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एनआईए ने तोड़े कानून, उड़ाई मानवाधिकारों की धज्जियां
अजब हाल है इस देश का और यहां रहने वाले भिन्न-भिन्न समूहों के अलग-अलग मानव अधिकारों का। हैदराबाद की मक्का-मस्जिद में विस्फोट हुआ, कुछ संदिग्ध मुस्लिमों को पूछताछ के लिए बुलाया और फिर निर्दोष मानकर छोड़ दिया, और उससे भी आगे बढ़कर कांग्रेस की राज्य सरकार ने उन संदिग्धों के बीच 17 लाख रुपए बंटबाए, ताकि 'विश्वास बहाली हो', 'सौहार्दपूर्ण वातावरण बने'। इधर उत्तर प्रदेश की सरकार न्यायालय परिसरों में धमाकों के एक आरोपी की किसी बीमारी की बजह से न्यायिक हिरासत में मौत पर 6 लाख का चेक देने के लिए उसके घर से चक्कर लगा रही है, न्यायालय की फटकार के बावजूद धमाका कर अनेक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार देने वाले आतंकवादियों को छोड़ने की जुगत भिड़ा रही है। दूसरी तरफ जांच के नाम पर आतंक फैलाने में जुटी एक राष्ट्रीय एजेंसी के कारनामों से पीड़ित-प्रताड़ित कुछ बेकसूर लोग बेवजह जेलों में बंद रखे गए हैं, उन्हें बिना ठोस सबूतों के पकड़ा गया है और पीट-पीट कर उनसे अपराध कबूल कराया जा रहा है, उनके परिजन रो रहे हैं, अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं। गृहमंत्री जांच और न्याय व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं, मानवाधिकार आयोग अनेक प्रतिवेदनों के बावजूद कान में तेल डालकर सो रहा है, और मीडिया भी 'भगवा आतंकवाद' के झूठे शोर में सच सुनना नहीं चाहता। अब इन पीड़ित परिवारों की पीड़ा दिल्ली दरबार तक पहुंचाने, उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने, कानूनी सहायता देने का बीड़ा उठाया देश के कुछ प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं ने और गठन किया है मानवाधिकार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (मारासुप) का। मारासुप के प्रयासों से गत 6 जून को मध्य प्रदेश के दूरदराज के गांवों-कस्बों से चलकर कुछ ऐसे परिवार दिल्ली आए जिनकी सिसकियां वहीं दम तोड़ दे रही थीं। इन लोगों ने बिलखते हुए, आंसू बहाते हुए जो आपबीती सुनाई तो प्रेस क्लब में सभागार में बैठा कोई भी मानवीय संवेदना वाला व्यक्ति ऐसा नहीं रहा जिसकी आंखें नम न हुई हों। दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता जे.पी. शर्मा ने पूरे विषय से पर्दा हटाते हुए बताया कि मालेगांव (2006) धमाके के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने हाल ही में जो पूरक आरोपपत्र दाखिल किया है वह गैरकानूनी है, झूठ का पुलिंदा है और केन्द्र सरकार के इशारे पर रचा गया एक षड्यंत्र है। गृहमंत्री के निर्देश पर पूर्व में पकड़े गए मुस्लिम आरोपियों की जमानत का विरोध न करना और माननीय न्यायालय द्वारा स्वत: उस पर संज्ञान न लेना न्याय व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसके अलावा एनआईए ने जिस तरह लोकेश शर्मा, धन सिंह और साध्वी प्रज्ञा सिंह को पीटा गया है, शरीर से लाचार कर दिया गया है, दिलीप पाटीदार को गायब कर दिया गया है, उसके विरुद्ध हम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लेकर न्यायालय तक लड़ेंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल सोनी का कहना था कि यह शर्मनाक है कि हमें भारत में रहकर, भारत के लोगों के लिए, उनके मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठानी पड़ रही है। मारासुप के महासचिव अरुणेश्वर गुप्ता ने एनआईए के कुछ अधिकारी केन्द्र सरकार के निर्देश पर किसी भी हद तक जाकर कुछ लोगों को आतंकवादी घोषित करने के षड्यंत्र में जुटे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता जे.एस. राणा ने कहा कि जांच एजेंसी का काम जांच करना है, न्याय के नाम पर अन्याय करना नहीं। मारासुप के सचिव-अधिवक्ता प्रवेश खन्ना ने मंच संचालन करते हुए कहा कि हम इन पीड़त परिवारों को दिल्ली इसलिए लाए हैं ताकि देशवासी इनके दर्द को महसूस कर सकें और केन्द्र सरकार के षड्यंत्र के चलते राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा निर्दोष लोगों को कुछ आतंकवादी घटनाओं के आरोप में जेल में बंद रखने के विरुद्ध न्यायिक संघर्ष का हिस्सा बनें। जितेन्द्र तिवारी
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