बेलगाम टैक्नालॉजी पर सवार सभ्यता
July 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

बेलगाम टैक्नालॉजी पर सवार सभ्यता

by
Jun 22, 2013, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 22 Jun 2013 14:02:52

 

ब्रिटिश लेखक ए.एल.राउजे ने अपनी एक पुस्तक को शीर्षक दिया है, 'इफ्स ऑफ हिस्ट्री' (इतिहास के अगर)। इस पुस्तक में उन्होंने विश्व इतिहास से अनेक निर्णायक प्रसंगों को चुनकर प्रश्न उठाया है कि 'यदि ऐसा न होता तो क्या होता या क्या न होता?' भारतीय इतिहास से उन्होंने एक ही प्रसंग चुना है और वह है 1857 की क्रांति में टेलीग्राफ सिस्टम की भूमिका। राउजे पूछते है कि यदि उस समय भारत में टेलीग्राफ न होता तो क्या होता? और उनका उत्तर है कि तब 1857 की क्रांति अवश्य ही सफल हो जाती और भारत पर ब्रिटिश दासता का अध्याय समाप्त हो जाता। यदि 1857 के घटनाचक्र को ध्यान से देखें तो राउजे का उत्तर सही प्रतीत होता है।

ब्रिटिश शासकों ने टेलीग्राफ को भारत में सन् 1852 में प्रवेश कराया और अगले 4-5 वर्षों में ही अपनी राजधानी कलकत्ता को पश्चिमोत्तर में पेशावर तक, पश्चिमी तट पर बम्बई से और पूर्वी तट पर मद्रास से जोड़ दिया। टेलीग्राफ की सहायता कोई भी सूचना अल्पकाल में ही देश के सुदूर कोनों तक पहुंचायी जा सकती थी। तब टेलीग्राफ तंत्र केवल सरकारी संस्थानों तक ही सीमित था। सैनिक छाबनियां व वायसराय-गवर्नर के दफ्तर टेलीग्राम का उपयोग कर सकते थे। सामान्य समाज सूचना-संप्रेषण के लिए हरकारे, घोड़ों या जटा नौकाओं पर ही पूरी तरह निर्भर था। टेलीग्राफ टैक्नालॉजी का नवीनतम आविष्कार था, जिस तक भारतीय समाज की पहुंच नहीं थी, क्योंकि उस पर ब्रिटिश शासकों का एकाधिकार था।

सन् 57 में टेलीग्राफ

वैसे तो बंगाल नेटिव इंफेंट्री में बगावत की चिनगारियां 1857 की जनवरी से ही दिखायी देने लगी थी। किन्तु ब्रिटिश शासक उन्हें स्थानीय घटनाएं बताकर उनकी उपेक्षा करते रहे और उन पर मौत का परदा डालते रहे। किंतु 10 मई, 1857 को मेरठ की विद्रोही सेना जब दिल्ली की ओर चल पड़ी और उसने बूढ़े और अनिच्छुक मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को क्रांति का नेतृत्व करने के लिए बाध्य किया, तब ब्रिटिश शासक स्थिति की गंभीरता से घबरा उठे। उन्होंने तुरंत उच्च सैनिक अधिकारियों को इस खतरे के प्रति सचेत करना आवश्यक समझा। उस समय टेलीग्राफ ही मदद को आया और झटपट कुछ ही घंटों के भीतर लाहौर, मोंटगुमरी, पेशावर, बम्बई, मद्रास आदि में स्थिति सैनिक छाबनियों को मेरठ और दिल्ली के विद्रोह की जानकारी मिल गयी। उन्होंने तुरंत सुरक्षात्मक कार्रवाई आरंभ कर दी। सबसे पहले तोपखाना और शस्त्रागार गोरे सैनिकों के नियंत्रण में लाया गया, जिन रेजीमेंटों से बगावत की संभावना थी, उन्हें छाबनियों में लाकर निष्क्रिय कर दिया गया। कहीं कहीं उनसे हथियार रखवा लिये गये। इस प्रकार अधिकांश भारतीय रेजीमेंटों को बगावत का झंडा उठाने से पहले ही निशस्त्र कर डाला। यदि टेलीग्राफ लाइन न होती तो क्रांति की ज्वाला तेजी से पूरे उत्तर भारत में फैल जाती और असावधान अंग्रेज उसका प्रतिकार न कर पाते।

अंग्रेजी सुविधाभोगी जाल

भारतीय समाज एवं भारतीय सैनिक उस समय तक टेलीग्राफ तंत्र की कोई समझ नहीं रखते थे। उनके लिए यह मात्र एक अजूबा था। मायावी चमत्कार था। विद्रोह के कई नेता कह उठते थे कि इस तार ने हमें मार डाला। जब तक उन्होंने टेलीग्राफ खंभों को उखाड़ने और तारों को काटने की रणनीति अपनायी गई, तब तक ब्रिटिश तंत्र क्रांति को कुचलने के लिए अपनी बहुमुखी रणनीति और व्यूह रचना तैयार कर चुका था। 1857 की क्रांति की विफलता ने 1740 में दक्षिण में और 1957 में बंगाल से आरंभ हुई सैनिक व राजनीति की प्रक्रिया को पूर्णता पर पहुंचा दिया। इस विजय को भारत पर स्थायी सांस्कृतिक, बौद्विक और आर्थिक विजय में परिणत करने के लिए उन्होंने स्टीम चालित जलयानों, टेलीग्राफ प्रणाली और रेलवे ट्रेन को अपना मुख्य उपकरण बनाया। तेजी से उन्होंने पूरे भारत में उनका जाल बिछा दिया और जन सामान्य को भी उनका उपयोग करने की स्थिति पैदा कर दी। परिणाम हुआ कि हम पूरी तरह उन पर निर्भर रहने लगे। 1909 में गांधी जी ने रेल (ट्रेन) की समाप्ति को स्वराज्य की आवश्यक शर्त बनाया। पर, उनकी बात को समाज ने नहीं सुना, यहां तक कि स्वयं गांधी जी को अपनी यात्राओं के लिए रेल का सहारा लेना पड़ा। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं को पारस्परिक सम्पर्क के लिए टेलीग्राफ का सहारा लेना पड़ा। उनके बीच टेलीग्राम द्वारा महत्वपूर्ण सूचनाओं के आदान-प्रदान के अनेक उदाहरण पुस्तकों और अभिलेखीय दस्तावेजों में भरे हुए हैं।

बढ़ती तकनीकी यात्रा

किन्तु टेक्नालॉजी की यात्रा केवल टेलीग्राफ पर ही नहीं रुक गयी। जिस प्रकार रेल के अगले कदम के रूप में विमान यात्रा आयी उसी प्रकार टेलीग्राफ के पूरक के रूप में टेलीफोन मैदान में उतर आया। टेलीफोन के द्वारा आधी रात को भी सूचनाओं और भावनाओं का आदान-प्रदान हो सकता था। एक दूसरे की आवाज सुनी जा सकती थी। टेलीफोन ने टेलीग्राफ या टेलीग्राम को पीछे छोड़ दिया था। क्योंकि टेलीग्राम सुविधा पोस्ट ऑफिस जैसे सरकारी तंत्र के माध्यम से ही उपलब्ध हो सकती थी जबकि टेलीफोन हमारे घर में लगा होता था। पर लम्बे समय तक यह सुविधा बहुत कम परिवारों को प्राप्त थी। मुझे स्मरण है कि टेलीफोन के लिए लम्बी लाइन लगी होती थी और तब पत्रकार होने के नाते 1969 में मुझे पहला टेलीफोन 'कनेक्शन' एक विशेष 'कोटे' में ही प्राप्त हुआ था।

पर टेक्नालॉजी लगातार दौड़ती जा रही थी। चालीस वर्ष पूर्व कम्प्यूटर मैदान में उतरा, उसके कई वर्ष बाद इंटरनेट और ईमेल की सुविधा आ गयी। 15-17 वर्ष पूर्व मोबाइल का आविष्कार हो गया। इंटरनेट और ई-मेल के द्वारा तुरंत विचारों, भावनाओं और सूचनाओं का आदान प्रदान संभव हो गया। आदान-प्रदान के इस अत्यंत सस्ते और त्वरित साधन ने सभ्यता के चेहरे में भारी परिवर्तन कर डाला है। इसकी सहायता से विश्व के किसी भी कोने में बैठे अपने स्वजन व मित्रों से आप न केवल वार्तालाप कर सकते हैं बल्कि एक-दूसरे को प्रत्यक्ष देख भी सकते हैं। आज से बीस वर्ष पूर्व ऐसे चमत्कार की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पहले यह सुविधा केवल वहीं तक सीमित थी जहां कम्प्यूटर की सुविधा उपलब्ध थी। पर अब तो प्राईमरी कक्षाओं तक कम्प्यूटर का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, स्कूली बच्चों को मुफ्त लैपटाप बांटे जा रहे हैं, बाजारों में इंटरनेट कैफे खुल गये हैं, जहां आप पैसा देकर संदेशों का आदान- प्रदान कर सकते हैं। इसीलिए अब टेलीग्राम की उपयोगिता समाप्त प्राय: हो गयी है और सरकार ने निर्णय लिया है कि 15 जुलाई से यह सेवा बंद कर दी जाएगी।

इंटरनेट की दुनिया

इंटरनेट और ई-मेल की सुविधा के इस त्वरित विस्तार के कारण अब पत्र लेखन लगभग समाप्त हो गया है, पोस्ट ऑफिस तंत्र निरर्थक होता जा रहा है। पहले जिस आतुरता के साथ हम डाकिए की प्रतीक्षा किया करते थे, प्रतीक्षा की वह आतुरता अब समाप्त हो गयी है और बेचारा डाकिया बेरोजगारी के मुंह में जाने की प्रतीक्षा कर रहा है। इंटरनेट ने ई- बुक्स का प्रचलन कर दिया है। पत्रकारिता और शैक्षिक जीवन अब इंटरनेट आश्रित हो गया। डीवीडी, पावर पाईंट प्रजेंटेशन, वीडियो कांफ्रेंसिंग आदि नयी-नयी विधियां अध्यापक और शिक्षण विधि को भी आमूल- चूल परिवर्तन की दिशा में धकेल रही है। बच्चे अपना होमवर्क भी इंटरनेट की सहायता से करने लगे हैं। वे अपना अधिक समय कम्प्यूटर पर ही व्यतीत करते हैं। हाथ से लिखने की आदत लगभग समाप्त होती जा रही है। भविष्यदर्शी लोग पुस्तकों के भविष्य के बारे में शंकित हो उठे हैं। पहले हम गांधी जी, सुभाष चन्द्र बोस और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के हस्त लेख की विशेषताओं का तुलनात्मक विवेचन किया करते थे, पर अब? पत्रकारों के लिए तो इंटरनेट वरदान बन गया है। किसी भी नये विषय पर वे इंटरनेट की सहायता से पर्याप्त जानकारी पा लेते हैं और कई बार तो इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के अंशों को जोड़कर नया लेख तैयार कर सकते हैं। सम्पादक भी कम्प्यूटरीकृत लेख का स्वागत करते हैं, क्योंकि लेखक के खराब हस्तलेख को पढ़ने में उन्हें माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ती। ई-मेल से लेख मिला कि छपने को चला गया।

इस स्थिति में मैं अपने को सभ्यता की दौड़ में बहुत पिछड़ा हुआ पाता हूं। आखिर क्यों मैं अपेक्षा करूं कि सम्पादकीय विभाग के लोग मेरे खराब हस्तलेख को पढ़ने की जहमत उठाये। मुझे स्मरण है कि कई वर्ष पहले एक दिन पाञ्चजन्य के सम्पादकीय विभाग के मित्रों से मैंने कहा कि मैंने पूर्वजन्म में कुछ पाप किये थे इसलिए मुझे इतना खराब हस्तलेख मिला। झट एक प्रतिक्रिया आयी कि पाप आपने नहीं, पाप तो हमने किये थे क्योंकि आप तो फटाफट लिख देते हैं, पढ़ना तो हमें ही पढ़ता है। हंसी का ठहाका गूंज उठा। पर इसमें एक कटु सत्य छिपा है।

प्रवाह से परे

पिछले पन्द्रह वर्षों से मोबाइल आ गया है और इस अल्पकाल में वह गांवों तक छा गया है। हरेक के हाथ में मोबाइल दिखायी देता है किसी देश की प्रगति का आकलन अब मोबाइलों की संख्या से किया जाता है। एक आकलन के अनुसार भारत में जनसंख्या से अधिक मोबाइलों की संख्या है। मोबाइल इस समय सम्पर्क का सबसे महत्वपूर्ण साधन बन गया है। ऐसे वातावरण में मैंने क्यों निश्चय कर लिया कि मैं कम्प्यूटर और मोबाइल से कोई संबंध नहीं रखूंगा। अब मैं स्वयं को सभ्यता के प्रवाह से बाहर पा रहा हूं। अधिकांश कार्यक्रमों की सूचना से मैं वंचित रह जाता हूं क्योंकि एक क्लिक मात्र से कार्यक्रम की सूचना सैकड़ों लोगों तक पहुंच जाती है। एकाध व्यक्ति के लिए सूचना को कूरियर या डाक से भेजने का औचित्य क्या? लोग कहते हैं कि हम आपको अमुक सामग्री ई-मेल से भेज देंगे। जब मैं कहता हूं कि मैं कम्प्यूटर छूता नहीं, तो वे मेरी मूर्खता पर हंसने लगता है कि यह आदमी किस युग में जी रहा है। इसी प्रकार जब मैंने मोबाइल न रखने का निर्णय लिया तो भी अपने को उपहास का पात्र बनाया। कम्प्यूटर और मोबाइल का बहिष्कार करने के पीछे मेरा मुख्य तर्क है कि यदि कम्प्यूटर और मोबाइल की उत्पादन प्रक्रिया पर्यावरण के लिए हानिकारक है, यदि उनसे निकलने वाला रेडियो विकिरण वायुमंडल को दूषित करता है, यदि इन दोनों का प्रयोग बच्चों के स्वास्थ्य पर और उनकी चिंतनशक्ति, ज्ञानार्जन की मुक्तता और नेत्र दृष्टि को खराब करता है, तो क्या पर्यावरण की रक्षा और नयी पीढ़ी के स्वास्थ्य और चिंतन शक्ति को बचाने के लिए इन उपकरणों का बहिष्कार आवश्यक नहीं है। पर पर्यावरण की रक्षा के लिए दिन- रात चिंतित व प्रयत्नशील कार्यकर्त्ता तो इन दोनों उपकरणों के सहारे ही अपना युद्ध लड़ रहे हैं। वे कह सकते हैं, 'तुम शायद अकेले योद्धा हो जो इस महत्वपूर्ण औजारों के बिना ही युद्ध के मैदान में खड़े हो।'

तकनीकी या पर्यावरण?

ऐसे एकाकीपन में जब मुझे पता चला कि केरल के मुख्यमंत्री ओमान चाण्डी भी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते तो मुझे इतना आनंद हुआ कि वह वर्णन के परे है। किंतु अब आज मैंने अखबारों में पढ़ा कि किसी सरिता नैयर और वीजू राधाकृष्णन ने मिलकर सौर ऊर्जा घोटाले में ओमान चाण्डी को फंसा दिया है और इसका एकमात्र कारण यह रहा कि मोबाइल का इस्तेमाल न करने के कारण मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने उन्हें इस घोटाले में फंसा दिया और उनके वामपंथी प्रतिद्वंद्वियों ने उसे जनांदोलन का विषय बना दिया। इस आंदोलन से त्रस्त होकर चाण्डी  को मोबाइल का इस्तेमाल करने का निर्णय लेना पड़ा और अब वे मोबाइल अपने पास रखा करेंगे। इस प्रकार मैं अपना एक साथी खो बैठा। क्या मेरा भी हश्र यही होने वाला है? पर मेरा सौभाग्य है कि मैं राजनीति और सत्ता से बाहर हूं और वहां जाने की कोई संभावना नहीं है। मैं अपनी रही-सही जिंदगी उनके बिना भी काट सकता हूं। पर सभ्यता पर टैक्नालॉजी के आक्रमण का यह जवाब नहीं है। यह मात्र हताशा की भाषा है। मूल प्रश्न यह है कि सभ्यता और टेक्नालॉजी का रिश्ता क्या है? टैक्नालॉजी सभ्यता को बनाती है या सभ्यता टैक्नालॉजी को जन्म देती है? यदि टैक्नालॉजी बेलगाम हो जाए तो उस पर सवार सभ्यता का भविष्य क्या है? कम्प्यूटर और मोबाइल को जिंदा रखने के लिए भी विद्युत ऊर्जा जरूरी है। और विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए जल, कोयला या अणुशक्ति का उपयोग आवश्यक है। तो क्या पर्यावरण के क्षरण से उत्पन्न देवभूमि उत्तराखण्ड की बिनाशलीला को कम्प्यूटर और मोबाइल से जोड़ना गलत होगा? क्या आत्मनाश ही सभ्यता के प्रत्येक चक्र की स्वाभाविक नियति है? तब हम उसको बचाने के लिए इतना चिंतित क्यों है? देवेन्द्र स्वरूप(20 जून, 2013)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies