारा विगत 7 वर्षों से कर (टैक्स) में दी गयी राहत मनमाने तरीके से वापस ले ली गई। गांधीजी का नाम लेकर राज करने वालों ने सेवाग्राम के गांधी आश्रम को 3 लाख 10 हजार रुपए का कर भरने का कानूनी नोटिस भी भेज दिया है।
इतिहास साक्षी है कि गांधीजी ने अपनी वृद्धावस्था में सर्वाधिक यानी 12 वर्ष का समय वर्घा जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूरी पर बसे तथा 300 एकड़ में फैले इसी आश्रम में बिताते हुए देश के स्वाधीनता संग्राम का मार्गदर्शन किया था। यही नहीं गांधीजी जी की कल्पना अनुसार इस स्थान का नामकरण सेगांव से सेवाग्राम किया गया। आजादी पूर्व देश की राजनीति का केन्द्र रहा सेवाग्राम आज भी सभी के लिये श्रद्धा तथा प्रेरणा का केन्द्र है। देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग आश्रम में आते हैं। इस कारण स्थानीय पंचायत को आय भी होती है। बावजूद इसके गांधी आश्रम पर कर का बोझ डाला जा रहा है। सेवाग्राम आश्रम को कर (टैक्स) से मुक्त करने की पहल सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के पूर्व मंत्री शिवशंकर पेंढे के कार्यकाल में हुई थी। शिवशंकर पेंढे ने यह तर्क दिया था कि जिस प्रकार गांधीजी की स्मृति साबरमती आश्रम को गुजरात सरकार ने अपने विशेषाधिकारों के तहत सभी प्रकार के करों से मुक्त कर रखा है, उसी प्रकार महाराष्ट्र सरकार को भी सेवाग्राम के गांधी आश्रम को कर से मुक्त कर देना चाहिए। गांधीवादियों के इस अनुरोध पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान में केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सेवाग्राम आश्रम को स्थानीय करों से मुक्त कराने की घोषणा तो कर दी पर उसके उचित क्रियान्वयन हेतु प्रशासनिक तथा कागजी कार्रवाई न किये जाने के कारण स्थानीय पंचायत तथा प्रशासन तक जरूरी निर्देश नहीं गये। इस कारण सेवाग्राम आश्रम पर करों का बोझ बढ़ता ही गया। मुख्यमंत्री के वादे के बाद भी आश्रम पर करों का बोझ डाले रखना तथा आश्रम के 75वें स्थापन वर्ष में कर की वसूली का नोटिस भेजना आश्रमवादियों के लिए पीड़ादायक अहसास है।
दूसरी तरफ गांधीजी द्वारा आजीवन जिस खादी को बढ़ावा दिया गया, उस खादी के प्रति भी महाराष्ट्र सरकार की नीति तथा नीयत में खोट आने के कारण वह बरबादी की ओर बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि हर गांव में रोजगार के अवसर दिलाने के स्वदेशी चिंतन के साथ गांजीजी ने ग्रामोद्योग के तहत खादी को बढ़ावा दिया था। उसी से प्रेरणा लेकर तथा खादी का प्रसार-प्रचार करने हेतु आचार्य विनोबा भावे ने खादी मिशन का गठन किया था। आगे चलकर खादी स्वाधीनता आंदोलन तथा स्वाधीनता मिलने के बाद सत्ता हथियाने और उसे बनाये रखने का राजनीतिक माध्यम सा बन गया। पर केन्द्र सरकार व महाराष्ट्र सरकार ने खादी आयोग का करोबार विदेशी बैंक तथा उद्योगों को बेचने का फैसला ले लिया है। खादी मिशन के वर्तमान संयोजक तथा आचार्य विनोबा भावे के निकट सहयोगी श्री बाल विजय के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा खादी ग्रामोद्योग आयोग को ही अब एशियाई विकास बैंक तथा कुछ विदेशी निजी उद्योगों के साझेदारी में बेचने का निर्णय लिया गया है, जो पूरी तरह अनुचित है।
सरकारी आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा बढ़ावा देने के कारण देशभर के 400 से अधिक ग्रामोद्योग संगठन आज भी सफलतापूर्वक कार्यरत हैं। 2010-2011 के अधिकारिक आकड़ों के अनुसार ग्रामीण अंचलों में खादी क्षेत्र में 10 लाख 15 हजार तो ग्रामोद्योग क्षेत्र में 1 करोड़ 3 लाख से भी अधिक लोग कार्यरत है तथा यह संगठन उनके रोजगार के अवसर के अलावा ग्रमोद्योग को बढ़ावा देने में अपना योगदान दे रहा है। आज देश के कुल आय में खादी उद्योग का योगदान 19 हजार 871 करोड़ रुपए तक का है। खादी ग्रामोद्योग विशेष रूप से 'ना लाभ-ना घाटा' नीति के तौर पर सक्रिय है। खादी ग्रामोद्योग को विगत कुछ वर्षों से आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा था, उसका समाधान ढूंढने के लिए खादी मिशन के संयोजक बाल विजय ने विगत तीन वर्षों से केन्द्र सरकार के स्तर पर चर्चा के अलावा निरन्तर पत्राचार भी किया था, जिसके चलते अप्रैल, 2012 में उस समय के लघु एवं मध्यम उद्योगमंत्री वीरभद्र सिंह ने सभी खादी संगठनों को ऋण मुक्त घोषित किया, पर उस घोषणा पर अमल नहीं हो पाया। और अब खादी ग्रामोद्योग तथा उससे संबद्ध संगठनों पर बकाया कर्जे के मुद्दे को लेकर इस विशेष उद्योग को उसका परम्परागत महत्व, मूल्य तथा आर्थिक-सामाजिक योगदान भी नजरअंदाज करते हुए विदेशी बैंक तथा उद्योगों के हवाले करने के केन्द्र सरकार के निर्णय के खिलाफ खादी मिशन, खादी ग्रामोद्योग तथा उससे संबद्ध संगठन तथा उसके कार्यकर्ताओं में व्यापक असंतोष है। इस बारे में तुरंत सकारात्मक रवैया न अपनाया गया तो इन संगठनों ने व्यापक आंदोलन छेड़ने की चेतावनी भी दी है।
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